सुकुमार कुरूप: ऐसा कातिल जिसने केरल पुलिस को शर्मसार कर दिया
लोग कहते हैं कि बेहतर इंसान बनने के लिए किताबें पढ़ो। एक इंसान ने किताब पढ़कर हैवानियत की ऐसी कहानी लिखी, जिसे आज तक केरल पुलिस 40 साल बाद भी भूल नहीं पाई है।

सुकुमार कुरूप (दाएं), जिस कार में चाको की हत्या हुई (बीच में) और चाको. (फाइल फोटो)
मुर्दे की तलाश में मासूम आदमी का कत्ल। वह भी सिर्फ इसलिए कि जिस शख्स की जान ली गई, वह कत्ल करने वाले की तरह दिखता है। कातिल की भी उस शख्स से कोई दुश्मनी नहीं। दूर-दूर तक दोनों एक-दूसरे को जानते तक नहीं थे। वह शख्स हत्यारा बनना भी नहीं चाहता था। उसे सिर्फ एक लाश चाहिए थी, जिसकी शक्ल, थोड़ी-बहुत उससे मिलती हो। लाश की तलाश में ये आदमी मुर्दाघरों की खाक छानता है, कब्रों को ताड़ता है, मेडिकल कॉलेज में बॉडी तलाशता है लेकिन यह सब नहीं हो पाता है। उसे जब कुछ समझ में नहीं आता है तो वह अपने एक रिश्तेदार के साथ मिलकर एक मर्डर प्लान करता है। मर्डर के प्लान पर बातें होती हैं, दो गाड़ियां लाई जाती हैं और फिर फुलप्रूफ हत्या का प्लान बनाया जाता है। एक शख्स, सिनेमा घर से टिकट बेचकर घर लौट रहा होता है, सफर में कुछ लोग उसे लिफ्ट ऑफर करते हैं और रात का सफर, अंतिम सफर बन जाता है।
यह सब एक अनजान ब्रिटिश राइटर के उपन्यास से प्रभावित होकर किया जाता है। कातिल, खुद को दो बार मरा हुआ घोषित करता है, फिर कत्ल करता है और 40 से फरारी काटता है, केरल पुलिस, आज तक उसका सुराग नहीं ढूंढ पाई। किताब एक इंश्योरेंस क्लेम पर लिखी गई थी, जिसमें एक शख्स इंश्योरेंस की रकम के लिए अपना हत्या की झूठी कहानी रचता है। यह कहानी, सुकुमार कुरूप की है, जिसने चाको नाम के एक शख्स की हत्या कर दी थी। जब उसकी हत्या हुई तो वह गर्भ से थी और हत्या के 40 साल बाद भी वह इंसाफ ढूंढ रही है, जो कहीं गुम हो गया है।
एक हत्या जिसे सुलझाने में फंस गई पुलिस
वह सुबह, बहुत भारी थी। चारो-तरफ धुंध छाया था। तारीख थी 22 जनवरी और साल था 1984। मवेललिकारा पुलिस स्टेशन के हेड कांस्टेबल को खबर मिलती है कि एक कार धान के खेत में धू-धू करके जल रही है। ब्लैक कलर की इस एंबेसडर कार का नंबर होती है kl1-7831। कार सुलग रही होती है तभी पुलिसकर्मी की नजर उसे चला रहे इंसान पर पड़ती है। उसका चेहरा बुरी तरह से जल चुका होता है। कुछ पुलिसकर्मी FIR दर्ज कर रहे होते हैं, वे सब छोड़कर घटनास्थल की ओर भागते हैं। वहां कुछ लोग पहले से मौजूद होते हैं। लोग काना-फूसी करते हैं कि चलती कार लड़खड़ाकर खेत में चली गई होगी और वहीं से आग लग गई होगी। कुछ लोगों ने कहा कि जहां हादसा हुआ है, ठीक उसी जगह से कुछ लोग दूसरी गाड़ी में सवार होकर फरार हुए हैं। पुलिस को कुछ शक होता है।
