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रूस से कच्चा तेल खरीदना क्यों जरूरी, मोदी सरकार ने बंद किया तो क्या होगा?

भारत ने पिछले कुछ वर्षों से रूसी कच्चे तेल पर अपनी निर्भरता अधिक बढ़ा ली है। अमेरिका रूसी तेल न खरीदने का दबाव बना रहा है, लेकिन एकदम से तेल खरीद बंद करना आसान नहीं है।

Russian crude oil.

सांकेतिक फोटो। (AI generated image)

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दावा किया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कहा कि वह रूस से तेल खरीदना बंद कर देंगे। जबकि भारतीय विदेश मंत्रालय का बयान ट्रंप के दावे से इतर है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, 'हमारे उपभोक्ताओं के हितों के अनुरूप हमारी नीतियां तय होंगी।' मतलब साफ है कि अगर भारत को रूसी तेल से फायदा दिखेगा तो उसकी खरीद जारी रहेगी। 

 

सितबंर में भारत ने 4.7 मिलियन बैरल कच्चे तेल का आयात प्रतिदिन किया। अक्तूबर की शुरुआत में रोजाना 1.77 मिलियन बैरल रूसी तेल आया। 1.01 मिलियन बैरल तेल की आपूर्ति करके इराक दूसरे स्थान पर रहा। 8,30,000 बैरल प्रतिदिन के साथ सऊदी तीसरे और 647,000 बैरल प्रतिदिन की आपूर्ति के साथ अमेरिका चौथे स्थान पर रहा। 

 

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संयुक्त अरब अमीरात ने रोजाना 394,000 बैरल प्रतिदिन की आपूर्ति की। रूस अक्तूबर में भी 1.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन के आपूर्ति के साथ भारत का सबसे बड़ा ईंधन पार्टनर बना रहा। यह भारत के कुल तेल आयात का 34 फीसद है। वैश्विक व्यापार विश्लेषण फर्म केप्लर ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इस साल के 8 महीनों में भारत को रूसी तेल का आयात पिछले साल की तुलना में करीब 1,60,000 बैरल प्रतिदन कम था।

क्या रूसी तेल खरीदना तुरंत बंद करना संभव?

भारत की इन दिनों रूसी तेल पर निर्भरता अधिक है। कई कारणों से इसे तुरंत बंद करना संभव नहीं है। न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक 4-6 हफ्ते के अग्रिम अनुबंध पर तेल खरीदा जाता है। मतलब यह है कि अब जो तेल की आपूर्ति हो रही है, उसका सौदा सितंबर में तय किया गया। अब नवंबर में आने वाले तेल का करार अक्तूबर में हो चुके होंगे। अगर ट्रंप के दावे में सच्चाई है तो भारत की कंपनियां नए अनुबंध करना बंद कर देंगी। इससे नवंबर के बाद रूसी तेल के आयात में कमी दिख सकती है।

 

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 2023 में रूस ने भारतीय कंपनियों को तेल में भारी छूट दी थी। हालांकि अब यह छूट कम हो चुकी है। मगर अब भी भारतीय रिफाइनरी कंपनियों को रूसी तेल खरीदना अधिक लाभदायक लगता है। इसकी वजह यह है कि रूस का यूराल्स तेल लागत के लिहाज से बेहतरीन है। इसमें कंपनियों को अधिक मार्जिन मिलता है।

अमेरिका से तेल खरीद बढ़ा रहा भारत

केप्लर का कहना है कि भारत के लिए रूसी तेल को एक साथ बंद करना आसान नहीं है। हालांकि इसमें धीरे-धीरे कमी लाई जा सकती है। भारतीय कंपनियां रूस के अलावा अन्य देशों से भी कच्चे तेल की खरीद बढ़ा रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक 2025 में भारत का अमेरिका से कच्चे तेल की खरीद 310,000 बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गया। पिछले साल भारत प्रतिदिन 199,000 बैरल खरीद रहा था। अक्तूबर में यह आंकड़ा प्रतिदिन 500,000 बैरल तक पहुंचने का अनुमान है।

रूस से कितना तेल खरीद रहा भारत?

विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा नहीं है कि रूसी तेल के बिना भारत का काम नहीं चल पाएगा। साल 2019-2020 में भारत ने अपने कुल आयात का सिर्फ 1.7 फीसद कच्चा तेल रूस से खरीदा। 2023-24 में यह आंकड़ा 40 फीसद तक बढ़ गया। इसकी वजह रूसी तेल पर मिलने वाली छूट थी। 2025 में भारत ने कुल 245 मिलियन टन तेल का आयात किया, इसमें 88 मिलियन टन तेल रूस से आया। 

रूस से कच्चा तेल खरीदना क्यों जरूरी?

  • माना जाता है कि रूसी कच्चे तेल को रिफाइंड करने से डीजल और जेट ईंधन अच्छी मात्रा में निकलता है। अगर भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदना बंद किया तो डीजल और जेट ईंधन के उत्पादन में कमी आ सकती है। रूसी कच्चे तेल से शुद्ध तेल भी अधिक निलकता है। भारतीय रिफाइनरियों की तकनीक भी इसके मुताबिक है। कुल मिलाकर रूसी कच्चे तेल में अधिक मार्जिन है।

 

  • अगर अमेरिका से भारत कच्चा तेल लेता है तो उसका ग्रेड हल्का है। नुकसान यह है कि इसमें डीजल की मात्रा कम होती है। इससे भारत की रिफाइनरियों को घाटा होगा। एक अनुमान यह है कि अगर भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद किया तो उसे अन्य बाजार से इसे खरीदना होगा। इससे मांग बढ़ेगी और कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती है। इससे दुनियाभर में महंगाई बढ़ने की आशंका है। 

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