पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के ‘ब्रिज’ नाम के संगठन ने LGBTQ+ कम्युनिटी के साथ होने वाले भेदभाव और दुर्व्यवहार को लेकर एक सर्वे किया है। इस हालिया सर्वे के आंकड़े काफी चिंताजनक हैं। सर्वे में सामने आया है कि LGBTQ+ समुदाय के बच्चे और किशोर अपने घरों, स्कूलों और आसपास के माहौल में सबसे ज्यादा भेदभाव और गलत व्यवहार का सामना करते हैं। LGBTQ+ शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिनकी यौन रुचि या लैंगिक पहचान अलग-अलग होती है। इसमें लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर या क्वेश्चनिंग, इंटरसेक्स और एसेक्सुअल शामिल हैं। इसके अलावा अन्य पहचानों को शामिल करने के लिए इसके साथ ‘प्लस’ का चिन्ह लगाया जाता है।
पृथ्वीराज नाथ 'ब्रिज' नाम के एक संगठन के संस्थापक निदेशक हैं, जो शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में LGBTQIA+ समुदाय के बच्चों और वयस्कों के सामने आने वाली चुनौतियों और भेदभाव को उजागर करते हैं और उनके अधिकारों व समावेश के लिए काम करते हैं।
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कैसे हुआ सर्वेक्षण?
असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नगालैंड, ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में ‘LGBTQ+’ समुदाय के अधिकारों के लिए काम करने वाले कोलकाता के संगठन ‘ब्रिज’ ने अपने एक हालिया सर्वेक्षण में ‘LGBTQ+’ समुदाय के 900 से अधिक व्यक्तियों को शामिल किया था, जिसमें यह पाया गया कि 12 से 15 वर्ष की आयु वाले बच्चों को परेशान करने की सबसे अधिक घटनाएं होती है।
‘ब्रिज’ के संस्थापक निदेशक पृथ्वीराज नाथ ने ‘PTI’ को बताया कि इससे कई बच्चे स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं और वे शिक्षा, रोजगार और आय संबंधी सुरक्षा से वंचित हो जाते हैं। उन्होंने कहा, '2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने, 2014 में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के फैसले और 2019 के ट्रांसजेंडर संरक्षण अधिनियम के बावजूद ‘एलजीबीटीक्यू प्लस’ समुदाय के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कार्यस्थलों और सार्वजनिक जीवन में निरंतर बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है।'
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पृथ्वीराज ने आगे कहा कि बुनियादी मानवाधिकार अब भी कई लोगों की पहुंच से बाहर हैं और यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम ‘LGBTQ+’ समुदाय की सामना की जाने वाली वास्तविकताओं और चुनौतियों को सामने लाएं तथा समुदाय के समान अधिकारों और समावेश की दिशा में समाज सभी तबकों के साथ बातचीत करें। इनके अधिकारों के संगठन और सहायता समूह ‘जोमोनॉय’ की संस्थापक रुद्राणी राजकुमारी ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार और सभी हितधारकों को भेदभाव को कम करने और समान अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए एक खाका बनाने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए।