दक्षिण में एंट्री को लेकर जोर लगा रही BJP, भाषा वाला तिलिस्म कैसे टूटेगा?
पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में तमिल भाषा सीखने के लिए लोगों को प्रेरित किया तो शिवराज सिंह ने कहा कि हर भारतीय को एक दक्षिण भारतीय भाषा जरूर सीखनी चाहिए। बीजेपी के नेताओं के इन बयानों को आने वाले केरल और तमिलनाडु चुनावों की रणनीति बताया जा रहा है।

बीजेपी के नेता, Photo Credit: SORA
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए साल 2025 बहुत शानदार रहा। पार्टी को साल की शुरुआत में दिल्ली में जीत मिली और साल खत्म होते-होते बिहार में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन कर सत्ता में वापसी की। दिसंबर के महीने में दक्षिण भारत से भी बीजेपी को अच्छी खबर मिली, जहां पार्टी ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में अपना मेयर बनाया। अगले साल दक्षिण भारत के दो अहम राज्यों केरल और तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने हैं। 2026 में होने वाले इन चुनावों में बीजेपी को कमजोर माना जा रहा है लेकिन पार्टी अपनी रणनीति पर काम कर रही है। इसी कड़ी में भाषाई विवाद पर पार्टी के बड़े नेता शिवराज सिंह ने हाल ही में एक बयान दिया और पीएम मोदी ने भी मन की बात में तमिल भाषा को प्रमोट किया। इन बयानों को दक्षिण भारत में राजनीतिक जमीन तलाश करने की कवायद बताया जा रहा है।
27 दिसंबर को केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान तमिलनाडु के दौरे पर थे। इस दौरे के दौरान वह सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन की ओर से आयोजित किए गए कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इस कार्यक्रम में शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत की भाषाई विविधता हमारी ताकत है और एक दूसरे की भाषाएं सीखने से राष्ट्रीय एकता और आपसी समझ मजबूत होती है। इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि हर भारतीय को कम से कम एक दक्षिण भारतीय भाषा जरूर सीखनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वे खुद भी किसी एक दक्षिण भारतीय भाषा को सीखने की कोशिश करेंगे।
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https://twitter.com/PTI_News/status/2004959828968702217
मन की बात में तमिल भाषा
पीएम नरेंद्र मोदी ने 28 दिसंबर को मन की बात कार्यक्रम में काशी के स्कूलों में तमिल भाषा सिखाने के लिए चलाए जा रहे अभियान की बात की। पीएम मोदी ने कहा, 'तमिल भाषा में अपनी बात रखने वाले ये बच्चे काशी के हैं लेकिन तमिल भाषा के प्रति लगाव ने इन्हें तमिल सीखने के लिए प्रेरित किया है। इस साल वाराणसी में काशी-तमिल संगमम के दौरान तमिल सीखने पर खास जोर दिया गया था। काशी के 50 से ज्यादा स्कूलों में तमिल सीखने को लेकर अभियान चलाया गया।'
https://twitter.com/AmitShah/status/2005251398662005167
पीएम मोदी ने कहा कि तमिल भाषा दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा है। तमिल का साहित्य भी स्मृद्ध है। मुझे खुशी है कि आज देश के दूसरे हिस्सों में भी युवाओं में तमिल भाषा को लेकर नया आकर्षण दिख रहा है। तमिल भाषा को लेकर पीएम मोदी ने तमिल भाषा पर काफी लंबी बात की। पीएम मोदी के इस बयान को भी बीजेपी की बदलती रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
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हिंदी पार्टी का टैग
भारतीय जनता पार्टी भले ही केंद्र की सत्ता पर पिछले एक दशक से ज्यादा से समय से काबिज है लेकिन दक्षिण भारत में पार्टी अपने पैर नहीं जमा पाई है। दक्षिण भारत में बीजेपी की छवि एक हिंदी भाषी पार्टी की है। हिंदी भाषी राज्यों के अलावा बीजेपी को गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी जीत मिली लेकिन अब बीजेपी दक्षिण भारत के राज्यों केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रही है। 2026 में बीजेपी के सामने केरल और तमिलनाडु के चुनाव हैं, जिनमें जीत के लिए पार्टी को सांप्रदायिक और हिंदी भाषी पार्टी की छवि से निकलना होगा।
