52वें CJI बने बी आर गवई, पुराने फैसलों से जानिए उनकी पूरी कहानी
जस्टिस बी आर गवई अब देश के 52वें चीफ जस्टिस बन गए हैं। महाराष्ट्र के अमरावती से आने वाले जस्टिस गवई देश के ऐसे दूसरे चीफ जस्टिस हैं जो दलित समुदाय से आते हैं।

शपथ ग्रहण करते जस्टिस बी आर गवई, Photo Credit: PTI
सोचिए आप किसी मामले में दोषी हैं और ऊपर से जज का ऑर्डर आता है कि आपको सजा के तौर पर 1 रुपये का जु्र्माना चुकाना है और आप मामले से दोषमुक्त। 1 रुपये का जुर्माना, जी हां। आपने सही सुना। एक पूरा चमकदार, गोल-मटोल एक रूपया। न ज्यादा न कम। यह वह राशि है जो आपके गुनाहों की सजा के तौर पर तय की गई है। अब सवाल है कि आखिर इतनी सस्ती और रहमदिल सजा क्यों? क्या आपने कोई ट्रैफिक सिग्नल तोड़ा है, ट्रेन में बिना टिकट सफर किया? बात शुरू होती है जाने माने वकील प्रशांत भूषण के 2 ट्वीट से। पहले ट्वीट में उन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की महंगी मोटरसाइकिल पर बैठे तस्वीर का उल्लेख किया। वहीं, दूसरे ट्वीट में उन्होंने पिछले 6 वर्षों के मुख्य न्यायाधीशों के आचरण पर टिप्पणी की थी। उनकी इस टिप्पणी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनका यह ट्वीट न्यायालय की छवि खराब करता है। जिसके बाद जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस कृष्ण मुरारी जे और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को गिल्टी माना और दंड स्वरूप 1 रुपये का जुर्माना लगाया। 1 रुपये का जुर्माना लगाना हर तरफ चर्चा का विषय बन गया। उस 1 रुपये का आदेश देने वाली बेंच का हिस्सा रहे, जस्टिस गवई अब सुप्रीम कोर्ट के 52वें मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं।
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई एक राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। वह बाद में बिहार और केरल के राज्यपाल भी बने। अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षों में गवई ने अपने पिता के साथ सामाजिक और राजनीतिक कार्यों को काफी निकट से देखा। जिससे उनकी सोच पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अमरावती में ही पूरी हुई। प्रांरभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वह नागपुर चले गए। अपनी स्नातक की पढ़ाई उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से ही पूरी की। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनकी रुचि कानून के क्षेत्र में बढ़ने लगी। जिसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई करने की ठानी और नागपुर विश्वविद्यालय से ही एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। नागपुर विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद गवई ने वकालत करने की सोची और बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में प्रैक्टिस करने लगे।
पहली गलती
जस्टिस गवई ने अपने कानूनी करियर की शुरुआत 1985 में हाई कोर्ट जज बैरिस्टर राजा. एस. भोसले के साथ की। इस दौरान उन्होंने कोर्ट के कामकाज से केस की पैरवी से जुड़ी कानूनी बारीकियों को सीखा। एक रोचक किस्सा उनकी वकालत के शुरुआती दिनों का है, जब वह बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में वकील के रूप में काम कर रहे थे। उस दिन वह एक केस के सिलसिले में अपने सीनियर की मदद कर रहे थे। वह बिना कुछ ध्यान दिए रात-दिन उस केस से जुड़े कागजातों की जांच पड़ताल कर रहे थे। एक दिन वह इतना थक गए कि उन्होंने गलती से एक दस्तावेज में गलत तारीख लिख दी। अगले दिन जब कोर्ट में कागजात पेश किए गए तो जज ने इस त्रुटि को देखा और मुस्कुरा कर बोले, 'लगता है गवई साहब भविष्य में आप सुनवाई करने के मूड में हैं।'
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इस घटना से जस्टिस गवई थोड़ा शर्मिंदा हुए लेकिन उन्होंने इसे मजाक में लिया और इसे एक सबक के रूप में स्वीकार किया। गवई की कानूनी विशेषज्ञता और उनकी बहस करने की शैली ने उन्हें जल्द ही प्रतिष्ठित वकीलों की लिस्ट में शुमार कर दिया। देखते-देखते वह जल्द ही सरकारी वकील के रूप में निुयक्त हो गए। सरकारी वकील के रूप में उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसलौं पर राज्य सरकार का पक्ष बखूबी रखा। उनकी निष्पक्षता और कानूनी ज्ञान ने ही उन्हें न्यायिक महकमे में अलग सम्मान दिलाया। 2003 में उनकी कानूनी योग्यता को देखते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
#WATCH | Delhi: CJI BR Gavai greets President Droupadi Murmu, Prime Minister Narendra Modi, Vice President Jagdeep Dhankhar, former President Ram Nath Kovind and other dignitaries at the Rashtrapati Bhavan. He took oath as the 52nd Chief Justice of India.