हादसे की खबर बड़े अधिकारियों तक पहुंचती है। डिप्टी सुप्रिटेंडेंट ऑफ पुलिस पीएम हरिदास सुबह 5.30 पर मुआयना करने पहुंचते हैं। उन्हें लगता है कि ये सिर्फ एक कार एक्सीडेंट नहीं है, मामला कुछ और है। वे सड़क हादसे में उठ रहे सवालों को आसानी से भांप लेते हैं। कार में जो लाश पड़ी होती है, वह चाको की होती है। अलपुझा का रहने वाला चाको सिनेमा हॉल में टिकट बेचता था। चाको की हत्या कुरूप, पिल्लई और दो अन्य लोगों ने मिलकर की थी। पुलिस एक सर्जन लेकर मौके पर पहुंचती है। सर्जन को लगता है कि मामला संदिग्ध है। जांच में यह साफ हो जाता है कि शख्स की पहले हत्या हुई, फिर उसे कार की ड्राइविंग सीट पर बैठाया गया। कार पर कोई निशान नहीं है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह बात साफ होती है कि उसका गला घोंटा गया है, उसे पेट में शराब मिलता है। यह सब संदिग्धता को और बढ़ा देता है।
हंगामा ये मचता है कि यह सूर्यकुमार कुरूप है। वह कुछ दिन पहले खाड़ी के किसी देश से आया था और चेरियानंद इलाके का रहने वाला है। घटनास्थल पर उसके परिवार वाले रोते हुए आते हैं। कहते हैं कि मृतक की एक झलक दिखा दो। चेहरा इतनी बुरी तरह से झुलस चुका होता है कि कुछ नजर नहीं आता है। उसका भाई भास्कर पिल्लई कहता है कि यही कुरूप है, जो अंबालापुझा से लौटा ही नहीं है। वह कार लेकर एक दिन पहले ही घर से निकला था।
केरल पुलिस, कुरूप के परिवार को लाश सौंप देती है। निर्देश दिया जाता है कि लाश को दफन कर दे लेकिन जलाए नहीं। पुलिस से बचकर कातिल कुरूप, घटनास्थल से 115 किलोमीटर दूर अलुवा में छिपा हुआ होता है। पुलिस को तफ्शीश में यह पता लगता है कि यह लाश, सुकुमार कुरूप की नहीं है। यह अलपुझा के रहने वाले चाको की है, जिसे अमीर बनने के लिए कुरूप, पिल्लई और दो अन्य लोगों ने रात में मार डाला होता है।
पहले भी खुद को मार चुका था सुकुमार
सुकुमार कुरूप ने अपना नाम बदला था। बचपन से तेज दिमाग का था। उसे 12वीं के बाद एयरफोर्स में एयरमैन बनने का मौका मिला। उसने एयरफोर्स की नौकरी छोड़ दी और कभी लौटा ही नहीं। उसने स्पेशल ब्रांच के एक पुलिसकर्मी को घूस देकर अपना डेथ सर्टिफिकेट बनवा लिया। डेथ सर्टिफिकेट में लिखा था कि एयरमैन गोपालकृष्णा कुरूप की मौत हो गई है, इसलिए एयरफोर्स भगोड़े केस बंद कर दे। उसने भारत से भागने का प्लान बना लिया। उसने फर्जी पासपोर्ट बनवाया और अपना नाम सुकुमार पिल्लई रखा। कुरूप को अपने घर में काम करने वाली एक महिला की बेटी से प्यार हो जाता है। महिला का नाम सरसम्मा होता है।वह मुंबई से नर्सिंग की पढ़ाई कर रही होती है। उसके घरवालों को ये कहानी पसंद नहीं थी। वह एयरफोर्स छोड़ ही चुका होता है, वह सरसम्मा से चुपके से शादी करता है और अबूधाबी चला जाता है। वहां वह अपनी पत्नी को भी बुला लेता है। पत्नी के पास नर्स की नौकरी होती है, वहीं उसे मरीन ऑपरेटिंग कंपनी में नौकरी मिल जाती है। उनकी तगड़ी कमाई होती है और आलिशान जिंदगी जीने लगते हैं। वह अपने दोस्तों पर पैसे उड़ाता, मुश्किल वक्त में दोस्तों पर पैसे उड़ाता। उसकी दोस्ती, साहू नाम के एक शख्स से होती है, वह उसके दफ्तर में ऑफिस बॉय होता है। वह छुट्टी में केरल आता है। वह मलेशिया से अपने दोस्तों के लिए कुछ लेकर आता है। उसके पास पैसे होते हैं तो वह अंबालापुझा में एक घर बनाता है और एंबेसडर कार खरीदता है।
