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पश्चिम बंगाल में मणिपुर जैसी मांग, TMC दुविधा में, ममता परेशान क्यों?

साल 1931 में कुर्मी समुदाय के लोगों को आदिवासी के तौर पर वर्गीकृत किया गया था। साल 1950 में उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची से हटा दिया गया था। अब यही समुदाय, अपने लिए आदिवासी दर्जा मांग रहा है।

Mamata Banerjee

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। (Photo Credit: PTI)

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार की चुनौतियां बढ़ने वाली हैं। एक बार फिर कुर्मी समुदाय के लोग आदिवासी दर्जे की मांग के लिए राज्यव्यापी आंदोलन पर हैं। उनकी यह मांग, 1950 से ही चली आ रही है। साल 1931 में ब्रिटिश राज के दौरान अंग्रेजों ने आदिवासी के तौर पर वर्गीकृत किया था, आजादी के बाद, साल 1950 में कुर्मी समुदाय से आदिवासी का दर्जा छीन लिया गया। अब एक बार फिर राज्य का कुर्मी समुदाय आंदोलन पर बैठा है। 

यह पहली बार हो रहा है, जब झारखंड और ओडिशा में भी कुर्मी समुदाय के लोग धरने पर बैठेंगे। 18 सितंबर को कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस आंदोलन को 'गैरकानूनी और असंवैधानिक' करार दिया था। कोर्ट के आदेश के बाद भी कुर्मी नेताओं का कहना है कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण होगा, वे आंदोलन करेंगे।

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कब से शुरू है आंदोलन?

पश्चिम बंगाल में कुर्मी दर्जे की मांग नई नहीं है। कुर्मी समुदाय के लोग कई बार आंदोलन कर चुके हैं लेकिन आंदोलनों से उन्हें कुछ मिला नहीं है। इस बार कुर्मी समाज ने 20 सितंबर से झारग्राम, बांकुड़ा, पश्चिम मेदिनीपुर और पुरुलिया में अनिश्चितकालीन रेल और सड़क जाम करने की घोषणा की है। 

क्या चाहते हैं कुर्मी समाज के लोग?

आदिवासी कुर्मी समाज के युवा अध्यक्ष परिमल महतो ने ने कहा, '1931 में हमें एसटी का दर्जा मिला था, लेकिन 1950 में बिना किसी अधिसूचना के हमें सूची से हटा दिया गया। हमने पिछले छह महीनों से राज्य सरकार और जिला प्रशासन को पत्र लिखे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।' 

एक नजर, कुर्मी समाज की मांग पर

  • राज्य में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले
  • नौकरी और शिक्षा में आरक्षण का लाभ मिले
  • कुरमाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए 

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कुरमाली भाषा क्या है?

कुरमाली भाषा मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बोली जाती है। कुर्मी समुदाय के लोग इस भाषा को बोलते हैं। भाषा के मूल में मागधी प्राकृत है, भोजपुरी, मैथिली जैसी भाषाओं से भी इसका संबंध दिखता है। इसमें द्रविड़ और मुंडारी भाषाओं का प्रभाव नजर आता है। कुरमाली को देवनागरी, उड़िया और बंगाली लिपि में लिखा जाता है। यह मौखिक भाषा है, जिसे संरक्षण की जरूरत है। कई लोक गीतों, कहानियों और कृषि-संस्कृति से जुड़े साहित्य में यह प्रमुखता से नजर आती है। झारखंड के रांची, हजारीबाग, ओडिशा के मयूरभंज और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में यह भाषा बोली जाती है।

पश्चिम बंगाल में कुर्मी समुदाय ने रोल रोको आंदोलन 2024 में चलाया था।


आठवीं अनुसूची में आने से क्या होगा?

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची भारत सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त भाषाओं की सूची है। इसमें अभी 22 भाषाएं शामिल हैं। इस अनुसूची में शामिल होने से किसी भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलती है, जिससे सरकारी कार्यों, शिक्षा, और साहित्य में उसका इस्तेमाल बढ़ता है। यह भाषा को संरक्षण, विकास, और प्रचार के लिए सरकारी संसाधन और नीतिगत समर्थन देता है।

2024 में भी भड़का था आंदोलन

साल 2024 में भी  कुर्मी समुदाय के लोगों ने रेलवे स्टेशन जाम किए थे, जिसे प्रशासन के अनुरोध पर हटा लिया गया था। प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। इस बार प्रदर्शन को झारखंड के दो विधायकों और एक पूर्व सांसद का समर्थन मिला है। पश्चिम बंगाल सरकार ने तीनों जिलों में अलर्ट जारी किया है और प्रदर्शनकारियों से रेलवे ट्रैक, स्टेशन या राष्ट्रीय राजमार्ग जाम न करने की अपील की है। पुलिस ने कोर्ट के आदेश की जानकारी दी और शांति बनाए रखने को कहा।

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ममता सरकार के लिए मुसीबत क्यों?