— ANI (@ANI) May 14, 2025
(Video Source:… pic.twitter.com/yMUL0Sw3LH
14 नवंबर 2003 को बीआर गवई को बॉम्बे हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है। उनकी ईमानदारी छवि और फैसलों को देखते हुए 2005 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। बॉम्बे हाई कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए। बॉम्बे हाई कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान ही उन्होंने श्रम कानूनों और कर्मचारी अधिकारों से संबंधित मामलों में महत्वपूर्ण फैसले सुनाए। अपने इन फैसलों में उन्होंने कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए ऐतिहासिक फैसला दिया। उनके इस स्पष्ट फैसले ने उन्हें लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया और उनकी ईमानदार छवि की सभी ने प्रशंसा की। 24 मई 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। बॉम्बे हाई कोर्ट में उन्होंने कुल 16 वर्षों तक अपनी सेवाएं दी। इस दौरान उन्होंने मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी में अपनी सेवाएं दी। वह इस पद पर मई 2019 तक कार्यरत रहे।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस गवई के फैसले
हाई कोर्ट में जज रहने के दौरान बीआर गवई ने कई महत्वपूर्ण याचिकाओं की सुनवाई की। इसके बाद उन्हें 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्ति किया गया। अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस बीआर गवई ने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए जो कानून की दिशा में मील का पत्थर साबित हुए। उन्हें हमेशा निष्पक्षता, पारदर्शिता और कानून के शासन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के रूप में देखा जा रहा है। एक नजर डालते हैं, जस्टिस गवई के दिए गए 5 ऐतिहासिक फैसलों पर।
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नोटबंदी पर दिया गया ऐतिहासिक फैसला
8 नवंबर 2016 को भारत सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया। सरकार ने कहा नोटबंदी को लेकर एक स्पष्ट बयान जारी किया और कहा कि नोटबंदी का उद्देश्य काले धन को रोकना, नकली मुद्रा पर अंकुश लगाना और आतंकवाद के वित्त पोषण पर रोक लगेगी। सरकार के इस फैसले ने लोगों के आम जीवन पर बड़ा असर डाला। इससे आम जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ। इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई सारी जनहित याचिकाएं दायर की गईं। याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि सरकार का नोटबंदी का फैसला संविधान के अनुच्छेद 300 A संपत्ति के अधिकार का पूरी तरह से उल्लघंन करता है और RBI अधिनियम 1934 की धारा 26(2) के तहत सरकार की शक्ति का दुरुपयोग है।
इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने अपना फैसला दिया। पीठ ने सुनवाई के दौरान 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकार का नोटबंदी का फैसला सही था। उनके इस फैसले पर जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने असहमति जताई। जस्टिस गवई ने कहा कि नोटबंदी का फैसला सरकार की कार्यकारी नीति का हिस्सा है। जिसे संसद और आरबीआई के परामर्श से लिया गया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार का यह कदम सार्वजनिक हित में था। जिसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था को पारदर्शी और मजबूत बनाना है और कालेधन को रोकना है। गवई ने कहा कि नोटबंदी के कार्यान्वयन में कुछ कमियां हो सकती हैं लेकिन यह असंवैधानिक नहीं है। साथ ही गवई ने आरबीआई की धारा 26(2) को लेकर कहा कि सरकार किसी भी समय मुद्रा को अमान्य करती है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने सरकार के लिए गए फैसले पर पूरी तरह से मुहर लगा दी। जस्टिस गवई का इस मामले में रुख संतुलित था। जिसमें उन्होंने सरकार की मंशा को प्राथमिकता दी। विपक्षी दलों और कुछ अर्थशास्त्रियों ने कोर्ट के इस फैसलों की आलोचना की। वहीं, दूसरी ओर सरकार और समर्थकों ने इसे काले धन के खिलाफ अच्छा कदम बताया। जस्टिस गवई का इस फैसले में उनका रुख सरकार के पक्ष में था। लोगों ने इस बात पर बल दिया कि न्यायालय को सरकार के इस कदम की सराहना नहीं बल्कि समीक्षा करनी चाहिए थी।
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अनुच्छेद 370 पर फैसला
5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया और जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया। सरकार के इस फैसले को कई याचिकाओं क माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। जिसमें दावा किया गया कि सरकार का यह फैसला संविधान के मूल ढांचे का उल्लघंन करता है और ऐसा करना संसद की शक्ति से बाहर है। पांच जजों की संविधान पीठ इस फैसले की सुनवाई कर रही थी। जस्टिस बी आर गवई भी उस संवैधानिक पीठ का हिस्सा थे। 11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अनुच्छेद 370 पर अपना फैसला सुनाया और कहा कि सरकार का अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण करने का फैसला वैध था। जस्टिस गवई ने इस फैसले में तर्क दिया कि संविधान में अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। न कि स्थायी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रपति को संविधान के तहत अनुच्छेद 370 को हटाने का अधिकार है। गवई ने जोर दिया कि जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करना संसद की संप्रभु शक्ति के अंतर्गत था। इसमें संवैधानिक ढांचे का किसी तरह से कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। साथ ही कोर्ट ने यह भी माना कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पूरी तरह से वैध है क्योंकि संसद को राज्यों का पुनर्गठन करने का भी अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत के संघीय ढांचे और राष्ट्रीय एकीकरण के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने सरकार के फैसले को सही ठहराया। इस फैसले के बाद कुछ संगठनों ने इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बताया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवालिया निशान खडे़ किए। इस बेंच ने केंद्र सरकार के 2019 के कदम को वैध ठहराया। जस्टिस गवई के फैसले के बाद वह उन लोगों के निशाने पर आ गए जो सरकार के इस कदम को लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ मानते थे।
SC/ST के वर्गीकरण पर दिया गया फैसला
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर कोटे में कोटा यानी वर्गीकरण का मुद्दा लंबे समय से न्यायपालिका के समक्ष विवाद का विषय रहा है कि क्या राज्यों को SC/ST समुदाय के बीच आरक्षण को विभाजित करने का अधिकार है। 2004 के ई वी चिन्नैया मामले में कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना। 7 जजों की बेंच ने 6:1 के बहुमत से फैसला सुनाया और कहा SC/ST में सब क्लासिफिकेशन वैध है। जस्टिस गवई ने कहा कि SC/ST समुदाय के भीतर सामाजिक और आर्थिक विषमताएं बड़े स्तर पर हैं और सब क्लासिफिकेशन इन असमानताओं को दूर करने एक सबसे अच्छा तरीका है।
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उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 15(4) और 16(4) में राज्यों को सामाजिक रूप से पिछडे़ लोगों के लिए विशेष प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि सब क्लासिफिकेशन यानी उप वर्गीकरण से क्रीमी लेयर को बाहर करने और ज्यादा से ज्यादा हाशिये पर खड़े लोगों को लाभ पहुंचाने में मदद करेगा। कोर्ट का यह फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था क्योंकि इसने राज्यों को इन समुदाय के लोगों को लाभ पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया। जो आरक्षण के लाभ से वंचित थे। हालांकि, कोर्ट के इस फैसले के बाद क्रीमी लेयर के मुद्दे पर नई बहस छिड़ गई।
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2018 में शुरू की गई थी। इस स्कीम के तहत कोई भी व्यक्ति और कॉरपोरेट कंपनी किसी भी राजनीतिक दल को चंदा दे सकते थे। इसमें व्यक्ति की पहचान का खुलासा नहीं किया जाता था और उसकी पहचान गुप्त रहती थी। सरकार की इस पॉलिसी के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं, जिनमें कहा गया कि राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता की कमी है और यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लघंन करती है। जस्टिस गवई भी इस फैसले की सुनवाई करने वाली पीठ का हिस्सा थे। फरवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इससे जुड़ा एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया और इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पूरी तरह से असंवैधानिक घोषित कर दिया।
जस्टिस गवई ने अपने इस फैसले में तर्क दिया कि राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता नाम की कोई चीज नहीं है जबकि चंदे में पारदर्शिता लोकतंत्र का आधार है। गुमनाम तरीके से पार्टी को चंदा देना मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लघंन करता है। गवई ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम धनी और कॉरपोरेट्स लोगों को राजनीति और सरकार को अनुचित रूप से प्रभावित करती है। जो कि स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। गवई ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 19(1)(A) मतदाताओं को राजनीतिक दलों के मिलने वाले चंदे के बारे में जानने का अधिकार प्रदान करता है। कोर्ट ने सरकार की इस पॉलिसी को पूरी तरह से तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया। कोर्ट ने साथ ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को यह आदेश दिया कि चंदा देने वालों का विवरण तत्काल प्रभाव से सार्वजनिक किया जाए। कोर्ट का यह फैसला भारतीय लोकतंत्र को पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ानेवाला कदम था। इस फैसले ने राजनीतिक दलों के वित्तपोषण पर कॉरपोरेट के प्रभाव पर थोड़ा अंकुश जरूर लगाया।
बुलडोजर ऐक्शन पर फैसला
13 नवंबर 2024 को जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने राज्य सरकारों द्वारा की जा रही बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा दी। जस्टिस गवई ने मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि सिर्फ इसलिए किसी आरोपी का घर नहीं तोड़ा जा सकता है क्योंकि वह आरोपी है। कोर्ट ने कहा कि अगर वह दोषी है तो भी उसका घर नहीं गिराया जा सकता है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक गाइडलाइन जारी की। गाइडलाइन में कहा गया कि बुलडोजर ऐक्शन से पहले संबधित पक्ष को नोटिस देना अनिवार्य होगा। वहीं नोटिस देने के बाद कम से कम 15 दिन तक किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। जिससे व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का भरपूर मौका मिले। साथ ही कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि ऐसी कार्रवाई कानून के शासन का लोगों के बीच डर को दर्शाती है। इस तरह की कार्रवाई को लोकतांत्रिक व्यवस्था में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि उसकी यह गाइडलाइन एक लक्ष्मण रेखा की तरह है, जिसका पालन सभी राज्यों को करना होगा। कोर्ट का यह आदेश किसी एक ही राज्य तक सीमित नहीं है बल्कि यह आदेश पूरे देश पर लागू होगा। कोर्ट ने सख्त लहजे में उन राज्यों को भी चेतावनी दी, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी बुलडोजर कार्रवाई कर रहे थे। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि लोकतंत्र में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना अनिवार्य है। जस्टिस बीआर गवई के इस आदेश के बाद उन लोगों में उम्मीद जगी। जिन्होंने बलुडोजर कार्रवाई में अपने घरों और संपत्ति को खोया था।
मोदी सरनेम विवाद में राहुल गांधी की संसद सदस्यता पर फैसला
यह मामला साल 2019 से जुड़ा हुआ है। जब कर्नाटक में एक चुनावी रैली के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक टिप्पणी की थी। राहुल गांधी ने कहा था, 'ललित मोदी, नीरव मोदी और नरेंद्र मोदी का सरनेम कॉमन क्यों है? इन सभी चोरों का सरनेम मोदी ही क्यों है?' जिसके बाद बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया। सूरत की एक निचली अदालत ने इस मामले की सुनवाई करते हुए राहुल गांधी को दोषी ठहराया। सूरत की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उन्हें 2 साल की सजा सुनाई। जिसके बाद उनकी लोकसभा सदस्यता समाप्त हो गई। राहुल गांधी ने इस फैसले के खिलाफ गुजरात हाई कोर्ट में अपील की थी लेकिन हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाने से पूरी तरह से इनकार कर दिया।
हाई कोर्ट के इस फैसले को राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इस मामले की सुनवाई जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने की। जिसमें जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस संजय कुमार भी थे। सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने कहा कि उनके पिता कांग्रेस से कई सालों तक जुडे़ रहे और उनके भाई अभी भी कांग्रेस से जु़ड़े हुए हैं। कृपया आप लोग बताएं कि क्या मुझे इस केस की सुनवाई करनी चाहिए? जिसके बाद दोनों पक्ष ने कहा कि उनके सुनवाई को लेकर किसी तरह की कोई आपत्ति नहीं है। दोनों पक्षों की सहमति के बाद जस्टिस बीआर गवई ने सुनवाई शुरू की। 4 अगस्त 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को दोषसिद्धि पर अंतरिम रोक लगा दी।। जस्टिस गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि निचली अदालत ने सजा देते समय न्यायिक पहलुओं का पालन नहीं किया। गवई ने कहा कि राहुल गांधी की संसद में अनुपस्थिति से जनता की आवाज दब रही है, खासकर जब संसद सत्र चल रहा हो तो। कोर्ट ने माना कि राहुल गांधी का बयान अपमानजनक है लेकिन इसे गंभीर अपराध में रखने के बजाय सामान्य अपराध में रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने राहुल गांधी को ऐसी बयानबाजी से बचने की सलाह दी। जस्टिस गवई के इस फैसले ने उनकी न्यायिक नैतिकता को रेखांकित किया। उनके इस फैसले ने यह साबित कर दिया कि भारतीय न्यायपालिका संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रशांत भूषण पर लगाया 1 रुपये का जुर्माना
साल 2020 में बीआर गवई का तीन जजों की बेंच के साथ दिया गया फैसला सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। जब उन्होंने वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ 1 रुपये का जुर्माना का फैसला सुनाया था। दरअसल, जून 2020 में अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म से 2 ट्वीट किए थे। पहले ट्वीट में उन्होंने मुख्य जस्टिस शरद अरविंद बोबडे की एक बाइक के साथ ली गई फोटो पर टिप्पणी की थी। अपने दूसरे ट्वीट में पिछले 6 सालों के मुख्य न्यायाधीशों के आचरण पर टिप्पणी की थी। उनकी इस ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट की साख और फैसलों पर सवालों उठने लगे। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले का खुद से संज्ञान लिया और कहा कि उनका यह ट्वीट न्यायिक अवमानना के दायरे में आता है। कोर्ट ने प्रशांत भूषण से बिना शर्त माफी मांगने को कहा लेकिन उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया और कहा कि उन्होंने जो ट्वीट किए हैं उन पर उन्हें विश्वास है। उन्होंने आगे कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में न्यायपालिका की आलोचना करने का भी अधिकार शामिल है। बीआर गवई समेंत तीन सदस्यीय जजों की बेंच ने जिसके बाद उन पर 1 रुपये का जुर्माना या तीन महीने की जेल का फैसला सुनाया। बेंचे के इस फैसले के बाद भूषण ने कहा कि वह इस जुर्माने को अदा करेंगे।
राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों पर फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2022 को एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। जब जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारोपियों के 6 दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया। बीआर गवई ने अपने फैसले में कहा कि इन दोषियों ने लंबी सजा काट ली है और मानवीय आधार पर उनकी रिहाई होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 18 मई 2022 के आदेश का हवाला दिया। जिसमें दोषी ए.जी. पेराविलन को रिहा किया गय़ा था। कोर्ट ने उसी आधार पर शेष दोषियों की रिहाई का निर्णय लिया। तमिलनाडु सरकार ने 2018 में इन दोषियों की रिहाई की सिफारिश की थी। जिसे केंद्र सरकार ने स्वीकार नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की सिफारिश को प्राथमिकता दी थी।
जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई भारत के सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। आज उन्होंने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेली है। जस्टिस बीआर गवई अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले दूसरे मुख्य न्यायाधीश हैं। उनसे पहले जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन ने यह उपलब्धि हासिल की थी
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