पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बाबरी मस्जिद का निर्माण ही मूल बेअदबी थी। सोशल मीडिया पर हंगामा मचा तो उन्होंने इस पर सफाई दी। डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि संदर्भ से हटकर उनके शब्दों को पेश किया गया है। अयोध्या विवाद पर उनकी टिप्पणी की गलत व्याख्या की गई।
मुंबई में आयोजित इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में पूर्व सीजेआई ने कहा, 'सोशल मीडिया पर लोग जवाब के एक हिस्से को उठाकर दूसरे हिस्से से जोड़ देते हैं। इससे उसका संदर्भ पूरी तरह से हट जाता है। उन्होंने कहा कि फैसला आस्था नहीं, बल्कि साक्ष्यों के आधार पर दिया गया था।
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चंद्रचूड़ ने आगे कहा, 'फैसला 1,045 पन्नों का था, क्योंकि केस का रिकॉर्ड ही 30,000 पन्नों से अधिक का था। आलोचना करने वाले अधिकांश लोगों ने फैसला नहीं पढ़ा है। बिना पढ़े सोशल मीडिया पर राय पोस्ट करना आसान है।'
सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 2019 में सर्वसम्मति से राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया था। डीवाई चंद्रचूड़ भी इसी पीठ का हिस्सा थे। पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में न्यूजलॉन्ड्री को इंटरव्यू दिया। इसमें उन्होंने अयोध्या विवाद पर खुलकर बात की। जब उनसे अयोध्या विवाद का फैसला हिंदुओं के पक्ष में देने से जुड़ा सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट का फैसला आस्था नहीं बल्कि सबूतों पर था।
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उनसे आगे पूछा गया कि साल 1949 में अवैध तरीके से रामलला की मूर्ति बाबरी मस्जिद में रखी गई। यह तथ्य हिंदू पक्ष के खिलाफ क्यों नहीं गया? जवाब में डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि इसकी शुरुआत और पहले से होती है। असल में उस जगह पर मस्जिद का निर्माण मूल बेअदबी थी। क्या हम इतिहास को भूल जाएंगे?
'न्यायिक आजादी को दो तरह से देखा जाता'
पूर्व जस्टिस चंद्रचूड़ का कहना है कि सोशल मीडिया पर न्यायिक आजादी को दो तरह से देखा जा रहा है। उन्होंने कहा, 'जब तक कोई न्यायाधीश हर मामले का फैसला नेटिजन के हिसाब से नहीं करता है तब तक उसे स्वतंत्र नहीं माना जाता। स्वतंत्रता को सिर्फ सरकार के खिलाफ फैसलों के तौर पर देखा जाता है। अगर आप सरकार के पक्ष में एक भी मामला दिया तो तो आपको सरकार समर्थक कहा जाता है। उन्होंने सरकार के खिलाफ चुनावी बॉन्ड और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने के फैसलों का जिक्र किया।