'सम्मान नहीं दे सकते तो...', एंजेल चकमा की मौत पर भड़के पूर्वोत्तर के लोग
एंजेल चकमा के लिए इंसाफ मांग रहे लोगों का कहना है कि क्या उत्तराखंड, पूर्वोत्तर के लोगों को भारत का नागरिक नहीं मानता है? कैसे एक छात्र की मौत पर पूर्वोत्तर के लोग नाराज हो गए हैं, पढ़िए रिपोर्ट।

एंजल चकामा की मौत के बाद त्रिपुरा में प्रदर्शन। Photo Credit: PTI
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 भारत के नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में बसने और आजाद घूमने का अधिकार देता है। विधानसभा, कार्यपालिका और न्यायपालिका का यह दायित्व होता है कि किसी का यह अधिकार छिनने न पाए। क्या हो, अगर किसी राज्य में यह अधिकार ताक पर रख दिया जाए और भारत के ही एक नागरिक को 'चाइनीज' और 'मोमो' कहकर मार दिया जाए। यह संबोधन सिर्फ इसलिए क्योंकि वह नस्लीय रूप से अलग है, उत्तर भारत के प्रचलित नैन-नक्श से वह ताल-मेल नहीं बिठा पात है। उत्तराखंड के देहरादून में त्रिपुरा से आने वाले एक 24 साल के छात्र एंजेल चकमा के साथ यही हुआ है। उनकी मौत के बाद पूर्वोत्तर के छात्रों का कहना है कि क्या उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार, पूर्वोत्तर को देश का हिस्सा नहीं मानती है?
एंजेल चकमा को बदमाशों ने रोका, गालियां दीं, उन्हें 'चिंकी', 'चीनी' और 'मोमो' जैसे शब्दों से पुकारने लगे। वे लगातार चिढ़ा रहे थे। एक शख्स ने मजाक में कहा, 'ओये चाइनीज, पोर्क खरीदने आए हो?' एंजेल चकमा ने कहा कि वह चीनी नहीं, भारतीय हैं। बदमाश इस बात से इतना भड़के कि एंजेल के भाई माइकल पर हमला कर दिया। भाई तो किसी तरह बच गया, एंजेल चकमा इतने गंभीर रूप से जख्मी हुए कि उन्होंने 17 दिनों बाद दम तोड़ दिया।
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एंजेल चकमा की मौत कैसे हुई?
एंजेल चकमा की मौत पर पूर्वोत्तर के राज्यों ने चिंता जताई है। एंजेल चकमा 24 साल के थे। देहरादून में हुए एक नस्लीय हमले में वह गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे। 17 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद उन्होंने देहरादूरन के ही एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। एंजेल चकमा, अपने छोटे भाई माइकल के साथ सेलाकुई इलाके में किराने का सामान खरीदने थे, तभी अचानक 6 लोग आए और नस्लीय टिप्पणियां की और अधमरा करके छोड़ गए।
एंजेल चकमा अपने भाई को बचा रहे थे, तभी यज्ञ अवस्थी नाम के एक शख्स ने उसके सिर और पीठ पर चाकू से हमला कर दिया। दूसरे लोगों ने ब्रेसलेट से मारना शुरू किया। एंजेल चकमा की रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई। वह मौके पर गिर पड़े और बेहोश हो गए। एंजेल चकमा के भाई माइकल ने उन्हें अस्पताल ले गए। एंजेल 17 दिनों तक अस्पताल में जिंदगी-मौत से जूझते रहे, कोमा में पड़े रहे। 26 दिसंबर को उनकी मौत हो गई।
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एंजेल चकमा को मारने वाले लोग कौन हैं?