बीजेपी और आरएसएस पर हिंदी भाषी होने का टैग लगा है। स्थानीय बीजेपी नेता जनता को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि पार्टी हिंदी को थोप नहीं रही लेकिन विपक्ष के सामने बीजेपी इस मुद्दे पर कमजोर पड़ जाती है। बेंगलुरु की गीतम यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं कि दक्षिण भारत के लोगों को लगता है कि बीजेपी बाहरी पार्टी है। उन्होंने कहा, 'पीएम मोदी और अमित शाह दक्षिण भारत में आते हैं तो हिंदी में भाषण देते हैं। बीजेपी के पास एक भी बड़ा नेता नहीं है, जो यहां के लोगों से उनकी भाषा में बात करे। उनके मुद्दे उनकी बोली में उठाए। बीजेपी के नेताओं के मैसेज जनता के बीच मजबूती से नहीं पहुंच पाते।' दक्षिण भारत के राज्यों में हिंदी विरोध का लंबा इतिहास रहा है।
भाषाई मुद्दे पर बदलते सुर
बीजेपी सरकार कई ऐसे फैसले ले चुकी है, जिनसे दक्षिण भारत में मैसेज गया कि बीजेपी हिंदी को थोपना चाह रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में त्रिभाषा नीति का विरोध हो रहा है। हिंदी को लेकर किए गए कुछ प्रावधानों को लेकर भी तमिलनाडु से केरल तक विरोध हो रहा है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह के ताजा बयान को हिंदी विरोधी पार्टी होने के टैग से मुक्ति पाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। बीजेपी का कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के त्रिभाषा सूत्र के तहत किसी भी भाषा को जबरन थोपी नहीं जाएगी बल्कि चयन का विकल्प होगा। बीजेपी नेताओं का कहना है कि एनईपी भाषा चुनने की आजादी देती है। बीजेपी ने एक भाषा की जरूरत को लेकर दिए गए अपने पुराने आक्रामक तेवर को पिछले कुछ सालों से छोड़ दिया है।
संसद के शीतकालीन सत्र में G RAM G विधेयक के नाम को लेकर भी दक्षिण भारत के सांसदों ने हिंदी थोपने से जोड़ दिया था। कई सांसदों ने आरोप लगाया था कि बीजेपी सरकार विधेयकों के नाम जानबूझकर हिंदी में रख रही है और इससे दक्षिण भारतीय लोगों को समझने में मुश्किल होती हैं। इस सवाल पर बीजेपी ने विपक्ष पर नकारात्मक राजनीति करने का आरोप लगाया है। तिरुवनंतपुरम में मिली जीत के बाद केरल बीजेपी के अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में इसे विपक्षी की सबसे आलसी किस्म की राजनीति बताया है।
उन्होंने कहा, 'बहस इस पर होनी चाहिए कि मनरेगा में सुधार क्यों जरूरी है। पिछले 10-20 सालों में क्या हुआ और अर सरकार क्या करने जा रही है। विपक्ष का सिर्फ यह कहना कि योजना का नाम हिंदी में है और इससे तमिल या मलयालम का अपमान हो रहा है, यह गंभीर राजनीति नहीं है।' उन्होंने कहा कि देश में हिंदी और अंग्रेजी बड़े स्तर पर इस्तेमाल की जाने वाली भाषाएं हैं और आप हर चीज का नाम तमिल भोजपुरी और कश्मीरी में नहीं रख सकते हैं। इसलिए सरकार हिंदी या अंग्रेजी का विकल्प चुनती है।
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बीजेपी की रणनीति में बदलाव
भारतीय जनता पार्टी यह बात अच्छी तरह समझ चुकी है कि अगर दक्षिण भारतीय राज्यों में जीत दर्ज करना चाहती है तो भाषा के मुद्दे पर अपना स्टैंड बदलना होगा। बीजेपी नेता अब दक्षिण भारतीय भाषाओं को सीखने की बात कर रहे हैं। पीएम मोदी से लेकर शिवराज सिंह चौहान तक पार्टी के बड़े नेता अपने भाषणों में दक्षिण भारतीय भाषाओं के शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। बीजेपी के नेता अब इन्हीं राज्यों से स्थानीय नेताओं को प्रमोट कर रहे हैं। केरल में बीजेपी ने कई नेताओं को स्थापित किया है। इनमें केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी और पूर्व केंद्रीय मंत्री और मौजूदा बीजेपी अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर भी शामिल हैं।
राजीव चंद्रशेखर ने हाल ही में केरल निकाय चुनाव के बाद दिए एक इंटरव्यू में बताया कि पिछले एक साल में पार्टी ने करीब 100 नेताओं को आगे बढ़ाया है और ये सभी नेता आने वाले विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे। इसके अलावा तमिलनाडु में के. अन्नामलई जैसे स्थानीय नेताओं के जरिए बीजेपी जनता के साथ सीधा कनेक्शन बनाने की कोशिश कर ही है। हालाकि, अभी तक बीजेपी को सफलता नहीं मिली है। केरल में बीजेपी की एक लोकसभा सीट है तो तमिलनाडु में तो पार्टी का खाता भी नहीं खुला।
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