विकसित भारत- जी राम जी विधेयक 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मंजूरी मिल गई है। रविवार को केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने यह जानकारी साझा की। केंद्र सरकार ने यह ग्रामीण रोजगार कानून हाल ही में विपक्ष के भारी हंगामे के बीच संसद में पास कराया था। यह नया कानून मनरेगा की जगह लेगा। प्रावधान के मुताबिक विकसित भारत- जी राम जी के तहत हर साल प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 125 दिनों के रोजगार की गारंटी होगी।
मनरेगा साल 2005 में लागू हुआ था। सरकार का तर्क है कि अब ग्रामीण भारत काफी बदल चुका है। इस कारण सुधार की जरूरत है। विकसित भारत- जी राम जी कानून-2025 इसका ही जवाब है। इससे ग्रामीण रोजगार गारंटी को आधुनिक बनाने, जवाबदेही को मजबूत करने और जलवायु अनुकूलता लक्ष्यों के अनुरूप बनाया गया है। कानून के तहत अगर ग्रामीण क्षेत्र के परिवार के सदस्य बिना किसी स्किल वाला काम करने को तैयार हैं तो उन्हें हर वर्ष 125 दिन का रोजगार की गारंटी होगी।
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60 दिन नो-वर्क पीरियड
अभी ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा 100 दिन रोजगार की गारंटी देता है। इससे जब खेतों में काम होता है तो उस वक्त मजदूरों की कमी हो जाती है। मगर नए कानून में सरकार ने एक नया प्रावधान किया है। खेतों में कटाई और बुवाई के वक्त 60 दिन का नो-वर्क पीरियड होगा, ताकि खेतों में कामकाज के लिए मजदूरों की कमी नहीं हो सके। बाकी 305 दिनों में से 125 दिन पक्का रोजगार मिलेगा। सरकार का भी तर्क है कि 60 दिन नो-वर्क पीरियड रखने से किसानों और मजदूरों को लाभ होगा।
इन क्षेत्रों में किया जाएगा रोजगार सृजन
केंद्र सरकार रोजगार चार प्राथमिकता वाले कार्य क्षेत्रों के माध्यम से पैदा करेगी। इसे अवसंचरना विकास से भी जोड़ा जाएगा। इसके अलावा व्यक्ति को मजदूरी हर हफ्ते या 15 दिन के भीतर देना होगा। सरकार का कहना है कि विकसित भारत- जी राम जी योजना का का लक्ष्य 'विकसित भारत 2047' के विजन के साथ तालमेल बिठाना और ग्रामीण विकास ढांचा को तैयार करना है।
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इन क्षेत्रों में पैदा किया जाएगा रोजगार
- जल-संबंधी कामों के माध्यम से जल सुरक्षा
- मुख्य-ग्रामीण अवसंरचना
- आजीविका से संबंधित बुनियादी ढांचा
- मौसम में बदलाव के असर को कम करने से जुड़े विशेष काम
विकसित भारत- जी राम जी पर कितना होगा खर्च?
इस योजना का खर्च केंद्र और राज्यों के बीच 60:40 के अनुपात पर होगा। वहीं हिमालयी और पूर्वोत्तर के राज्यों के बीच लागत 90:10 के अनुपात में तय किया जाएगा। मतलब 90 फीसद राशि केंद्र देगी और बाकी 10 फीसद राज्य भुगतान करेंगे। जिन केद्र शासित राज्यों में विधानसभा नहीं है, वहां केंद्र पूरा खर्च वहन करेगी। सरकार का अनुमान है कि योजना पर सालाना कुल 1,51,282 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इसमें केंद्र का अनुमानित हिस्सा 95,692.31 करोड़ रुपये है।