चीन कैसे बना भारत का दुश्मन नंबर वन? आजादी से अब तक की कहानी
चीन और भारत के रिश्ते आज बेहद खराब हैं, मगर हमेशा ऐसे नहीं थे। हिंदी-चीनी भाई-भाई के साथ शुरु हुआ रिश्ता ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को खुली चीनी मदद तक जा पहुंचा है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग। AI Generated Image
अमेरिका के रक्षा विभाग ने 'विश्वव्यापी खतरा आकलन रिपोर्ट- 2025' जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान भारत को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है, जबकि भारत पाकिस्तान को सिर्फ सुरक्षा समस्या के तौर पर देखता है। इसी को ध्यान में रखकर पाकिस्तान अपनी रक्षा तैयारी में जुटा है। रिपोर्ट में चीन को भारत का दुश्मन नंबर वन बताया गया है। भारत अपनी सैन्य रणनीति चीन को ध्यान में रखकर बना रहा है। जो बात आज अमेरिका कह रहा है, वही बात 1998 में तत्कालीन रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडीस कह चुके हैं। फर्नांडीस ने चीन को पहला खतरा बताया था। तब उनके इस बयान पर बीजिंग ने नाराजगी जताई थी। आज बात भारत-चीन रिश्तों की। कैसे दोनों देशों के रिश्ते बिगड़े और चीन भारत का दुश्मन नंबर वन बना?
दुनिया की लगभग 40 फीसदी आबादी भारत और चीन में रहती है। 1945 में जापान के आत्मसमर्पण के बाद चीन को आजादी मिली। आजादी के 4 साल बाद तक चीन में गृह युद्ध चलता रहा। 1949 में माओ ने अपनी जीत के बाद पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की। भारत को चीन से दो साल बाद यानी 1947 में आजादी मिली। शुरुआती दशकों में भारत और चीन के संबंध बेहद अच्छे रहे हैं। 1950 में भारत ने चीन के साथ राजनयिक संबंधों की स्थापना की। एशिया में चीन को मान्यता देने वाला भारत पहला गैर-साम्यवादी देश बना।
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कैसे बिगड़े भारत और चीन के रिश्ते?
गृह युद्ध जीतने के बाद चीन ने साल 1950 में तिब्बत पर आक्रामण कर दिया। भारत ने दलाई लामा को अपने यहां शरण दी। कहा जाता है कि यहीं से भी भारत और चीन के रिश्तों में खटास आई। हालांकि भारत और चीन के बीच साल 1954 में पंचशील समझौता हुआ। इस समझौते पर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और गैर-हस्तक्षेप पर फोकस किया गया। बाद में यही द्विपक्षीय संबंधों का आधार बना। भारत और चीन के रिश्ते साल 1958 से बिगड़ने लगे।
चीन ने चाइना पिक्टोरियल में उत्तरी असम और नेफा का एक बड़ा हिस्सा अपने क्षेत्र में दिखाया। भारत ने इसका खुलकर विरोध किया। अगले साल चीन ने पहली बार लद्दाख और नेफा के 40000 वर्ग मील से अधिक भारतीय क्षेत्र पर अपना दावा किया। इसी साल चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने मैकमोहन रेखा को मानने से इनकार कर दिया और सिक्किम व भूटान में लगभग 50000 वर्ग मील के क्षेत्रफल पर अपना ठोंक किया।
1962 का युद्ध और चीन का धोखा
1962 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग में बड़ा हमला किया। लद्दाख में रेजांग ला और चुशूल हवाई अड्डे पर बमबारी की। चीनी सैनिकों ने बोमडिला पर कब्जा कर लिया। इस युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा। 21 नवंबर 1962 को चीन ने एकतरफा युद्धविराम का एलान किया और अपने सैनिकों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से 20 किमी दूर बुला लिया। तब से दोनों देशों की सेनाएं एलएसी पर तैनात हैं।
1667 में जब 300 चीनी सैनिक मारे गए
1967 में भी भारत और चीन के बीच संघर्ष हुआ था। यह संघर्ष नाथुला में हुआ। इसमें चीन के 300 सैनिकों की जान गई। भारत के 65 सैनिकों ने बलिदान दिया था। 1975 अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में असम राइफल्स के जवान पेट्रोलिंग कर रहे थे। तभी उन पर हमला किया गया। इसमें चार जवानों ने अपना सर्वोत्तम बलिदान दिया।
डोकलाम और गलवान की घटना
कांग्रेस सरकार में 2013 में चीन ने लद्दाख में एलएसी के लगभग 19 किमी अंदर डेपसंग बल्ज तक घुसपैठ कर ली थी। इस क्षेत्र को उसने अपने शिनजियांग प्रांत का हिस्सा बताया। बाद में चीनी सैनिकों को पीछे हटना पड़ा। 2017 में भारत और चीन के सैनिकों के बीच 72 दिनों तक डोकलाम में गतिरोध चला। बाद में कूटनीतिक तरीके से इसका समाधान निकाला गया। तीन साल बाद 2020 में चीन ने भारत को एक बार फिर धोखा दिया। लद्दाख क्षेत्र में चीन ने घुसपैठ करने की कोशिश की। गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई। इसमें भारत के 20 और चीन के 45 सैनिकों की जान गई। 1975 के बाद एलएसी पर पहली बार सैनिकों की जान गई थी।
भारत और चीन के बीच कहां-कहां विवाद?
