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चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर: भारत-रूस की यह रणनीति चीन के सामने चुनौती क्यों?

भारत और रूस के बीच विकसित चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर चीन के सामने बड़ी चुनौती है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत की मौजूदगी बढ़ेगी। वहीं दक्षिण चीन सागर में बीजिंग के प्रभाव को चुनौती मिलेगी। आसियान देशों के साथ भारत और रूस के व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने का मौका मिलेगा।

Chennai-Vladivostok corridor

फाइल फोटो। (Photo Credit: PTI)

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गाजा पर इजरायली हमले के बाद पश्चिम एशिया में तनाव है। लाल सागर और अरब सागर पर हूती विद्रोही लगातार मालवाहक जहाजों को अपना निशाना बनाते हैं। इससे ग्लोबल शिपिंग रूट की सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं दुनियाभर को सताने लगी हैं। उधर, ईरान और अमेरिका के संबंध खराब हैं। भले ही अमेरिका ने अभी चाबहार बंदरगाह को छूट दे रखी है, लेकिन किसी भी वक्त वह इस पर प्रतिबंध भी लगा सकता है। भारत मौजूदा समय में रूस से अपना अधिकांश व्यापार इसी बंदरगाह और स्वेज नहर के रास्ते करता है। भविष्य में किसी भी असुविधा से बचने की तैयारी भारत ने अभी से ही शुरू कर दी है। केंद्र सरकार चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर पर अब अधिक फोकस कर रही है। आइये जानते हैं कि यह पूरा प्रोजेक्ट क्या है, इसकी जरूरत क्यों पड़ी और भारत को क्या फायदा होगा?

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में रूस के व्लादिवोस्तोक का दौरा किया था। इसी दौरान उन्होंने चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर का प्रस्ताव रखा था। भारत और रूस ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। कोविड महामारी और यूक्रेन युद्ध के कारण प्रोजेक्ट काफी समय तक अटका रहा। मगर अब यह 2024 से चालू है। इस कॉरिडोर के विकसित होने से शिपिंग टाइम और परिवहन लागत में कमी आई है। खास बात यह है कि चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने का एक अहम केंद्र बन गया है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे के बाद यह कॉरिडोर एक बार फिर चर्चा में है। 

 

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भारत के लिए क्यों अहम है कॉरिडोर? 

यह समुद्री कॉरिडोर भारत के चेन्नई बंदरगाह को रूस के व्लादिवोस्तोक बंदरगाह को जोड़ता है। यह जलमार्ग मलक्का जलडमरूमध्य, दक्षिण चीन सागर और जापान सागर के रास्ते गुजरता है। अगर इसकी लंबाई की बात करें तो यह 10,300 किलोमीटर लंबा है। अभी तक भारत सेंट पीटर्सबर्ग-मुंबई कॉरिडोर से अधिकांश व्यापार करता है। इसकी लंबाई 16,066 किमी है। यानी चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर 5,608 किमी छोटा मार्ग है। इसके अलावा स्वेज नहर के रास्ते सामान को मुंबई तक पहुंचने में करीब 40 दिनों का समय लगता है। मगर चेन्नई-व्लोदिवोस्तोक कॉरिडोर के माध्यम से वही सामान सिर्फ 24 दिन में पहुंच जाता है।

लाल सागर पर निर्भरता होगी कम

लाल सागर पर मालवाहक जहाजों पर हमले के बाद दुनियाभर के जहाज स्वेज नहर की बजाय दक्षिण अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप से होकर गुजरते हैं। यह रास्ता काफी लंबा है। इससे परिवहन लागत काफी बढ़ जाती है। भारत ने चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर को सुरक्षा और कम लागत के दृष्टिकोण से विकसित किया है। आंकड़े बताते हैं कि भारत की चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। इस कॉरिडोर में पिछले वित्तीय वर्ष में कोयले की ढुलाई में 87 और कच्चे तेल के व्यापार में 48 फीसद का इजाफा देखने को मिला। 

 

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कॉरिडोर से क्या-क्या भेजा जा रहा?

भारत अभी अपना अधिकांश कच्चा तेल रूस से ही खरीदता है और इसकी आपूर्ति इसी चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर से होती है। देश के बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल के मुताबिक चेन्नई -व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री कॉरिडोर से तेल, खाद्यान्न और मशीनें की आपूर्ति की जा रही है। समझौते के मुताबिक दोनों देश कोयला, तेल, तरलीकृत प्राकृतिक गैस, उर्वरक, कंटेनर व अन्य कार्गो परिवहन के उद्देश्य से चेन्नई और व्लादिवोस्तोक के बीच एक कॉरिडोर विकसित करने पर सहमत थे।

भारत को क्या फायदा?

भारत की अभी तक अधिकांश निर्भरता पश्चिमी बाजार पर है। मगर यह कॉरिडोर रूस के पूर्वी हिस्से से सीधे जोड़ता है। रूस का यह इलाका संसाधनों के लिहाज से बेहद संपन्न है। मतलब साफ है कि भारत की पहुंच भी इन संसाधनों तक हो जाएगी। भविष्य में रूस और भारत मिलकर अपने व्यापारिक हितों को साध सकते हैं।

 

चाबहार और स्वेज नगर मार्ग पर भारत की निर्भरता कम होगी। सुरक्षित और कम समय में माल की ढुलाई सुनिश्चित होगी। दक्षिण चीन सागर पर भारत को रणनीतिक पहुंच हासिल होगी। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत चीन के प्रभाव को सीधे चुनौती दे सकेगा। भारत और रूस किसी एक समुद्री मार्ग पर निर्भर नहीं रहेंगे। चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर एक नया विकल्प होगा।

 

इस कॉरिडोर के माध्यम से भारत और रूस के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत होंगे। भारत जहां रूस से कच्चा तेल, खाद और कोयला खरीदता है तो वहीं रूस को कपड़ा और  इंजीनियरिंग सामान भेजता है। इससे भारत की एक्ट फार ईस्ट नीति को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। प्लान के मुताबिक चेन्नई-व्लोदिवोस्तोक कॉरिडोर से इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देशों को जोड़ने की तैयारी है।  

रूस तक पहुंचाने के कौन-कौन से कॉरिडोर?

भारत अभी स्वेज नहर के अलावा अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे के माध्यम से रूस और यूरोप के बीच व्यापार करता है। यह गलियारा मायानगरी मुंबई को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग को जोड़ता है। इसकी कुल लंबाई 7,200 किमी है। साल 2000 में भारत, ईरान और रूस के समझौते के बाद यह कॉरिडोर अस्तित्व में आया। इसमें कुल 13 देश और तीन मार्ग शामिल है। 

 

  • केंद्रीय कॉरिडोर: भारत से ईरान के रास्ते रूस तक।
  • पश्चिमी कॉरिडोर: भारत-ईरान और अजरबैजान से रूस तक।
  • पूर्वी कॉरिडोर: मध्य एशियाई देशों से भारत को रूस से जोड़ता है।

 


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