देश की सर्वोच्च ने आज 23 सितंबर को मानहानि से जुड़े एक केस की सुनवाई के संदर्भ में बहुत बड़ी बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि अब समय आ गया है कि मानहानि कानून को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए। कोर्ट ने ‘फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म’ की एक आपराधिक मानहानि मामले में उसे जारी किए गए समन को रद्द करने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही।
जज एम. एम. सुंदरेश और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की पूर्व प्रोफेसर अमिता सिंह को नोटिस जारी किया। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी समाचार पोर्टल ‘द वायर’ चलाने वाले संगठन और उसके राजनीतिक मामलों के संपादक अजय आशीर्वाद महाप्रशास्त की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। जज एम. एम. सुंदरेश ने कहा, 'मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि इस सब को अपराध मुक्त किया जाए।'
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शीर्ष अदालत डोजियर के प्रकाशन को लेकर जेएनयू की पूर्व प्रोफेसर की ओर से दायर मानहानि के एक मामले में अधीनस्थ अदालत की ओर से उन्हें समन जारी करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
शिकायतकर्ता की दलील
शिकायतकर्ता ने अधीनस्थ अदालत में दलील दी थी कि आरोपियों ने उनकी प्रतिष्ठा को खराब करने के लिए उनके खिलाफ घृणा अभियान चलाया था। पोर्टल में प्रकाशित कथित मानहानिकारक रिपोर्ट पर मुकदमे का यह दूसरा दौर है। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2023 में उन्हें जारी समन रद्द कर दिया था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने आदेश को पलट दिया और मामले को नए सिरे से विचार के लिए निचली अदालत के पास वापस भेज दिया। अधीनस्थ अदालत ने फिर से समन जारी किया और सुप्रीम कोर्ट ने भी उसे बरकरार रखा।
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मानहानि केस में सजा
मानहानि के आपराधिक मामले में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 के तहत दोषी पाए जाने पर दो साल तक की जेल या जुर्माना की सजा का प्रावधान है। इसमें अधिकतम दो साल तक की जेल की सजा हो सकती है। कई मामलों में, अदालत कारावास के साथ-साथ जुर्माना भी लगा सकती है।