सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुसाइड के लिए उकसाने को लेकर एक महत्वपूर्ण आदेश सुनाया। कोर्ट ने आदेश में कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में सावधानी बरती जानी चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि केवल मृतक के परिजनों को शांत करने के लिए मशीनी तरीके से किसी पर ऐसी धारा नहीं लगाई जानी चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप केवल मृतक के परिवार की भावनाओं को शांत करने के लिए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मशीनी तरीके से नहीं लगाया जाना चाहिए।
जस्टिस एएस ओका और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने एक फैसले में यह टिप्पणी की है। पीठ ने कहा कि जांच एजेंसियों को संवेदनशील बनाया जाना चाहिए ताकि किसी व्यक्ति को पूरी तरह से अस्थिर अभियोजन की प्रक्रिया के दुरुपयोग का नुकसान न उठाना पड़े।
व्यक्तियों को नहीं बख्शा जाना चाहिए
पीठ ने कहा, 'ऐसा लगता है कि धारा आईपीसी की धारा 306 का इस्तेमाल केवल मृतक के दुखी परिवार की क्षणिक भावनाओं को शांत करने के लिए व्यक्तियों के खिलाफ बहुत हल्के में किया जाता है, जबकि वास्तविक मामलों में शामिल व्यक्तियों को नहीं बख्शा जाना चाहिए।'
पीठ ने कहा, 'प्रस्तावित आरोपी और मृतक के आचरण, मृतक की दुर्भाग्यपूर्ण मौत से पहले उनकी बातचीत और उनकी बातचीत को व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए और इसे जीवन की दिन-प्रतिदिन की वास्तविकताओं से अलग नहीं किया जाना चाहिए। अतिशयोक्ति को, बिना किसी अतिरिक्त कारण के आत्महत्या करने के लिए उकसाने के रूप में महिमामंडित नहीं किया जाना चाहिए।'
एजेंसियां संवेदनशील बनें- कोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर जांच एजेंसियों और न्यायालयों को संवेदनशील बनाने की जरूरत पर भी जोर दिया। बता दें कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 और भारतीय न्याय संहिता की धारा 108 आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध से संबंधित है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसले
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'अब समय आ गया है कि जांच एजेंसियों को कोर्ट के निर्धारित कानून के प्रति संवेदनशील बनाया जाए, जिससे कि लोगों को पूरी तरह से अस्थिर अभियोजन की प्रक्रिया का दुरुपयोग न करना पड़े। ट्रायल कोर्ट को भी बहुत सावधानी और सतर्कता बरतनी चाहिए। भले ही मामले में जांच एजेंसियों ने धारा 306 के तत्वों के प्रति पूरी तरह से उपेक्षा दिखाई हो।'
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला महेंद्र अवासे नाम के व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर दिया है। इसमें जिसमें मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी गई थी।