राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी समारोह में पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डाक टिकट और 100 रुपये का सिक्का जारी किया। यह सिक्का चर्चा में आ गया है क्योंकि पहली बार सिक्के पर भारत माता की तस्वीर छपी है। भारत माता की तस्वीर के सामने RSS के स्वयंसेवकों की तस्वीर छापी गई है, जिन्हें ध्वज प्रणाम करने की मुद्रा में देखा जा सकता है। इस मौके पर RSS के इतिहास को याद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आरएसएस ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ में विश्वास रखता है, हालांकि आजादी के बाद इसे राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल होने से रोकने के प्रयास किए गए।
डाक टिकट और 100 रुपये का सिक्का जारी करते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'संघ की 100 वर्ष की इस गौरवमयी यात्रा की स्मृति में आज भारत सरकार ने विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के जारी किए हैं। 100 रुपए के सिक्के पर एक ओर राष्ट्रीय चिह्न है और दूसरी ओर सिंह के साथ वरद-मुद्रा में भारत माता की भव्य छवि है। भारतीय मुद्रा पर भारत माता की तस्वीर संभवत: स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है।
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RSS की तारीफ करते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'संघ शाखा का मैदान एक ऐसी प्रेरणा भूमि है, जहां से स्वयंसेवक की अहम से वयम की यात्रा शुरू होती है। संघ की शाखाएं व्यक्ति निर्माण की यत्र वेदी हैं। इन शाखाओं में व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास होता है। स्वयंसेवकों के मन में राष्ट्रसेवा का भाव और साहस दिन-प्रतिदिन पनपता रहता है। उनके लिए त्याग और समर्पण सहज हो जाता है। श्रेय के लिए प्रतिस्पर्धा की भावना समाप्त हो जाती है और उन्हें सामूहिक निर्णय और सामूहिक कार्य का संस्कार मिलता है।'
गोलवलकर के लिए क्या बोले PM मोदी?
RSS के सामाजिक कार्यों का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'संघ प्रारंभ से राष्ट्रभक्ति और सेवा का पर्याय रहा है। जब विभाजन की पीड़ा ने लाखों परिवारों को बेघर कर दिया तब स्वयंसेवकों ने शरणार्थियों की सेवा की। समाज के साथ एकात्मता और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति आस्था ने संघ के स्वयंसेवकों को हर संकट में स्थितप्रज्ञ रखा है। समाज के प्रति संवेदनशील बनाए रखा है। राष्ट्र साधना की इस यात्रा में ऐसा नहीं है कि संघ पर हमले नहीं हुए, संघ के खिलाफ साजिशें नहीं हुईं। हमने देखा है कि कैसे आजादी के बाद संघ को कुचलने का प्रयास हुआ। मुख्यधारा में आने से रोकने के अनगिनत षड्यंत्र हुए।'
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उन्होंने आगे कहा, 'परमपूज्य गुरुजी को झूठे केस में फंसाया गया, उन्हें जेल तक भेज दिया गया लेकिन जब पूज्य गुरुजी जेल से बाहर आए तो उन्होंने सहज रूप से कहा और शायद इतिहास में सहज भाव एक बहुत बड़ी प्रेरणा है। उन्होंने सहजता से कहा था कि कभी-कभी जीभ दांतों के नीचे आकर दब जाती है, कुचल भी जाती है लेकिन हम दांत नहीं तोड़ देते हैं, क्योंकि दांत भी हमारे हैं और जीभ भी हमारी है।'