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इत्तेहादुल मुस्लिमीन और अवामी ऐक्शन कमेटी पर बैन की इनसाइड स्टोरी

केंद्रीय गृमंत्रालय ने आवामी ऐक्शन कमेटी और इत्तेहादुल मुस्लिमीन पर प्रतिबंध लगा दिया है। वजह क्या है, विस्तार से पढ़ें।

Mirwaiz Farooq

हुर्रियत अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक। (Photo Credit: Facebook/Mirwaiz)

केंद्र सरकार ने अवामी एक्शन कमेटी (AAC) और जम्मू-कश्मीर इत्तेहादुल मुस्लिमीन (JKIM) पर बैन लगा दिया है। दोनों संगठनों पर देश विरोधी गतिविधियों और अलगाववाद को बढ़ावा देने का आरोप है। मंगलवार को गृहमंत्रालय ने यह ऐक्शन लिया है।

हुर्रियत अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक AAC के प्रमुख हैं, वहीं शिया नेता मसरूर अब्बास अंसारी JKIM के चीफ हैं। दोनों की पार्टियों पर जम्मू और कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप है। केंद्र ने अब इन संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया है।

क्यों दोनों संगठनों पर लगा है बैन?
- AAC और J-KIM पर गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप लगे हैं।
- दोनों संगठनों पर तत्काल प्रभाव से 5 साल के लिए प्रतिबंध लगाया गया है।
- दोनों संगठनों पर अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने के आरोप हैं।
- आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगाया गया है।

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क्या कह रहे हैं कश्मीर के नेता?

जम्मू-कश्मीर के लंगेट से निर्दलीय विधायक खुर्शीद अहमद शेख ने केंद्र पर विपक्ष की आवाज दबाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, 'हर किसी को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है। इससे जम्हूरियत का हल नहीं निकलेगा। मैं इस कदम की निंदा करता हूं क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। अगर आप पार्टियों पर प्रतिबंध लगाना जारी रखेंगे, तो आप उन्हें मुख्यधारा में कैसे लाएंगे?'

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PDP अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार के इस कदम पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने इस फैसले को अलोकतांत्रिक कहा है। उन्होंने कहा, 'असहमति को दबाने से तनाव हल होने के बजाय और बढ़ेगा। जम्मू-कश्मीर सरकार को ऐसी कार्रवाइयों को रोकने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। लोकतंत्र का मतलब सिर्फ चुनाव नहीं है। इसका मतलब नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है।'

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महबूबा मुफ्ती ने कहा, 'कश्मीरियों की आवाज़ को दबाना भले ही भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को पूरा करता हो, लेकिन यह संविधान को कमजोर करता है जो इन अधिकारों की रक्षा करता है। केंद्र सरकार को अपने दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए और कठोर रणनीति से दूर रहना चाहिए।'

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