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बिहार के इन 6 जिलों में मां का दूध बच्चों के लिए खतरनाक, जानें कैसे?

नवजात बच्चे को सबसे पहले उसकी मां का दूध पिलाया जाता है। बिहार के इन 6 जिलों में मां का दूध बच्चों के लिए नुकसानदायक है।

mother feeding milk to baby

ब्रेस्ट मिल्क (क्रेडिट इमेज- फ्रीपिक)

नवजात बच्चे को सबसे पहले मां का दूध पिलाया जाता है। कहते हैं मां के दूध में सभी पोषक तत्व मौजूद होते हैं। WHO ने अपनी गाइडलाइन में कहा कि शुरुआती छह महीनों में सिर्फ बच्चे को मां दूध पिलाना है। हालांकि एक साल या उससे ज्यादा तक बच्चे को स्तनपान करवाना चाहिए। ब्रेस्ट मिल्क बच्चे को तमाम तरह की बीमारियां होने से भी रोकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं मां का दूध बच्चे के लिए नुकसानदायक भी हो सकती है। ऐसा हम नहीं पटना महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र के शोधकर्ताओं ने अपनी स्टडी में बताया है। शोधकर्ताओं ने बिहार के छह जिलों में महिलाओं के दूध पर रिसर्च की। इस रिसर्च में पता चला कि यहां की महिलाओं के दूध में लेड की मात्रा ज्यादा है।

 

हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि लेड की मात्रा ज्यादा होने की वजह से बच्चों के मानसिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसी के साथ बाकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हो सकती है। संस्थान के 12 वैज्ञानिकों ने इस रिसर्च को किया है। वैज्ञानिकों की रिसर्च 'हाई लेड कंटेमिनेशन इन मदर्स ब्रेस्टमिल्क इन बिहार : हेल्थ रिस्क एसेसमेंट ऑफ द फीडिंग चिल्ड्रंस' केमोस्फीयर जर्नल में पब्लिश हुई है।

 

बिहार के छह जिलों में हुआ शोध

 

शोधकर्ताओं ने 17 से 40 साल की 327 महिलाओं के ब्रेस्ट मिलक, मदर यूरिन और बच्चे के यूरिन और ब्लड सैंपल को लिया गया। यह नमूने समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, दरभंगा, मुंगेर और नालंदा जिलों से एकत्र किए गए। सीनियर रिसर्च वैज्ञानिक, अरुण कुमार ने बताया, '92 प्रतिशत ब्रेस्ट मिल्क में लेड की मात्रा सबसे ज्यादा मिली है। उन्होंने बताया, '87 प्रतिशत खून में लेड की मात्रा मिली है और इसका कारण खराब मिट्टी में उगने वाली साग- सब्जियों से है'।

 

साग-सब्जियों से शरीर में प्रवेश करता है लेड

 

महिलाएं इस मिट्टी में उगने वाले गेहूं, चावल और आलू का खाती हैं। इस कारण ब्रेस्ट मिल्क में लेड की मात्रा ज्यादा मिली है। लेड की वजह से नवजात बच्चों का जन्म समय से पहले हो जाता है,जन्म के समय वजन कम होता है और विकास भी स्लो हो जाता है। इसकी वजह से एनिमिया, न्यूरोलॉजिक्ल, स्केलेटल और न्यूरोमस्कुलर समस्याएं बच्चे और बड़े दोनों में हो सकती है।

 

भारत में 275 मिलियन बच्चे लेड से हैं प्रभावित

 

सयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) और अमेरिका  स्थित पर्यावरण स्वास्थ्य संस्था (प्योर) 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक,275 मिलियन बच्चों के खून में लेड की मात्रा WHO की निर्धारित सीमा 3.5 माइक्रो प्रति लीटर ग्राम से अधिक है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक, इस वजह से बच्चों के मानसिक विकास, लर्निंग एबिलिटी और व्यवहार पर काफी असर पड़ता है। 

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