logo

ट्रेंडिंग:

1965 की जंग में बीमार हुए, 2011 में मौत, अब 57 साल बाद मिलेगी पेंशन

1965 की जंग में भारतीय सेना में काम करने वाले एक सैनिक का निधन 2011 में हो चुका है। अब कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि उनकी पत्नी को 57 साल की बकाया पेंशन दी जाए।

Representative Image

प्रतीकात्मक तस्वीर

कई बार पेंशन के चक्कर में लोगों को परेशान होना पड़ता है। रिटायरमेंट के बाद पेंशन शुरू करवाने में लोगों को मशक्कत भी करनी पड़ती है। ऐसा ही एक केस चंडीगढ़ से आया है, जहां पेंशन मांगने वाले शख्स की मौत के 14 साल बाद फैसला आया है कि पेंशन की पूरी रकम चुकाई जाएगी। सेना के जवान रहे उमरावत सिंह 1968 में सेना से अलग हुए थे और अब वह इस दुनिया में नहीं हैं। इस घटना के 57 साल बाद उनकी पत्नी ने चंडीगढ़ सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) में यह लड़ाई जीत ली है। अब फैसला सुनाया गया है कि सरकार तीन महीने के अंदर पेंशन की पूरी रकम उमरावत सिंह की पत्नी को दे।

 

लांस नायक उमरावत सिंह ने विकलांगता के आधार पर विकलांगता पेंशन की मांग की थी। सरकार ने उनकी विकलांगता को मानक से कम बताकर उनका दावा खारिज कर दिया था। उमरावत सिंह की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने कोर्ट का रुख किया था। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) ने इस मामले में अब फैसला सुनाया है। AFT ने फैसले में कहा है कि सैनिक लांस नायक उमरावत सिंह की पत्नी 1968 से इनवैलिड पेंशन और 2011 से फैमिली पेंशन का एरियर पाने की हकदार हैं। सरकार को यह आदेश दिया गया है कि बकाया राशि को तीन महीने के अंदर जारी किया जाए। जज सुधीर मित्तल और एएफटी चंडीगढ़ पीठ प्रशासनिक के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। 

 

लांस नायक उमरावत सिंह 12 सितंबर 1961 को सेना में भर्ती हुए थे, तब वह पूरी तरह से फिट थे। उन्होंने 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध में शानदार काम किया था। इसके लिए उन्हें समर सेवा स्टार-65 से सम्मानित भी किया गया था। परिवार की ओर से ऐसा बताया गया कि इंटरनेशनल बॉर्डर पर लंबे समय तक तैनात रहने के कारण उन्हें गंभीर मानसिक तनाव का सामना करना पड़ा। इस वजह से उन्हें सिज़ोफ्रेनिया की बीमारी हो गई। सात साल और तीन महीने की सर्विस के बाद, 17 दिसंबर 1968 को उन्हें सर्विस से हटा दिया गया था।

 

यह भी पढ़ें-  गुरपतपंत सिंह पन्नू पर NIA ने दर्ज की FIR, नए आरोप क्या हैं?

 

इस बीमारी का पता चलने के बाद उन्होंने विकलांगता पेंशन की मांग की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। 1972 में उमरावत सिंह रक्षा सुरक्षा कोर (डीएससी) में शामिल हो गए थे लेकिन कुछ ही महीने बाद उन्हें सेवामुक्त कर दिया गया था।

मृत्यु के बाद पत्नी ने कोर्ट का किया रुख

लांस नायक उमाशंकर की मृत्यु 31 जनवरी 2011 को हो गई थी। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी ने 2018 में कोर्ट में पेंशन के लिए याचिका दायर की। पत्नी ने याचिका में फरवरी 2011 से बकाया विकलांगता पेंशन और फैमिली पेंशन की मांग की। 

केंद्र सरकार का विरोध

इसका विरोध करते हुए केंद्र सरकार ने दलील दी कि उमाशंकर ने सेना पेंशन विनियमन, 1961 के नियम 132 के तहत आवश्यक 15 वर्ष की सेवा पूरी नहीं की थी। साथ में यह भी तर्क दिया गया कि उनकी विकलांगता को 'न तो सैन्य सेवा के कारण और न ही उससे बढ़ी हुई' के रूप में देखा जाएगा। उनकी विकलांगता को 20% से कम आंका गया था, इसलिए उन्हें विकलांगता पेंशन से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। अधिकारियों ने यह भी दावा किया कि कुछ समय के बाद संबंधित रिकॉर्ड नष्ट कर दिए गए थे।

 

यह भी पढ़ें- ..तो मानहानि को अपराध नहीं माना जाएगा! सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

कोर्ट का फैसला 

दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने यह माना कि उमरावत सिंह 18 दिसंबर 1968 से 31 जनवरी 2011 अपनी मृत्यु तक पेंशन के हकदार थे। परिणामस्वरूप, उनकी पत्नी 1 फरवरी 2011 से साधारण पारिवारिक पेंशन की पात्र हैं। कोर्ट ने बलबीर सिंह बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले का हवाला देते हुए, एएफटी ने स्पष्ट किया कि जब कानूनी अधिकार मौजूद हों तो चल रहे मुकदमे के कारण पेंशन अधिकारों में कटौती नहीं की जा सकती।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap