करणी सेना प्रदर्शन: UP में बन रहा नया समीकरण, किसके पाले में गई गेंद?
रामजी लाल सुमन का बयान, करणी सेना का प्रदर्शन और सपा-बीजेपी की तरफ से हो रही बयानबाजियां यूपी में नए समीकरण पैदा कर रही हैं।

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उत्तर प्रदेश के आगरा में 12 अप्रैल को राणा सांगा की जयंती के मौके पर करणी सेना ने डंडे, तलवार और भगवा झंडों के साथ में हिंसक प्रदर्शन किया। हजारों की संख्या में जुटे करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने आगरा शहर में ऐसा उत्पात मचाया कि सुरक्षा में लगी पुलिस के भी होश उड़ गए। हालात यहां तक आ पहुंचे कि उग्र भीड़ ने नारेबाजी करते हुए तलवार-डंडों के बल पर पुलिस को ही घेर लिया, आगरा की कानून व्यवस्था पर सवाल उठ गए। भीड़ को रोकने के लिए खड़ी हुई पुलिस उल्टे पांव भागने पर मजबूर हो गई।
करणी सेना के कुछ कार्यकर्ताओं ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और पार्टी सांसद रामजी लाल सुमन के खिलाफ आपत्तिजनक बयान दिए। प्रदर्शन के दौरान धरनास्थल पर भारी संख्या में पुलिसबल भी पहुंचा लेकिन पुलिस को देखकर कार्यकर्ता भड़क गए। कार्यकर्ताओं ने पुलिस के सामने ही तलवारें और डंडे लहराए, जिससे स्थिति तनावपूर्ण हो गई।
दरअसल, सपा के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने 21 मार्च को राज्यसभा में राणा सांगा को लेकर एक बयान दिया था, जिसपर भारी विवाद हो गया। यह विवाद थमा नहीं है। इसी को लेकर करणी सेना रामजी लाल सुमन के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है।
रामजी लाल सुमन ने क्या कहा था?
सांसद रामजी लाल सुमन ने राज्यसभा में बोलते हुए कहा, 'बीजेपी वालों का तकिया कलाम हो गया कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है। फिर हिंदुओं में किसका डीएनए है? बाबर को कौन लाया? बाबर को भारत में इब्राहीम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा लाया था। मुसलमान बाबर की औलाद हैं तो तुम (हिंदू) गद्दार राणा सांगा की औलाद हो। यह हिंदुस्तान में तय हो जाना चाहिए। बाबर की आलोचना करते हैं, राणा सांगा की नहीं। देश की आजादी की लड़ाई में इन्होंने अंग्रेजों की गुलामी की थी।'
सुमन के इसी बयान के बाद से सियासी बवाल आ पैदा हो गया है। करणी सेना और राजपूत समाज के लोग गुस्से में आ गए हैं, इसी सिलसिले में करणी सेना के सदस्यों ने 26 मार्च को आगरा में रामजी लाल सुमन के घर पर हमला करके तोड़फोड़ की थी।
अब यह लड़ाई सिर्फ राजपूत समाज और राणा सांगा तक सीमित नहीं रह गई है बल्कि यह लड़ाई अब राजपूत बनाम दलित हो गई है।
वोटों की सियासत में बदली यूपी की राजनीति
राजपूत समाज का संग्राम अब दलितों की राजधानी आगरा (आगरा में दलितों का आबादी 23 फीसदी है) में वोटों की सियासत में बदल गई है। सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा राणा सांगा को लेकर दिए बयान के बाद बीजेपी ने इसे लपक लिया और पिछले लोकसभा चुनाव में कुछ हद तक नाराज हुए क्षत्रिय समाज को साध लिया। जबकि समाजवादी पार्टी ने इसे दलित स्वाभिमान से जोड़कर इसे नया रुख दे दिया।
बीजेपी ने बनाया मुद्दा
सपा सांसद ने जब से राज्यसभा में राणा सांगा को लेकर बयान दिया है तब से ही बीजेपी ने इसे मुद्दा बना दिया। पूरी बीजेपी पार्टी ने रामजी लाल और समाजवादी पार्टी के खिलाफ आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी। लेकिन बाद में समय बितने के साथ में बीजेपी के बोल नरम पड़ गए। पार्टी ने इसे दूसरी तरफ से मोड़कर करणी सेना के पाले में गेंद फेंक दी। 26 मार्च को सुमन के आगरा आवास पर हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद यह मामला क्षत्रिय अस्मिता का बनकर उभर गया।
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सपा की तरफ झुक रहे हैं दलित?
