सलवा जुडूम: अमित शाह जिस संगठन की कर रहे वकालत, उसकी कहानी क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई 2011 को नंदिनी सुंदर की याचिका पर सुनवाई के बाद सलवा जुडूम को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। यह संगठन क्यों चर्चा में है, मकसद क्या था, पूरी कहानी।

सलवा जुडूम नागरिकों का एक हथियार बंद संगठन था, जिसे सरकार ने तैयार किया था। (Photo Credit: Sora)
सलवा जुडूम पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी के बीच तीखी बहस हुई है। गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया था कि बी सुदर्शन रेड्डी नक्सलवाद के समर्थक हैं। अगर यह नहीं हुआ होता तो वामपंथी उग्रवाद 2020 तक खत्म हो गया होता। जवाब में बी सुदर्शन रेड्डी ने कहा कि वह इस मामले में पड़ना नहीं चाहते। यह फैसला, उनका नहीं, सुप्रीम कोर्ट का था।
बी सुदर्शन रेड्डी, जस्टिस एस एस निज्जर के साथ सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने सलवा जुडूम को असंवैधानिक बताकर भंग करने का आदेश दिया था। बेंच ने कहा था कि माओवादी विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई में आदिवासी युवाओं का स्पेशल पुलिस ऑफीसर (SPO) के रूप में इस्तेमाल करना गैरकानूनी और असंवैधानिक है।
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बी सुदर्शन रेड्डी का जवाब क्या है?
बी सुदर्शन रेड्डी:-
मैं भारत के गृह मंत्री के साथ सीधे तौर पर इस मामले में नहीं शामिल होना चाहता। दूसरी बात, मैंने यह फैसला लिखा है। यह फैसला मेरा नहीं है, यह सुप्रीम कोर्ट का है। मैं फैसले के गुण-दोषों पर कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि मुझे अपने साथियों ने सिखाया है कि किसी को अपने फैसले की के बारे में नहीं बोलना चाहिए। इसका फैसला जनता को करना है। यह मेरा निजी दस्तावेज़ नहीं है।
बी सुदर्शन रेड्डी ने कहा, 'काश, माननीय गृह मंत्री ने खुद पूरा फैसला पढ़ लिया होता। अगर उन्होंने फैसला पढ़ा होता, तो शायद उन्होंने यह टिप्पणी नहीं की होती। उनके पास लगभग 40 पन्नों का फैसला पढ़ने के लिए इतना समय नहीं रहा होगा।'

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सलवा जुडूम क्या था?
सलवा जुडूम, गोंडी भाषा का एक शब्द है। इसका अर्थ 'शांति मार्च' होता है। यह एक मिलिशिया था, जिसे छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद विरोधी अभियानों के जवाब में राज्य सरकार ने तैयार किया था। मिलिशिया, उस संगठन को कहते हैं, जहां पेशेवर स्थाई सेना के उलट, जरूरत पड़ने पर आम नागरिकों की मदद से तैयार किया जाता है। ये लोग सेना का हिस्सा नहीं होते लेकिन हथियार और सैन्य ट्रेनिंग दी जाती है।
सलवा जुडूम उस दौर में बना था, जब देश में वामपंथी आतंक का'रेड कॉरिडोर' अपने सबसे कुख्यात हमलों को अंजाम दे रहा था। छत्तीसगढ़ की सरकार और पुलिस बल इस समूह को ट्रेनिंग दे रहे थे। 4 जून 2005 को सरकार के संरक्षण में शांति अभियान से बड़ी संख्या में लोग जुटे थे। आदिवासियों को हथियार दिए गए थे।
आम नागरिकों को स्पेशल पुलिस ऑफिसर (SPO) का दर्जा दिया गया था और नक्सली-मावादियों के खिलाफ चल रही जंग में उतार दिया गया था। माओवादियों के खिलाफ चले सैन्य अभियान का सबसे बुरा असर दंतेवाड़ा पर देखने को मिला था। 664 गांवों को खाली करा लिया गया था। लाखों लोग बेघर हुए थे, मारे गए थे।

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दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर रही नंदनी सुंदर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और इस मिलिशिया को अवैध और असंवैधानिक घोषित किया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे तत्काल भंग करने का आदेश दिया। कोर्ट ने आदेश दिया था कि सभी हथियार और गोला-बारूद जब्त कर लिए झाएं.
सलवा जुडूम पर आरोप क्या लगे थे?
- मानवाधिकारों के उल्लंघन
- आदिवासियों को आदिवासियों से लड़ाने का आरोप
- आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के आरोप
- जिन लोगों को मिलिशिया का हिस्सा बनाया गया, उनमें पर्याप्त ट्रेनिंग का अभाव
- कम उम्र के नाबालिग सैनिकों की भर्ती
- मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोप
- मिलिशिया को राज्य सरकार से फंडिंग पर सवाल
- आम नागरिकों को हथियार देने का आरोप
- सलवा जुडूम पर आदिवासियों के घरों को लूटने और जलाने के आरोप
सलवा जुडूम के संस्थापक को नक्सलियों ने भून दिया
25 मई 2013 को सलवा जुडूम के संस्थापक महेंद्र कर्मा की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। उनके साथ करीब 24 लोग और थे, जिन्हें छत्तीसगढ़ की दरभा घाटी में मार दिया गया। यह वही दशक था, जब 65 फीसदी से ज्यादा नक्सली घटनाएं छत्तसीगढ़ और झारखंड में दर्ज की जाती थीं।
क्या सलवा जुडूम होता तो खत्म हो जाता नक्सलवाद?
सलवा जुडूम का असर कई उग्रवाद प्रभावित राज्यों में देखने को मिला। नक्सलवाद के पांव सिमटने लगे थे। उग्रवाद से प्रभावित मणिपुर में इसी तर्ज पर जन आंदोलन की शुरुआत हुई थी। 2006 में कर्नाटक सरकार ने भी नक्सलियों से लड़ने के लिए आदिवासीय युवाओं को लामबंद किया था। आंध्र प्रदेश में भी ऐसा ही हुआ था। झारखंड में नक्सलियों से मुकाबले के लिए स्पेशल पुलिस ऑफिसर का इस्तेमाल किया जाता रहा।
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अभी नक्सलवाद की क्या स्थिति है?
नक्सलवाद देश के 6 जिलों में अब भी सरकार के आंखों की किरकिरी बना है। देश में वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित जिलों की संख्या अब देश में 38 है। कुल नक्सलवाद प्रभावित जिलों में से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर 6 हो गई है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा में नक्सलवाद परेशानी की वजह बना है। झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में भी अभी नक्सलवाद पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है।
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