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सऊदी अरब के साथ डील करके क्या पाकिस्तान अपने ही जाल में फंस गया?

सऊदी अरब ने पाकिस्तान के साथ रक्षा डील की है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह डील करके पाकिस्तान ने इजरायल से सीधे दुश्मनी मोल ले ली है। ईरान से भी रिश्ते बिगड़ने का खतरा है।

Mohammed bin Salman and Shahbaz Sharif.

मोहम्मद बिन सलमान और शहबाज शरीफ। (Photo Credit: Social Media)

पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुई डिफेंस डील की चर्चा पूरी दुनिया में है। कई विश्वेषक इस रक्षा समझौते को भारत के लिए झटका बता रहे हैं तो कुछ का नजरिया अलग है। उनका मानना है कि डिफेंस डील का असली मकसद इजरायल की बढ़ती आक्रामकता के खिलाफ सऊदी अरब को सुरक्षा मुहैया करवाना है। अगर डील में परमाणु हथियारों की तैनाती शामिल है तो यह पाकिस्तान के लिए ही बड़ा संकट बन सकती है। ईरान भी सऊदी अरब में परमाणु हथियारों की तैनाती को हल्के में नहीं लेगा। आज जानते हैं कि कैसे पाकिस्तान अपनी ही रक्षा डील में फंस सकता है?

 

पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच 17 सितंबर को रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौता हुआ। सऊदी अरब का कहना है कि यह डील वर्षों की बातचीत का नतीजा है। मगर विश्वेषकों का मानना है कि समझौते में कतर पर इजरायल के हमले ने उत्तप्रेरक का काम किया। सऊदी अरब को अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर भरोसा नहीं है। जब हूती विद्रोहियों ने 2015 में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात पर हमला किया था, तब भी अमेरिका ने इन देशों का साथ उतना नहीं दिया था, जितना उनको भरोसा था। 

 

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अमेरिका कतर को अपना प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी बताता है। बावजूद इसके अमेरिका उसे इजरायली हमले से नहीं बचा सका। इन घटनाओं के बाद से ही खाड़ी के देशों में अलार्म बज रहा है। अब उन्हें अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर पहले जैसा भरोसा नहीं रहा। यही कारण है कि सऊदी अरब जैसे देश अपनी सुरक्षा में विविधता लाने में जुटे हैं, ताकि सिर्फ अमेरिका के भरोसे न रहा जाए।

 

पाकिस्तान-सऊदी अरब रक्षा समझौते के तहत अगर एक देश पर हमला हुआ तो यह दोनों देशों पर माना जाएगा। हमले की स्थिति में दोनों देश साझे तौर पर अपना प्रतिरोध जाहिर करेंगे। सऊदी अरब के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान की परमाणु छतरी समझौते का हिस्सा है। किसी विशेष खतरे में आवश्यक समझे जाने वाले सभी रक्षात्मक और सैन्य साधनों का इस्तेमाल किया जाएगा। मतलब साफ है कि पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों को सऊदी अरब में तैनात कर सकता है। इससे इजरायल की टेंशन बढ़ना लाजिमी है।

 

इजरायल की रणनीति एकदम स्पष्ट है। खतरे को पैदा होने से पहले ही खत्म कर दो। मध्य पूर्व में जो भी इजरायल के सामने खतरा बना, उस पर उसने हमला किया है। इराक, सीरिया, ईरान, लेबनान और मिस्र जैसे देश उदाहण हैं। अब वह नहीं चाहेगा कि किसी खाड़ी देश पर परमाणु हथियारों की तैनाती हो। अगर ऐसा हुआ तो इजरायल की क्या प्रतिक्रिया होगी, यह भविष्य ही बताएगा। 

 

मगर इजरायल के रक्षा गलियारों में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुई डील की चर्चा है। डील से नया खतरा पैदा होने की शंका है। डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले कार्यकाल में संयुक्त अरब अमीरात और इजरायल के बीच रिश्ते सुधारे थे। अब्राहम समझौते के तहत अब पूरा फोकस सऊदी अरब और इजरायल के रिश्ते सामान्य बनाने पर था, लेकिन यह पूरी कोशिश अब खटाई में पड़ जाएगी। 