क्षत्रिय समाज इस समय बीजेपी का पारंपरिक वोटर है। अपने वोटर की खातिर बीजेपी नेताओं को मैदान में उतरना पड़ा लेकिन बीजेपी ने सामने ना आकर पर्दे के पीछे से काम किया। राजपूत समाज के जुड़े बीजेपी नेताओं की एक टीम ने आगरा में कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए मेहनत की। लेकिन अब समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़ा, दलित, मुसलमान) की काट के लिए बीजेपी को कुछ और सोचना पड़ेगा क्योंकि सपा सांसद रामजी लाल सुमन दलित समाज से आते हैं। बीजेपी जितना सुमन के खिलाफ मुखर हो रही है दलित अपनी अस्मिता से जोड़कर सपा की तरफ झुक रहे हैं।
समाजवादी पार्टी को दिख रहा अपना फायदा
इस मुद्दे में अपना फायदा देखते हुए समाजवादी पार्टी ने सांसद रामजी लाल सुमन के घर पर हुए हमले के बाद सपा ने दलित कार्ड खेला और इसमें पार्टी सफल होती दिखाई दी। पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने इस घटना के बाद कहा था कि यह हमला सिर्फ हमला भर नहीं बल्कि यह एक दलित नेता के घर पर किया गया हमला है।
19 अप्रैल को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आगरा में रामजी लाल सुमन के घर पहुंच रहे हैं। इसका ऐलान पहले ही हो चुका है। अखिलेश पहले भी कह चुके हैं कि समाजवादी पार्टी हर तरीके से अपने सांसद के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है। साथ ही सपा दलितों पर अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए लगातार कार्यक्रम कर रही है।
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सीएम योगी करेंगे आगरा का दौरा
दूसरी तरफ आगरा में 15 अप्रैल को बीजेपी एक कार्यक्रम करने जा रही है। इस कार्यक्रम में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुलावा भेजा गया है। इस कार्यक्रम में दलितों को जोड़ने के लिए बीजेपी से लेकर शासन -प्रशासन स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। सीएम योगी भी कह चुके हैं कि 14 अप्रैल को बाबा साबह भीमराव आंबेडकर की जयंती धूमधाम से मनाएगी।
दलित वोटों पर सबकी नजर
उत्तर प्रदेश की सियासत में बसपा के लगातार कमजोर होने कुमारी मायावती के पकड़ से बाहर निकलते दलित वोटों पर बीजेपी और सपा दोनों की नजर है। दलितों को बीजेपी से लेकर सपा और कांग्रेस तक अपने पाले में करने की जुगत में हैं। मायावती अपने खिसके हुए आधार को दोबारा से पाने के लिए कई प्रयोग करके देख चुकी हैं, लेकिन सफल नहीं हो रहा। इसी बीच में नगीना से लोकसभा सांसद चंद्रशेखर आजाद भी पश्चिम यूपी में दलित राजनीति का नया चेहरा बनकर उभरे हैं।
इन सबको देखते हुए रामजी लाल सुमन का बयान, करणी सेना का प्रदर्शन और सपा-बीजेपी की तरफ से हो रही बयानबाजियां यूपी में नए समीकरण पैदा कर रही हैं। ऐसे में समय आने पर देखने वाली बात होगी कि यूपी में बन रहा यह नया समीकरण, किसके पाले में जाएगा?
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