कंगाल हुआ तो बनाया सबसे खतरनाक प्लान
खुलकर खर्च करने की वजह से एक दिन उसे एहसास होता है कि उसके बैंक में अब पैसे कम बचे हैं। कुरूप और उसकी पत्नी की सैलरी मिलकार 60000 रुपये महीने थी। सुकुमार कुरूप को पता चलता है कि दफ्तर में छंटनी हो रही है, जिसमें उसका नाम भी है। यह कंपनी कम सैलरी पर लोगों की भर्ती कर रही है। कुरूप के दोस्तों ने कहा कि वह भारत में ही नया बिजनेस शुरू करे। कुरूप सोचने लगता है कि कैसे ज्यादा पैसे, जल्दी से कमाएं। वह एक ब्रिटिश राइटर की जासूसी किताब पढ़ने लगता है। कहानी फिल्मी होती है। एक शख्स, दूसरे शख्स की हत्या कर देता है। उसके नैन-नक्श और कद-काठी उससे मिलते हैं। वह ड्राइवर की सीट पर उसे बैठा देता है और कार में आग लगा देता है, जिससे उसे इंश्योरेंस का क्लेम मिल जाता है। सुकुमार कुरूप खुद को एक बार एयरफोर्स की नजर में मार चुका था। वह आसानी से ऐसा कर चुका था। उसने दोबारा मन बना लिया कि फिर कुछ इसी तरह से करना है।
लाश की तलाश में मर्डर
जब कुरूप अबु धाबी पहुंचता है तो वह अपने दोस्त शाहू से यह प्लान बताता है। वह तैयार हो जाता है। वह कहता है कि सिर्फ मेरी तरह दिखने वाले एक शख्स की लाश का इंतजाम कर लो, जिसे कार की ड्राइविंग सीट पर बैठाकर आग लगाई जा सके। साहू खुद आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। उसे तीन बहनों की शादी करनी थी। उसने इसे अंजाम देने के लिए हामी भर दी। क्लेम के पैसे लेने के लिए इन्होंने ही मिलकर चाको को मार डाला। पुलिस से कहा कि कुरूप मर गया और इंश्योरेंस के पैसे अब मिलें। यह सबकुछ एक दिन में नहीं हुआ
पिल्लई ने एक सेकेंड हैंड एंबेसडर कार 8000 रुपये में खरीद ली। कुरूप और साहू ने जनवरी के पहले सप्ताह में कंपनी से छुट्टी मांगी और तिरुवनंतपुरम इंटरनेशनल एयरपोर्ट आए। कुरूप लाश ढूंढ रहा था। वह अलपुझा मेडिकल कॉलेज में भी लाश मांगने पहुंचा, मुर्दाघर पहुंचा। कहीं जुगाड़ नहीं लगा, इसलिए हत्या की साजिश रची। पिल्लई ने कहा कि इस तरह लाश लाना असंभव है। कुरूप ने फिर हत्या का प्लान बनाया और सभी इसके लिए सहमत हो गए।
21-22 जनवरी 1984 की रात में कुरूप, पिल्लई, साहू और कारुवत्ता के पोन्नपन कालपकवाडी होटल में ठहरते हैं। वे यहां खाना खाते हैं और शिकार की तलाश में जुटते हैं। खाना खाने और शराब पीने के बाद ये 4 लोग दो कारों में सवार होते हैं। कुरूप नई कार KLQ-7831 में सवार होता है, वहीं बाकी दूसरे कार में बैठते हैं। यह काफिला आगे-पीछे चलता है। वे हाइवे पर एक ऐसा आदमी ढूंढ रहे थे, जिसका कत्ल किया जा सके और जो देखने में कुरूप की तरह दिखता हो। वे हरिपद के हरि मूवी थिएटर पहुंचते हैं। वे देखते हैं कि एक शख्स मदद मांग रहा है। वह कहता है कि अगर आप अलपुझा जा रहे हों तो लिफ्ट दे दें। कुरूप तो इसी की तलाश में था।
