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वक्फ कानून मानने से अगर राज्य इनकार करें तो क्या होगा? समझिए

क्या राज्य सरकारों के पास यह संवैधानिक अधिकार होता है कि वे केंद्र सरकार के बनाए किसी कानून को अपने यहां लागू न होने दें। समझिए विस्तार से।

Amit Shah

गृहमंत्री अमित शाह। (Photo Credit: Sansad TV)

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा है कि बिहार में हम सरकार बनाकर वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंक देंगे। उनका इशारा था कि वह बिहार में इस कानून को किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे। तेजस्वी यादव ने कहा कि सरकार बनाकर इस बिल को कूड़ेदान में फेंक देंगे। एक पत्रकार ने उनसे सवाल किया था कि कोर्ट में जाने के अलावा आपके पास क्या विकल्प हैं। बिहार में नवंबर के अंत तक चुनाव होने वाले हैं। अगर उनकी सरकार बनती है, या जिन राज्यों में वक्फ के खिलाफ उतरी विपक्षी पार्टियों के पास के पास सत्ता है, वे केंद्र के कानून को क्या अपने यहां लागू होने से मना कर सकती हैं?

संवैधानिक में क्या ऐसे अनुच्छेद हैं, जो राज्य और केंद्र की शक्तियों के टकराव की स्थिति में स्पष्टता से कुछ कह सकें? अगर आपके मन भी में ये सवाल हैं तो आइए जानते हैं कि भारत का कानून ऐसे टकरावों पर क्या कहता है, कब-कब ऐसी स्थितियां बनी, जब राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार के किसी कानून को मानने से इकार कर दिया हो। केंद्र और राज्य के टकराव में सुप्रीम कोर्ट या अदालतें किस तरह का फैसला देती हैं, आइए जानते हैं।

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टकराव की वजह क्या है?

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को मंजूरी दे दी है। उनके हस्ताक्षर के बाद अब देश में वक्फ संशोधन  विधेयक कानून बन गया है। केंद्र की एनडीए सरकार के विरोधी दलों ने इस कानून पर ऐतराज जताया है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस,  CPI, डीएमके जैसी पार्टियों ने इस विधेयक का संसद के दोनों सदनों में विरोध किया और इसे असंवैधानिक बताया है। सुप्री कोर्ट में कई अर्जी विरोधी दलों के नेताओं ने इस कानून के संबंध में दी है। 

विपक्षी दलों का कहना है कि यह कानून धर्मिक भेदभाव को बढ़ावा देता है, यह कानून अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज को नीचा दिखाने के लिए लाया गया है। असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कराई है, जिसमें दावा किया गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है, जिसमें धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक है। एक तरफ विरोध हो रहा था, दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने सबसे आगे बढ़कर कहा कि जैसे ही बिहार में हमारी सरकार बनेगी, हम इस कानून को कूड़ेदान में फेंक देंगे। 

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कब-कब पहले टकराव हुए हैं?
नरेंद्र मोदी सरकार जब साल 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) लेकर आई थी, तब विपक्षी दलों के कई मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्य में इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था। उन्होंने अपने राज्य में इसे लागू करने से इनकार कर दिया था। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, केरल के सीएम पिनराई विजयन, मध्य प्रदेश, राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने कहा था कि इसे अपने राज्य में लागू नहीं होने देंगे। पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर ने भी कहा था कि वह CAA लागू नहीं करेंगे। महाराष्ट्र 13 जून 2020 महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी इशारा किया था कि वह इसे लागू नहीं होने देंगे। 

2020 के विवादिक कृषि कानून को अपनाने से पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और केरल सरकार ने इनकार कर दिया था। केरल और पश्चिम बंगाल सरकार ने 2020 के श्रम कानूनों को भी लागू करने से इनकार किया था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लेकर तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में अलग रुख है। कई बार टकराव के बाद भी क्या केंद्र के चाहने के बाद राज्य ऐसा कर सकते हैं? आइए इस सवाल का जवाब जानते हैं।


राज्य केंद्र में टकराव हो तो जीत किसकी होगी?

सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट रुपाली पंवार ने खबरगांव से बातचीत में बताया कि राज्य और केंद्र के टकराव को लेकर संविधान बेहद स्पष्ट है। जब राज्य और केंद्र के बीच शक्तियों का विभाजन, संविधान की सातवीं अनुसूची हैं। संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। रक्षा विदेश नीति, मुद्रा, संचार जैसे मामलों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र का है।

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पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, स्थानीय शासन से जुड़े कानून सामान्य तौर पर राज्य बनाते हैं लेकिन अगर केंद्रीय हस्तक्षेप की जरूरत हो तो केंद्र सरकार इन पर कानून बना सकती है। समवर्ती सूची में शिक्षा, विवाह, श्रम कल्याण जैसे विषय हैं आते हैं। इन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। अगर समवर्ती सूची में कोई विवाद की स्थति पैदा होती है तो संविधान संगत स्थिति में अनुच्छेद 254 के तहत केंद्र सरकार के कानून को प्राथमिकता मिलती है।



वक्फ किस सूची में आता है?
धर्मार्थ और धार्मिक संस्थाएं संविधान की समवर्ती सूची में आती हैं। वक्फ बोर्ड भी इसी सूची में आता है। संविधान का अनुच्छेद 254 के मुताबिक, 'अगर राज्य सरकार का कानून, केंद्र सरकार के कानून के खिलाफ है, टकराव की स्थिति है तो केंद्र सरकार का कानून प्रभावी होगा। राज्य सरकार का कानून तभी प्रभावी हो सकता है, जब राष्ट्रपति उसके कानून पर सहमति जताएं। राष्ट्रपति की सहमति मिलने पर राज्य का कानून उस विशेष राज्य में प्रभावी हो सकता है, लेकिन यह अपवाद है।'

अगर राज्य मानने से इनकार करें तो क्या होगा?
एडवोकेट रुपाली पंवार ने कहा, 'वक्फ समवर्ती सूची का मामला है। 254 साफ कहता है कि केंद्र का कानून प्रभावी होगा। राज्य के पास प्रशासनिक शक्तियां हैं, इसलिए ऐसा हो सकता है कि अनबन की स्थिति ऐसी दशा में बने। केंद्र सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प होगा। राज्य सरकार, वक्फ के मामले में धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े अनुच्छेद 25 और 26 का हवाला देकर केंद्र के फैसले को चुनौती दे सकती है, सुप्रीम कोर्ट इसकी वैधता तय कर सकता है। दिलचस्प बात यह है कि केंद्र सरकार की शक्तियां इस मामले में पहले से स्पष्ट हैं, यह कानून संविधान के मूल ढांचे को भी चुनौती नहीं दे रहा है कि सुप्रीम कोर्ट संसद से पारित इस कानून को खारिज कर दे।'

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