  • संवैधानिक चुनौती: पश्चिम बंगाल में कुर्मी समुदाय की यह मांग दशकों पुरानी है। कुर्मी समुदाय के लोग न सिर्फ अपने लिए आदिवासी दर्जा चाहते हैं, बल्कि उनकी यह भी मांग है कि कुरमाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए। 

  • कानून व्यवस्था बिगड़ने का डर: साल 2023 में आदिवासी-कुर्मी समुदाय के छह दिवसीय आंदोलन में कोलकाता-मुंबई को जोड़ने वाले नेशनल हाइवे-6 को ठप कर दिया गया था। 

  • चुनावी बहिष्कार की आशंका: लोकसभा चुनाव से पहले कुर्मी-बहुल गांवों ने राजनीतिक दलों का बहिष्कार किया था और कई कुर्मी नेता चुनाव में उतरे थे। यह समुदाय, ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ उतर गया है। पश्चिम बंगाल में साल 2026 तक विधानसभा चुनाव होंगे। समाज की नाराजगी का असर सरकार झेल सकती है।

  • 30 सीटों पर चुनौती: पश्चिम बंगाल में कुर्मी समुदाय की आबादी करीब 50 लाख है। यह समुदाय झारग्राम, पुरुलिया और बांकुड़ा की करीब 30 विधानसभा सीटों पर मजबूत स्थिति में है। ऐसे में यह मुद्दा तृणमूल कांग्रेस लिए सियासी चुनौती बन गया है। 

  • आदिवासी vs कुर्मी की दुविधा: अगर टीएमसी कुर्मियों से बातचीत करती है तो आदिवासी समुदाय इसका विरोध कर सकते हैं, क्योंकि वे आरक्षण का हिस्सा साझा नहीं करना चाहेंगे। इसलिए टीएमसी अभी सतर्क रुख अपनाए हुए है। 

  • विपक्ष से भी बढ़ रहा दबाव: विपक्षी दल बीजेपी और सीपीएम ने टीएमसी पर निशाना साधा है। बीजेपी नेता राहुल सिन्हा ने कहा कि सरकार ने इस समस्या का समाधान पहले ही कर लेना चाहिए था। सीपीएम नेता सुजन चक्रवर्ती ने सरकार से कुर्मियों के साथ बातचीत करने की मांग की है। 

कुर्मी समुदाय में कौन लोग आते हैं? 

कुर्मी मुख्य रूप से छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में रहने वाला किसान समुदाय है। पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिशा में इस समुदाय के लोग व्यापक स्तर पर रहते हैं। साल 1931 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया था, लेकिन 1950 में इसे हटा लिया गया। 2004 में झारखंड सरकार ने कुर्मियों को एसटी सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी, लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ। झारखंड में जयराम महतो, इस समाज के बड़े नेता बनकर उभरे हैं। झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (JLKM) झारखंड में अब कुर्मियों की बड़ी पार्टी बन रही है। 

मणिपुर जैसा डर क्यों है?

3 मई 2023 को कुकी-जो आदिवासी समुदाय ने 'ट्राइबल सॉलिडैरिटी मार्च' निकाला। मुख्य वजह मणिपुर हाईकोर्ट का 14 अप्रैल 2023 का आदेश था, जिसमें मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की सिफारिश की गई। प्रदर्शन के बाद आरक्षण और भूमि अधिकारों पर विवाद बढ़ गया। अब तक 200 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं, 60 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं। 2024-25 में छिटपुट झड़पें नहीं थमी हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यहां कानून-व्यवस्था का पतन हो चुका है। फरवरी 2025 में सीएम ने इस्तीफा दिया था, अब राष्ट्रपति शासन लागू है। पीएम मोदी ने भी हाल ही में दौरा किया है लेकिन हिंसाएं थमी नहीं हैं। पश्चिम बंगाल इसे देखते हुए पहले ही सतर्क है।  

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