वे लोग उशे कार में बैठा लेते हैं। शख्स बताता है कि उसका नाम चाको है और वह थिएटर में टिकट बांटता है। जैसे ही कार अलपुझा हाइवे की ओर आगे बढ़ती है, पिल्लई चाको से कहता है कि वह शराब पी ले। कुरूप चाको ब्रांडी पीने के लिए देता है। चाको मना करता है। पिल्लई दोबारा उसे शराब पीने के लिए कहता है वह फिर मना करता है। सब साइड में गाड़ी लगाते हैं और पीने के लिए दबाव बनाते हैं। चाको, डर की वजह से शराब पी लेता है। कुछ ही देर में वह बेहोशी की हालत में पहुंच जाता है। पिल्लई और साहू मिलकर उसे एक टॉवेल की मदद से बेहोशी की दवा सुंघा देते हैं फिर गला घोंटकर मार डालते हैं। पिल्लई और साहो स्मिता भवन की ओर आगे बढ़ते हैं। वे उसका चेहरा जला देते हैं। उसकी लाश के कपड़े बदल देते हैं। अलग-अलग कारों में बैठ जाते हैं और उसे लेकर थानिमुकम के धान के खेतों में कार पहुंचा देते हैं। यह ग्रुप, चाको को काले एंबेडर की ड्राइविंग सीट पर बैठा देता है और कार को धान के खेत में पेट्रोल डालकर जला देता है।
पुलिस ने कैसे सुलझाया केस
मवेलिकरा पुलिस हैरत में होती है। अगर कुरूप की मौत हो गई थी तो उसके घर में शोक क्यों नहीं मनाया जा रहा था। पुलिस जब कुरूप के यहां बयान दर्ज करने पहुंची तो उसे कुछ संदिग्ध चीजें दिखीं। उस वक्त भी पुलिस यह तय नहीं कर पाई कि सच में उसकी मौत हुई होगी। उसे घर में कोई भी दुखी नहीं था, जबकि जो शख्स परिवार चला रहा थी, उसी की मौत हो चुकी थी। उन्होंने हादसे के दिन लंच में चिकन बनाया था। आमतौर पर जिन घरों में मौत होती है, कुछ दिन तक कोई भी तड़क-भड़क वाला खाना नहीं बनता है। अगर मौत हुई होती तो ये खाना कतई नहीं बनता।
बात सिर्फ इतनी ही होती तो क्या कहना था। बात इससे बहुत आगे चली गई थी। पिल्लई का चेहरा और हाथ झुलस गया था। पुलिस ने पूछा कि आखिर हादसे के इतने आसपास ये कैसे हुआ तो उसने कहा कि वह ठंड में आग जलाने की कोशिश कर रहा था, तभी झुलस गया। उसके बयान एक के बाद एक संदिग्ध साबित हो गए। पुलिस को पता चल गया कहानी में कुछ झोल है।
मलेलिक्करा के सर्किल इंस्पेक्टर केजे देवासिया ने पड़ताल की और साहू को उसके घर से पकड़ा। वह चवक्कड का रहने वाला था। पुलिस ने उससे सवाल किया कि आग किसने लगाई थी। वह हड़बड़ा गया। पुलिस ने उसके घर आधी रात को पहुंची थी। वह तैयार हो रहा था और कोच्चि जाकर बस पकड़ने वाला था। वह देश छोड़ने की फिराक में था। पुलिस ने उसे घसीटकर जीप में धकेला और पूछताछ के लिए थाने ले आई।
