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भारत से वेटिकन सिटी तक, किस हाल में है LGBTQ समुदाय?

दुनिया और भारत में LGBTQ के अधिकारों को लेकर कई विवाद चलते हैं। कई देशों में कुछ अधिकार मिले हैं। किसी देश में कुछ भी अधिकार नहीं मिले हैं। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में समलैंगिकता को अपराध से मुक्त कर दिया था।

LGBTQ+ rights

LGBTQ के अधिकारों, Photo Credit- AI Generated Image

वेटिकन में पहली बार LGBTQ+ समुदाय के लोग तीर्थयात्रा का हिस्सा बने। लगभग 1400 कैथोलिक, वेटिकन चर्च के 25 साल पूरे होने वाले में परेड में भाग ले रहे थे। इसमें पहली बार  LGBTQ+  को आधिकारिक रूप से इस परेड में शामिल कराया गया। भारत में, सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में समलैंगिकता को अपराध से मुक्त कर दिया। 2023 में समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता नहीं दी, जिससे कानून बनाने की शक्ति संसद को दी गई। ट्रांसजेंडर व्यक्ति अपने कानूनी लिंग को बदलने में सक्षम हैं और उन्हें संवैधानिक अधिकार मिले हैं। 

 

दुनिया में, LGBTQ+ अधिकारों को स्वीकार करने और भेदभाव को खत्म करने के प्रयासों में बहुत अंतर है। विकसित देशों में स्वीकृति दर अधिक है, जबकि कुछ गरीब और कम विकसित देशों में स्वीकार्यता कम पाई जाती है। 

 

2018 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया, जिससे समलैंगिकता के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए अनुच्छेद 15 के दायरे में उसे शामिल किया गया। 2023 में, सुप्रीम कोर्ट (SC)  ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था।  SC ने यह कहा कि, 'यह निर्णय संसद और राज्य विधानसभाओं की जिम्मेदारी है।'

भारत में क्या स्थिति है?

भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्ति 'तीसरे लिंग' या 'अन्य' लिंग के रूप में कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त हैं।  उन्हें पुरुषों और महिलाओं के समान मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। इसमें समानता, गैर-भेदभाव, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार शामिल है। 2014 के राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के फैसले ने ट्रांसजेंडर पहचान को मान्यता दी।

 

साथ ही केंद्र व राज्य सरकारों को उनके लिए कानूनी मान्यता, सामाजिक कल्याण योजनाएं और भेदभाव से निपटने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया। 2019 में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम पारित किया गया, जो शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आवास और रोजगार में गैर-भेदभाव सुनिश्चित करता है और अपराधों के लिए दंड का प्रावधान करता है। 

 

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ट्रांसजेंडर को मिले अधिकार

 

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपनी लिंग पहचान स्वयं निर्धारित करने और उसे कानूनी रूप से मान्यता देने का अधिकार दिया। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भारतीय संविधान के तहत समानता, गैर-भेदभाव, सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 15, 16, 19, 21) का अधिकार है। 

 

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019: इस अधिनियम ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज में समान अवसर और सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक कानूनी ढांचा स्थापित किया। 

 

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दुनिया में LGBTQ समुदाय को मिले अधिकार

कुछ देशों में, राजनीतिक और धार्मिक विचारधाराएं समलैंगिकता के खिलाफ हैं।  संयुक्त राष्ट्र (UN) LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों की वकालत करता है। इसमें भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने, LGBTQ+ लोगों के लिए घृणा अपराधों में सजा दिलाना शामिल है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आधिकारिक दस्तावेज प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करने वाले कानूनों को अपनाना शामिल है। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून (International Human Rights Law) सभी व्यक्तियों पर लागू होता है। इसमें लिंग और लैंगिक पहचान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। 

 

अमेरिका और ब्रिटेन में

अमेरिका और ब्रिटेन दोनों में LGBTQ+ अधिकार मौजूद हैं। दोनों देश के इतिहास और कानूनी प्रक्रियाएं अलग-अलग हैं। अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट के 2015 के फैसले ने पूरे देश में समलैंगिक विवाह को वैध बना दिया, जबकि ब्रिटेन में भी 2013-2020 के बीच समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिली। दोनों देशों में LGBTQ+ समुदायों के लिए महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। जैसे कि भेदभाव से सुरक्षा के कानून, खासकर ट्रांसजेंडर अधिकारों और समाज में स्वीकृति के मामले में अब भी चुनौतियां बरकरार हैं। 

 

फिनलैंड में स्थिति

फिनलैंड में LGBTQ+ लोगों को कानूनी तौर पर सुरक्षा प्राप्त है। जिसमें लिंग पहचान के आधार पर भेदभाव पर रोक शामिल है। 2002 में लैंगिक समान रजिस्ट्रेशन शुरू किया गया, जिसने उन्हें समान अधिकार दिए, लेकिन बाद में 2017 में बंद कर दिया गया। हालांकि, 2017 से समलैंगिक जोड़े विवाह कर सकते हैं। फिनलैंड में समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने की अनुमति है। 

 

जर्मनी में मिलने वाले अधिकार

जर्मनी में LGBTQ+ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और अन्य) लोगों को लिंग पहचान के आधार पर भेदभाव से मजबूत कानूनी सुरक्षा प्राप्त है। इसमें समलैंगिक विवाह की वैधता पर प्रतिबंध शामिल हैं। हाल के वर्षों में, समलैंगिक पुरुषों पर किए गए अत्याचारों के लिए मुआवजा देने और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अपने पसंदीदा लिंग को आधिकारिक दस्तावेजों में शामिल करने को आसान बनाने जैसे कदम उठाए गए हैं।  

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