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क्या वकालत छोड़ चुके मुनसिफ भी बन सकते हैं जज? SC करेगा फैसला

केरल हाई कोर्ट ने एक मुनसिफ मजिस्ट्रेट की नियुक्ति को इसलिए रद्द कर दिया कि क्योंकि वह उस वक्त वकालत नहीं कर रहे थे, लेकिन अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक पीठ को भेजा गया है।

Representational image । Photo Credit: PTI

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: PTI

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण मामले को पांच जजों की संवैधानिक पीठ को भेजने का फैसला किया। यह मामला इस सवाल से जुड़ा है कि क्या सात साल तक वकालत कर चुके एक ज्यूडिशियल ऑफिसर को जिला जज के पद पर नियुक्त किया जा सकता है। इसके अलावा, यह भी तय किया जाएगा कि जिला जज की नियुक्ति के लिए योग्यता की जांच आवेदन के समय अथवा नियुक्ति के समय या दोनों समय करनी चाहिए।

 

चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि यह मामला संविधान के अनुच्छेद 233(2) की व्याख्या से जुड़ा है, जिसमें कहा गया है कि जिला जज के पद पर वही व्यक्ति नियुक्त हो सकता है, जो केंद्र या राज्य सरकार की सेवा में न हो और कम से कम सात साल तक वकील या प्लेडर रहा हो।

 

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मुनसिफ के पद पर थे

चीफ जस्टिस गवई ने इस बात के संकेत दिए कि इस मामले की सुनवाई जल्द शुरू हो सकती है। यह आदेश केरल हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई के दौरान आया। केरल हाई कोर्ट ने एक जिला जज की नियुक्ति को रद्द कर दिया था, क्योंकि नियुक्ति के समय वह व्यक्ति वकालत नहीं कर रहा था और ज्यूडिशियल सेवा में मुनसिफ के रूप में कार्यरत था।

क्या है मामला?

यह मामला रजनीश केवी नाम के एक व्यक्ति से जुड़ा है। रजनीश ने जिला जज के पद के लिए आवेदन किया था, जब उनके पास सात साल की वकालत का अनुभव था। उसी दौरान, उन्होंने मुनसिफ/मजिस्ट्रेट के पद के लिए भी आवेदन किया था। जिला जज की चयन प्रक्रिया चल ही रही थी, लेकिन उन्हें उसके पहले 28 दिसंबर 2017 को मुनसिफ-मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्ति मिल गई। बाद में, जब उन्हें जिला जज के पद पर नियुक्ति का आदेश मिला, तो उन्होंने 21 अगस्त 2019 को मुनसिफ का पद छोड़ दिया और 24 अगस्त 2019 को तिरुवनंतपुरम में जिला जज के रूप में कार्यभार संभाला।

 

हालांकि, एक अन्य उम्मीदवार, के. दीपा ने रजनीश की नियुक्ति को केरल हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनका कहना था कि नियुक्ति के समय रजनीश वकालत नहीं कर रहे थे और ज्यूडिशियल सेवा में थे, इसलिए वे जिला जज के पद के लिए योग्य नहीं थे। हाई कोर्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के धीरज मोर बनाम दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि जिला जज के लिए आवेदन करने वाला वकील नियुक्ति की तारीख तक वकालत करता रहना चाहिए।

 

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हाई कोर्ट में हुई थी अपील  

केरल हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने दीपा की याचिका को स्वीकार करते हुए रजनीश की नियुक्ति रद्द कर दी। डिवीजन बेंच ने भी इस फैसले को सही ठहराया, लेकिन यह भी कहा कि देश भर में कई राज्यों में जिला जजों की नियुक्तियां हो सकती हैं, जो धीरज मोर के फैसले के खिलाफ हों। इसलिए, हाई कोर्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की अनुमति दी, क्योंकि इसमें कानून का महत्वपूर्ण सवाल शामिल है।

 

सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में केरल हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। अब यह मामला पांच जजों की संवैधानिक पीठ के सामने जाएगा, जो इस सवाल का अंतिम जवाब देगी।

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