पुलिस ने माइकल की शिकायत पर 12 दिसंबर को मामला दर्ज किया। शुरुआत में चोट पहुंचाने और हथियार इस्तेमाल करने की धाराएं लगाई गईं। बाद में हत्या की कोशिश और फिर मौत के बाद हत्या की धारा जोड़ी गई। 5 लोगों की गिरफ्तारी हुई है, 2 नाबालिगों को भी हिरासत में लिया गया है। पुलिस आरोपियों की तलाश में जुटी है। हत्या के आरोपियों में अविनाश नेगी, सुमित कुमार, शौर्य, आयुष बदोनी और यज्ञ अवस्थी शामिल हैं। 2 नाबालिग हैं, जिन्हें पुलिस ने हिरासत में लिया है। हमला करने वाले लोग, देहरादून के ही रहने वाले थे। बर्थडे की पार्टी का जश्न मना रहे थे।
नॉर्थ-ईस्ट देश का हिस्सा नहीं है क्या? पूर्वोत्तर में उठी आवाज
हिमंत बिस्व सरमा, मुख्यमंत्री, असम:-
एंजल चकमा की मौत से दुखी हूं। देहरादून में हुई नस्लीय हत्या, दिल तोड़ने वाली है, अस्वीकार है। मेरी सीएम धामी से अपील है कि जो भी इस वारदात में शामिल हों, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। मेरी एंजेल के परिवार के प्रति संवेदना है।
एंजेल चकमा की मौत पर पूर्वोत्तर के छात्रों ने चिंता जताई है। भाषाई या नस्लीय आधार पर कैसे किसी को मारा जा सकता है। अगर उत्तराखंड 'देवभूमि' है तो किसी दूसरे राज्य से आए हुए छात्र के साथ ऐसी बर्बरता कैसे की जा सकती। एंजेल चकमा की लाश 27 दिसंबर को अगरतला पहुंचाई गई। अंतिम संस्कार के बाद ही गुस्सा भड़क गया।
टिपरा मोथा के संस्थापक पद्योत किशोर माणिक्य ने परिवार के लिए इंसाफ मांगा है। उन्होंने कहा कि उत्तर-पूर्व के लोग देश की रक्षा करते हैं, फिर भी उन्हें चीनी कहा जाता है। यह दुखद है। छात्र संगठनों ने प्रदर्शन किए। चकमा स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और केंद्र से हस्तक्षेप मांगा। वे उत्तर-पूर्व के छात्रों पर हमलों से चिंतित हैं।
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पद्योत किशोर माणिक्य, टिपरा मोथा:-
हमें इंसाफ चाहिए। पूर्वोत्तर के लोग देश की रक्षा के लिए जान देते हैं, उन्हें चीनी और मोमो कहा जाता है, यह अपमानजनक है। केंद्र सरकार हस्तक्षेप करे। मैं मीडिया की सराहना करता हू्ं कि तत्काल हस्तक्षेप किया। जो एंजेल चमका के साथ हुआ है, वह पूर्वोत्तर के ज्यादातर छात्रों और मजदूरों के साथ होता है।
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से फोन पर बात की। पुष्कर सिंह धामी ने पूरी जांच और न्याय का आश्वासन दिया। मणिक साहा ने कहा कि वह परिवार से मिलेंगे और हर मदद करेंगे।
मणिक साहा, मुख्यमंत्री, त्रिपुरा:-
मैंने पुष्कर सिंह धामी से हमारे छात्र एंजेल चकमा के साथ जो हुआ है, उसके संदर्भ में बात की है। वह नंदनगर, देबराम ठाकुर पारा इलाके का रहने वाले थे। उन्हें बुरी तरह से 9 दिसंबर को मारा गया, ग्राफिक एरा अस्पताल में उनकी मौत हो गई। मुख्यमंत्री को मैंने सूचना दी है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि 5 लोग गिरफ्तार हो गए हैं, जांज जारी है। न्याय होकर रहेगा।
अब आगे क्या?