पुलिस ने जब सख्ती से पूछताछ शुरू की तो साजिशों की पर्तें खुलने लगीं। पुलिस को लग गया कि यह लाश सुकुमार कुरूप की नहीं है। पुलिस ने नजदीकी इलाकों में मुनादी की कि वे लोग संपर्क करें जिनके परिजन घर नहीं लौटे हैं, गुमशुदा हो गए हैं। अलपुझा में ही चाको के भाई ने पुलिस को शिकायत दी थी कि रात से ही उसका भाई घर नहीं लौटा है।कुरूप और चाको के बीच कुछ शारीरिक समानताएं थीं, जिनकी वजह से पुलिस ने सुलझा लिया कि लाश चाको की है।
सुकुमार कुरूप कहा हैं, यह कोई नहीं जानता है। पुलिस ने इस केस के भंडाफोड़ के बाद एक चार्जशीट तैयार की। चार्जशीट में पिल्लई और पोनप्पम आरोपी हैं। दोनों पर हत्या, साजिश और साक्ष्य मिटाने के आरोप लगे। साहू भी अपराध में शामिल होने की वजह से आरोपी बना और पुलिस के लिए सरकारी गवाह बन गया। तीसरे और चौथे आरोपी की भी पहचान हो गई लेकिन सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया।
कहां है कुरूप?
कुरूप केरल पुलिस के लिए पहेली बन गया। वह कहां है यह बात कोई नहीं जानता है। अलग-अलग मौकों पर उसके देखे जाने की सिर्फ खबरें ही सामने आती हैं, वह कभी सामने नहीं आया। पुलिस के मुताबिक कुरूप, हत्या के बाद करीब दो बार मवेलिकरा और चेरियानंद अपने परिवार से मिलने पहुंचा था। उसने पैसे जुटा लिए और भाग गया। वह एक बार अलुवा में ठहरा हुआ था, पुलिस कुरूप को पकड़ने ही वाली थी लेकिन तभी वह फरार हो गया। कुरूप के ही एक रिश्तेदार ने बताय था कि वह अलुवा के पास एक रेलवे स्टेशन पर ठहरा हुआ है। पुलिस सुबह 3 से 4 बजे के बीच मौके पर पहुंचती है। यह पता चलता है कि कुरूप तो मालाबार एक्सप्रेस से कुछ घंटे पहले ही फरार हो गया है। पुलिस ने वहां लोगों को उसकी तस्वीर दिखाई तो पता चला कि वह सच में वहीं था। यह आखिरी बार था, जब पुलिस को उसके होने की जानकारी मिली। अफसोस पुलिस उसे पकड़ते-पकड़ते रह गई।
कहते हैं कि रांची के एक अस्पताल में एक मलयाली नर्स ने उसे देखा था। कुरूप वहां बीमार होकर पहुंचा था। नर्स ने उसका इलाज किया था। उसने कहा कि वह गंभीर बीमारी से जूझ रहा है, अगर वह जिंदा भी होगा तो बहुत बुजुर्ग हो चुका होगा।
केरल पुलिस पर दाग है ये केस
केरल के इस कुख्यात मर्डर केस में अगर सुकुमार कुरूप पकड़ा जाता तो शायद इतनी चर्चा नहीं होती लेकिन उसका फरार रहना, इस केस को आज भी जिंदा रखे हुए है। इस केस पर कई फिल्में बन चुकी हैं। 19 मई 1984 को एक फिल्म रिलीज हुई थी एनएच-47। फिल्म में सुकुमारन, टीजी रवि, बालन के नायर और शुभा जैसे जैसे सितारे थे। फइल्म का निर्देशन एजी बेबी ने किया था। दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुपरस्टार दुलकर सलमान ने भी साल 2021 में एक फिल्म बनाई थी। फिल्म का नाम कुरूप था। चाको के बेटे ने कोर्ट में एक याचिका दायर करके कहा था कि उसके पिता के हत्यारे को हीरो बताया जा रहा है। फिल्म रिलीज हुई, खूब चर्चा हुई। सवाल ये है कि चाको अगर जिंदा है तो कहां है, अगर मर गया तो आखिर मरा कहां?
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