भारत की 'सिलिकॉन वैली' कहा जाने वाला बेंगलुरु इस साल फिर पानी के भयंकर संकट से जूझ रहा है। आलम ये है कि पानी की बर्बादी रोकने के लिए जुर्माना लगाया जा रहा है।
बेंगलुरु वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड (BWSSB) के अध्यक्ष राम प्रसथ मनोहर ने बताया कि पीने का पानी का इस्तेमाल अगर गाड़ियां धोने, कंस्ट्रक्शन में, फाउंटेन में, रोड़ साफ करने या किसी भी गैर-जरूरी काम को करने में किया जाता है को 5 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। अगर कोई बार-बार इस तरह की हरकत करता है तो उससे हर दिन 500 रुपये का जुर्माना वसूला जाएगा।
सूखती 'सिलिकॉन वैली'!
बेंगलुरु भारत का वो शहर है जहां लगभग 25 हजार आईटी कंपनियां हैं। इसलिए इसे भारत की 'सिलिकॉन वैली' भी कहा जाता है। कर्नाटक सरकार के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, बेंगलुरु की जीडीपी 8.59 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है। यहां हर व्यक्ति की सालाना औसतन कमाई 7.60 लाख रुपये है। और तो और यहां हर साल औसतन 5 से 6 अरब डॉलर का FDI आता है।
पिछले महीने BWSSB की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि 110 गांवों के 80 वार्ड में ग्राउंडवाटर तेजी से कम हो रहा है। सेंट्रल बेंगलुरु में ग्राउंडवाटर 5 मीटर से भी नीचे जाने की आशंका है। कुछ-कुछ हिस्सों में 10 से 15 मीटर तक कम होने का अनुमान है। इतना ही नहीं, मार्च तक कई गांवों में 20 से 25 मीटर तक नीचे जाने की आशंका है।
इस रिपोर्ट में बताया गया था कि पानी के लिए बेंगलुरु की ग्राउंडवाटर पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। बेंगलुरु में हर दिन जमीन से 80 करोड़ लीटर पानी निकाला जा रहा है।
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मगर ऐसा क्यों?
बेंगलुरु शहर पानी के लिए कावेरी नदी पर निर्भर है। कावेरी नदी से बेंगलुरु को हर दिन 145 करोड़ लीटर पानी मिलता है, जबकि बेंगलुरु को हर दिन 168 करोड़ लीटर पानी चाहिए।
कम बारिश के कारण कावेरी नदी का जलस्तर घट रहा है। न सिर्फ पीने के पानी बल्कि सिंचाई के पानी की भी समस्या हो रही है। बोरवेल धीरे-धीरे सूखते जा रहे हैं। कर्माटक स्टेट नैचुरल डिजास्टर मैनेजमेंट सेंटर (KSNDMC) के मुताबिक, 1 जनवरी से 21 फरवरी के बीच बेंगलुरु में 22 फीसदी बारिश कम हुई है।
KSNDMC के मुताबिक, 21 फरवरी तक भाद्रा, तुंगाभाद्रा, घाटप्रभा, मालाप्रभा, अलमट्टी और नारायणपुरा जैसे कावेरी नदी के 6 अहम जलाशयों में पानी का स्तर उनकी कुल क्षमता का 68% था। इन जलाशयों की क्षमता 114.57 हजार मिलियन क्यूबिक फीट है लेकिन 21 फरवरी तक इनमें 76.80 हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी ही था।

कभी झीलों का शहर था, आज...
एक समय बेंगलुरु झीलों का शहर हुआ करता था। 16वीं सदी में विजयनगर साम्राज्य के राजा नादप्रभु केंपेगौड़ा ने इस शहर की नींव रखी थी। उन्होंने हजारों झील और तालाब बनवाए थे। झीलों और तालाबों का ऐसा नेटवर्क तैयार किया था कि अगर कोई एक झील सूखती भी थी तो दूसरी का पानी उसमें चला जाता था।
लेकिन वक्त के साथ-साथ झीलें घटती चली गईं। शहरीकरण ने इसे और कम कर दिया। तेजी से गांव और कॉलोनियां बसाई गईं। आईटी पार्क और बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी की गईं। इन सबने यहां की जलवायु को बदल दिया। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISC) की एक रिपोर्ट बताती है कि बीते चार दशकों में बेंगलुरु की वाटर बॉडीज में 79% और ग्रीन कवर में 88% तक की कमी आई है। इसके इतर कंक्रीट से बनी ढंकी जगहों का एरिया 11 गुना बढ़ गया है। इससे ग्राउंडवाटर में कमी आई है।
झीलों और वाटर बॉडीज पर अतिक्रमण भी एक बड़ी समस्या है। हाल ही में बेंगलुरु डिस्ट्रिक्ट अथॉरिटी की एक रिपोर्ट आई है, जिसमें बताया गया है कि 837 झीलों में से 730 पर कब्जा कर लिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे बेंगलुरु में झीलों और उसके आसपास की 4,554 एकड़ जमीन पर कब्जा है।
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तैयारी क्या है?
जैसे-जैसे गर्मी बढ़ेगी, वैसे-वैसे पानी की समस्या और बढ़ेगी। पिछले साल भी बेंगलुरु के लोगों को गर्मी में पानी की भयंकर कमी से जूझना पड़ा था।
कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार का कहना है कि कावेरी नदी पर डैम ही बेंगलुरु की पानी की समस्या का समाधान है। हालांकि, कावेरी नदी पर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच विवाद है, जिस कारण डैम का काम अटका पड़ा है।
हालांकि, सरकार ने पिछले साल कावेरी प्रोजेक्ट के 5वें फेज को पूरा किया है। इससे 110 गांवों में पीने का पानी पहुंचाया जा रहा है। पांचवें फेज के तहत ही 228 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन और 13 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी बनाए जा रहे हैं।