त्रिपुरा पुलिस और उत्तराखंड पुलिस संपर्क में हैं। चकमा छात्र संगठन ने 29 दिसंबर को अगरतला में कैंडल मार्च निकाला। 30 दिसंबर को चकमा छात्र संगठन मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपेगा। प्रदर्शनकारी आरोपियों को कड़ी सजा दिलानी की मांग कर रहे हैं। छात्र संगठनों की मांग है कि पूर्वोत्तर के लोगों के प्रति हो रही नस्लीय हिंसा को रोकने के लिए प्रभावी कानून बनाया जाए।
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'हम सम्मान में बिछ जाते हैं, आप हमें 'चीनी' और 'मोमो' कहते हैं'
पूर्वोत्तर के राज्य, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। पहाड़ हैं, नदियां हैं, झरने हैं, वादियां हैं। इन राज्यों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा, पर्यटन से भी आता है। देशभर के पर्यटक यहां घूमने जाते हैं। वहां, देश के हर राज्य के लोगों का स्वागत होता है लेकिन पूर्वोत्तर के लोगों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें अक्सर सामने आतीं हैं।
सजरा देबबर्मा, अध्यक्ष, टिपरा इंडिजिनस स्टूडेंट्स फेडरेशन:-
उत्तर-पूर्व के लोग बाहर जाकर अक्सर अपमान झेलते हैं। यह नया नहीं है। दिल्ली, कर्नाटक, केरल में भी ऐसे मामले हुए हैं। अगर सम्मान नहीं दे सकते तो अलग देश दे दो, हम खुद संभाल लेंगे। लेकिन जब बाहर के लोग उत्तर-पूर्व आते हैं, तो हम सम्मान देते हैं। सभी छात्र संगठनों ने एकजुट होकर प्रदर्शन किया और दोषियों को सजा की मांग की। यह घटना पूरे उत्तर-पूर्व के लिए दर्दनाक है।
उत्तराखंड पुलिस ने राज्य में उत्तर-पूर्व के लोगों की सुरक्षा के लिए स्पेशल सेल एक्टिवेट किया है। देहरादून में भी छात्रों ने कैंडल मार्च निकाला। कई संगठनों ने नस्लीय हिंसा के खिलाफ कानून की मांग की। पहले भी निडो तानिया जैसे मामले हुए हैं, जिसके बाद कुछ चर्चा हुई लेकिन कानून नहीं बना। चकमा समुदाय और छात्र नेता कह रहे हैं कि ऐसे हमले रोकने के लिए सख्त कानून जरूरी है। केंद्र सरकार से अपील है कि उत्तर-पूर्व के लोगों को सम्मान और सुरक्षा मिले।
https://twitter.com/PradyotManikya/status/2005209333303566370
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कॉनराड संगमा, मुख्यमंत्री, मेघालय:-
त्रिपुरा के एंजेल चकमा की देहरादून में बेरहमी से नस्लीय भेदभाव का सामना करने के बाद मौत हो गई। यह दिल दहला देने वाली और बर्दाश्त न करने वाली घटना है। नस्लीय हिंसा बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। नॉर्थ ईस्ट के लोग भी उतने ही भारतीय हैं जितने इस देश के बाकी नागरिक। नस्लवाद को कभी भी सामान्य नहीं माना जाना चाहिए और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। एंजेल के परिवार और प्रियजनों के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
कौन थे एंजेल चकमा?
एंजेल चकमा एमबीए के अंतिम वर्ष में थे। वे जिग्यासा यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। उनका परिवार त्रिपुरा के उन्नकोटी जिले में रहता है। पिता बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स में हैं। एंजेल और माइकल दोनों देहरादून में पढ़ाई कर रहे थे। उत्तर-पूर्व के लोग अक्सर, उत्तर भारतीयों से अलग चेहरी बनावट की वजह से विदेशी समझे जाते हैं।
एंजेल चेमा:-
हम भारतीय हैं, क्या सर्टिफिकेट दिखाएं?
माइकल ने कहा कि एंजेल चेमा के यही आखिरी शब्द थे। उनके भाई माइकल ने कहा कि जब लोग मार रहे थे, हम उनसे गुहार लगा रहे थे कि मत मारो, हम भारतीय ही हैं। वे लगातार हमें चिढ़ा रहे थे।
एंजेल चकमा को कब मिलेगा न्याय?
एंजेला चकमा के लिए पूरे देश में इंसाफ की मांग उठी है। सोशल मीडिया पर #JusticeForAngelChakma ट्रेंड कर रहा है। पूर्वोत्तर के राज्यों के मुख्यमंत्रियों से लेकर आम जनता तक, मांग कर रही है कि छात्रों के साथ-साथ नस्लीय आधार पर भेदभाव न हों। अब आवाज उठ रही है कि नस्लीय हिंसा के खिलाफ अलग से कानून बने।
https://twitter.com/ANI/status/2004928700681519182
पूर्वोत्तर के लोगों के प्रति नस्लवाद कितना डरावना है?
फरवरी 2014 में 'बेजबारुआ समिति' का गठन हुआ था। इस समिति की अध्यक्षता एमपी बेजबारुआ ने की थी। अरुणाचल प्रदेश के एक 20 वर्षीय छात्र निडो तानियाम को दिल्ली के लाजपत नगर में पीट-पीटकर नस्लीय हमले में मार दिया गया था। यह समिति, इसी हत्या के बाद गठित हुई थी। जुलाई 2014 में तैयार 82 पेज की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया था कि दिल्ली में उत्तर-पूर्वी लोगों की 86 फीसदी आबादी भेदभाव का शिकार है।
बेजबारुआ समिति की रिपोर्ट बताती है कि पूर्वोत्तर के लोगों को 'चिंकी', मोमोज और चाइनीज कहकर चिढ़ाया जाता है, उन्हें यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है, नस्लीट टिप्पणियां की जाती हैं। मोमो और चाइनीज बताया जाता है।
नस्लवाद का हल क्या है?
बेजबारुआ समिति ने सिफारिश की थी भारतीय दंड संहिता (IPC) में नस्लवाद को लेकर स्पष्ट धारा लाने की बात की थी। सिफारिश की गई थी कि NCERT में उत्तर-पूर्व संस्कृति शामिल की जाए, एक हेल्पलाइन नंबर बने, खेल-सांस्कृतिक एकीकरण पर जोर दिया जाए।
विशाल अरुण मिश्र, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड, सुप्रीम कोर्ट:-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 राज्य को धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव करने से रोकता है। अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार में नस्ल के आधार पर भेदभाव को रोकता है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A धर्म, नस्ल, जन्म स्थान आदि के आधार पर अलग-अलग नफरत और हिंसा करने से संबंधित था। इसमें 3 साल तक कैद और जुर्माने का प्रावधान तय किया गया था। साल 2017 में धारा 153C और 509A जोड़ने का प्रस्ताव दिया गया था। अब यह अधिनियम ही बदल गया है, इसकी जगह भारतीय न्याय संहिता ने ले ली है।
नस्लवाद से कैसे निपटी है सरकार?
एडवोकेट विशाल अरुण मिश्र के मुताबिक भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 196 धर्म, जाति, जन्मस्थान, भाषा के आधार पर नफरत फैलाने या दुश्मनी बढ़ाने से जुड़ी है। इसके तहत 3 साल तक की जेल हो सकता है, जुर्माना भी लग सकता है। अगर अपराध पूजा स्थल या धार्मिक समारोह में अपराध करने का है तो इसके लिए 5 साल की जेल हो सकती है, जुर्माना भी लग सकता है। भारत में पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ हो रहे नस्लवाद के लिए अलग से अभी तक कोई कानून नहीं बना है। पूर्वोत्तर के लोग अरसे से ऐसी मांग कर रहे हैं।
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