भारत और चीन के बीच अक्साई चिन के मुद्दे पर विवाद है। चीन ने लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर के भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है। यह क्षेत्र लद्दाख और जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है। दोनों देशों के बीच लगभग 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा है। सीमा निर्धारित न होने का कारण चीन अक्सर घुसपैठ की कोशिश करता है। अरुणाचल प्रदेश के लगभग 90000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को भी चीन दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है। ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की तैयारी में है। भारत इसके खिलाफ है। आशंका है कि चीन भविष्य में नदी के प्रवाह को कंट्रोल कर सकता है।
अरुणाचल प्रदेश पर गलत दावा करता है चीन
चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता है। वह अक्सर स्थानों और नदियों के नाम बदलता रहता है। 2007 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री को वीजा देने से मना कर दिया था। उसका तर्क था कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है। इस कारण वीजा की जरूरत नहीं है। 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणाचल यात्रा पर चीन ने आपत्ति जताई थी। भारत चीन के इस दावे का विरोध करता है।
भारत के खिलाफ चीन और पाकिस्तान की करीबी
चीन भारत के खिलाफ पाकिस्तान को एक मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के समय चीन ने पाकिस्तान को मिसाइल और तकनीकी सहायता प्रदान की। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर भारी भरकम निवेश करने में जुटा है। 1963 से चीन और पाकिस्तान ने एक सीमा समझौता किया था। इसके तहत पाकिस्तान ने पीओके का लगभग 5080 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अवैध तरीके से चीन को सौंप रखा है। भारत के खिलाफ चीन लगातार पाकिस्तान को सैन्य मदद देता है। पाकिस्तान के आतंकियों को भी कई बार चीन संयक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंच पर बचा चुका है।
भारत के खिलाफ साजिश रच रहा चीन
भारत चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ है। म्यांमार से मालदीव और श्रीलंका तक चीन अपनी मौजूदगी भारत को घेरने के उद्देश्य से बनाना चाहता है। हाल ही में उसने बांग्लादेश के लालमोनिरहाट में एयरबसे बनाने पर दिलचस्पी दिखाई। नेपाल के साथ भारत के रिश्ते बिगड़ने के बीच चीन का ही हाथ रहा है। कुछ समय पहले मालदीव और भारत के रिश्तों में खटास आई थी। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को चीन समर्थक माना जाता है। भारत के खिलाफ चीन हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी को बढ़ाने में जुटा है। उधर, भारत भी चीन को घिरने के लिए बने क्वाड जैसे संगठन का हिस्सा है।
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2019 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पीएम मोदी को चुनाव जीतने पर सबसे पहले बधाई संदेश भेजा था। मगर 2024 में तीसरी बार पीएम बनने पर शी जिनपिंग ने कोई संदेश नहीं भेजा। 2023 में भारत की अध्यक्षता में जी20 शिखर सम्मलेन में भी शी जिनपिंग ने हिस्सा नहीं लिया था। उधर, पाकिस्तान में नवाज शरीफ और बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस को जिनपिंग ने बधाई संदेश भेजा था।
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