 

पूर्व अमेरिकी राजनयिक जालमे खलीलजाद ने इस समझौते पर चिंता व्यक्त की। उनका कहना है कि यह खतरनाक समय में हुआ है। उन्होंने एक्स पर लिखा, 'पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार और डिलीवरी सिस्टम हैं। यह इजरायल समेत पूरे मध्य पूर्व में टारगेट को भेद सकते हैं। पाकिस्तान ऐसे सिस्टम भी विकसित कर रहा है, जो अमेरिका में टारगेट तक पहुंच सकते हैं। 

इजरायल और पाकिस्तान के बीच बढ़ सकता तनाव

पाकिस्तान ने 1998 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। इजरायल ने इसे रोकने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। पाकिस्तान के पास परमाणु हथियारों को इजरायल अपने अस्तित्व का खतरा मानता है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पहले भी सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान पर बयान दे चुके हैं। अब सऊदी अरब के साथ नई रक्षा डील से इजरायल और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ सकता है।

 

जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर और पाकिस्तानी राजनीति के विश्लेषक अहसान बट का कहना है कि इस समझौते से पाकिस्तान इजरायल की प्राथमिकता सूची में ऊपर आ सकता है। अगर वह अभी टॉप 10 में है तो टॉप 5 में आ सकता है। यदि टॉप 5 में है तो टॉप 3 में आ जाएगा। उनका कहना है कि भविष्य में इजरायल की प्रतिक्रिया प्रत्यक्ष हो सकती है। इजरायल परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बना सकता है या हवाई हमला कर सकता है। अतीत में वह ऐसा कर चुका है।

क्या ईरान के साथ बिगड़ेंगे रिश्ते?

सऊदी अरब और ईरान के बीच दशकों पुरानी दुश्मनी है। लंबे समय से ईरान परमाणु बम बनाने की कोशिश में जुटा है। इससे सऊदी अरब चिंतित है। साल 2018 में मोहम्मद बिन सलमान ने कहा था कि अगर ईरान परमाणु हथियार हासिल कर लेता है तो हम भी ऐसा ही करेंगे। पत्रकार बॉब वुडवर्ड ने अपनी पुस्तक वार में बड़ा दावा किया। उनका कहनाहै कि अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम के साथ मीटिंग में सऊदी क्राउन प्रिंस ने कहा था कि उनको परमाणु संपन्न इस्लामाबाद पर भरोसा है। मोहम्मद बिन सलमान ने तब कहा था कि मुझे बम बनाने के लिए यूरेनियम की जरूरत नहीं है। मैं पाकिस्तान से एक बम खरीद लूंगा। 

 

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अब आशंका इस बात की है कि सऊदी अरब के जवाब में ईरान भी अपना परमाणु कार्यक्रम तेज कर सकता है। इसके अलावा बलूचिस्तान में आतंक के मुद्दे पर ईरान और पाकिस्तान के बीच कई बार तनातनी हो चुकी है। भविष्य में दोनों देशों के रिश्ते और बिगड़ सकते हैं। 

भारत के साथ टकराव होगी परीक्षा की सबसे बड़ी घड़ी

ब्रोकिंग्स में जोशुआ टी. व्हाइट ने लिखा कि यह नया समझौता सऊदी अरब और पाकिस्तान दोनों के लिए मूल्यवान है। मगर इसमें जोखिम भी है। भारत और पाकिस्तान संकट इस समझौते की राजनीतिक लचीलेपन की कड़ी परीक्षा लेगा। रियाद की अभी प्रवृत्ति निष्क्रिय रहने की है। वह भारत के साथ कड़ी मेहनत से अर्जित व्यापारिक समानताओं को बनाए रखते हुए पाकिस्तान के प्रति अपने सुरक्षा दायित्वों का पालन करेगा। ऐसे में संतुलन को बनाए रखना कठिन होगा।  भारत और सऊदी अरब के घनिष्ठ संबंध है और लगातार यह मजबूत होते जा रहे हैं। नई डील पर भारत ने भी प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस घटनाक्रम के हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा।

 

 

 

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