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'प्यार करना गुनाह नहीं', नाबालिगों के रोमांटिक रिलेशन पर SC की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक केस की सुनवाई करते हुए कहा कि 'प्यार अपराध नहीं है और इसे अपराध नहीं बनाया जा सकता।' कोर्ट ने किशोर उम्र के प्रेम पर अहम टिप्पणी की है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo credit: FreePik

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक एक केस की सुनवाई करते हुए कहा कि 'प्यार अपराध नहीं है और इसे अपराध नहीं बनाया जा सकता।' अदालत ने साफ किया कि अगर किशोर उम्र के लड़के-लड़कियां आपसी सहमति से रिश्ते में हैं, तो उन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए। यह टिप्पणी उस समय आई जब अदालत POCSO कानून के दुरुपयोग से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही थी।

 

जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर महादेवन की बेंच ने कहा कि Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) एक्ट का मकसद बच्चों को शोषण से बचाना है लेकिन इसे उन किशोरों पर थोपना सही नहीं है, जो सच्चे रिश्ते में बंधे हों। अदालत ने चेतावनी दी कि इस तरह के मामलों में केस दर्ज करना युवाओं के लिए गहरे मानसिक आघात की वजह बन सकते हैं।

 

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NCPCR और NCW की याचिकाएं खारिज

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और आर महादेवन की बेंच ने यह टिप्पणी तब की, जब राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग  (NCPCR)और राष्ट्रीय महिला आयोग  (NCW) ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के उन फैसलों को चुनौती दी थी जिनमें मुस्लिम लड़कियों को यौवन (प्यूबर्टी) के बाद शादी की अनुमति दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि इन आयोगों का ऐसे मामलों में कोई अधिकार (लोगस स्टैंडी) नहीं है। बेंच ने सख्त लहजे में कहा, 'अजीब है कि NCPCR, जो बच्चों की सुरक्षा के लिए है, उन्हीं बच्चों की सुरक्षा करने वाले आदेश को चुनौती दे रहा है। इन कपल्स को अकेला छोड़ दो।'

'क्या प्यार करना अपराध है?': सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि POCSO कानून बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है लेकिन इसे किशोरों के 'प्रेम संबंधों' में लागू नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस नागरत्ना ने सवाल पूछते हुए कहा,'क्या आप कह सकते हैं कि प्यार करना अपराध है?' उन्होंने चेताया कि सहमति वाले रिश्तों में केस दर्ज करने से बच्चों पर गहरी मानसिक चोट पहुंच सकती है।

'इज्जत' बचाने के नाम पर दर्ज होते हैं केस

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कई बार ऐसे केस लड़कियों के माता-पिता केवल 'ऑनर' के नाम पर दर्ज करवाते हैं। कोर्ट ने आगाह करते हुए कहा,'अगर हर मामले को अपराध मानेंगे, तो ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं बढ़ेंगी।'

 

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हर केस की अलग जांच जरूरी

एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन के वकील एचएस फूलका ने सुझाव दिया कि रिश्तों में शामिल नाबालिगों की उम्र का अंतर 3 साल से ज्यादा नहीं होना चाहिए। फूलका के इस सुझाव पर कोर्ट ने कहा कि हर मामला अलग होता है और पुलिस को जांच कर फैसला लेना चाहिए। कोर्ट ने कहा,'क्यों सबको अपराधी मानना चाहते हो? हर केस अलग है और पुलिस को जांच करनी होगी।'

सरकार ने सहमति की उम्र घटाने से किया इनकार

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सहमति की उम्र 18 साल से कम नहीं की जा सकती है। ऐसा करने से बच्चों की सुरक्षा कमजोर होगी और POCSO का मकसद खत्म हो जाएगा।

आंकड़े क्या कहते हैं?

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2022 तक

  • 16-18 साल के किशोर - 4,900 पर IPC 376 (बलात्कार) का केस, केवल 468 दोषी (कन्विक्शन रेट: 9.55%)
  • POCSO केस- 6,892 दर्ज, सिर्फ 855 में सजा (कन्विक्शन रेट: 12.4%)
  • 18-22 साल के युवा- 52,471 गिरफ्तार, केवल 6,093 दोषी (कन्विक्शन रेट: 11.6%)
  • बलात्कार के 24,306 मामलों में से केवल 2,585 में दोष सिद्ध (कन्विक्शन रेट: 10.6%)
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