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फर्जी दस्तावेज, अफसरों की मिलीभगत; मां-बेटे ने ऐसे बेच दी IAF की जमीन

पंजाब के फिरोजपुर में बनी वायुसेना की हवाई पट्टी बेचने के आरोप में मां-बेटे के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। यह जमीन 1997 में फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर कुछ लोगों को बेच दी गई थी।

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प्रतीकात्मक तस्वीर। (Photo Credit: PTI)

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पंजाब के फिरोजपुर से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां मां-बेटे ने मिलकर एयरफोर्स की हवाई पट्टी ही बेच डाली। मां-बेटे पर फत्तू वाला गांव में बनी हवाई पट्टी बेचने का आरोप लगा है। इस मामले का खुलासा एक व्हीसलब्लोअर की शिकायत पर हुआ। 


आरोप है कि मां-बेटे ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए इस हवाई पट्टी को 1997 में बेच दिया था। यह हवाई पट्टी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बनी थी। इसका इस्तेमाल वायुसेना ने 1962, 1965 और 1971 की जंग में भी किया था। न्यूज एजेंसी ANI की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में मां उषा अंसल और उनके बेटे नवीन चंद अंसल के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। दोनों फिरोजपुर के डुमनी वाला गांव के रहने वाले हैं। फिलहाल दोनों दिल्ली में रहते हैं।


पुलिस ने बताया कि मां और बेटे ने मिलकर जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल कर इस हवाई पट्टी को बेच दिया था। इस जमीन को दोनों ने 1997 में बेचा था। अब 28 साल बाद केस दर्ज हुआ है।

 

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ऐसे हुआ इस मामले का खुलासा?

इस मामले में सबसे पहली शिकायत एक रिटायर्ड अफसर कानूनगो निशान सिंह ने दर्ज कराई थी। हालांकि, इस पर कोई ऐक्शन नहीं लिया गया। साल 2021 में पंजाब के हलवारा एयरफोर्स स्टेशन के अधिकारियों ने इस मामले की जांच की लेकिन इससे भी कुछ खास नहीं निकला। बाद में निशान सिंह ने पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में इसे लेकर एक अर्जी दाखिल की।


आखिरकार इस मामले में मां-बेटे के खिलाफ कुलगढ़ी पुलिस थाने में FIR दर्ज की गई है। एसएसपी भूपिंदर सिंह ने बताया कि निशान सिंह की शिकायत पर केस दर्ज कर लिया गया है।

ऐसे बेच दी थी वायुसेना की जमीन

पुलिस ने बताया कि विजिलांस ब्यूरो के इंस्पेक्टर जगनदीप कौर ने इसकी जांच की। जांच में सामने आया कि आरोपियों ने रेवेन्यू डिपार्टमेंट के कुछ अफसरों के साथ मिलीभगत करके जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल करके वायुसेना की जमीन कुछ व्यक्तियों को बेच दी थी।


इस जमीन के असली मालिक मोहन लाल की 1991 में मौत हो गई थी। जमीन की बिक्री का सौदा 1997 में पूरा हुआ था। यह जमीन मुख्तियार सिंह, जागीर सिंह, सुरजीत कौर, मंजीत कौर, दारा सिंह, रमेश कांत और राकेश कांत को बेची गई थी। दिलचस्प बात यह है कि इस जमीन को कभी भी इनके नाम पर ट्रांसफर नहीं किया गया था।


हाई कोर्ट के निर्देश के बाद डिप्टी कमिश्नर ने तीन पन्नों की रिपोर्ट जमा की थी। इसमें बताया गया था कि 1958-59 के रेवेन्यू रिकॉर्ड के मुताबिक, जमीन अभी भी वायुसेना के कब्जे में है।

 

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बिक गई थी जमीन, अफसर रिश्वत लेते रहे!

हालांकि, इस जांच से निशान सिंह संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने एक और याचिका दायर कर कई अहम तथ्यों को जानबूझकर छिपाने का आरोप लगाया। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से जमीन ट्रांसफर कर दी गई थी। 


निशान सिंह ने दावा किया, 'यह पाया गया कि असली मालिक 1947 से पहले दिल्ली चले गए थे। यहां के अधिकारियों ने फर्जी रिकॉर्ड तैयार किए और 1997 में इस जमीन को बेच दिया। हमारे रेवेन्यू अधिकारी इस मामले को छिपाते रहे और मोटी रिश्वत लेते रहे।'


20 जून को हाई कोर्ट में रिपोर्ट दायर होने के बाद मां-बेटे के खिलाफ यह मामला दर्ज किया गया था। यह पाया गया है कि जमीन वायुसेना की थी और इसे 1945 में अंग्रेजों ने दूसरे विश्व युद्ध के लिए खरीदा था।


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