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पैसा, पावर या मजबूरी, BMC चुनाव में साथ क्यों आ गए उद्धव और राज ठाकरे?

BMC चुनाव से ठीक पहले राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने औपचारिक रूप से गठबंधन का एलान कर दिया है। शिवसेना (UBT) और MNS मिलकर BMC का चुनाव लड़ेंगे।

uddhav and raj thackeray

उद्धव और राज ठाकरे, Photo Credit: Aditya Thackeray

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अगले साल 15 जनवरी को बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के चुनाव होने हैं। इस चुनाव से ठीक पहले शिवसेना (उद्धव बाला साहब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) का औपचारिक गठबंधन हो गया है। 29 साल से BMC की सत्ता पर शिवसेना का ही कब्जा रहा है लेकिन अब परिस्थिति बदली हुई है। बदली परिस्थिति में भी अपना कब्जा जमाए रखने के लिए ठाकरे बंधुओं ने हाथ मिला लिया है और साथ मिलकर चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। फिलहाल यह नहीं बताया गया है कि कौनसी पार्टी, कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

 

साथ आने के मौके पर शिवसेना (UBT) के मुखिया उद्धव ठाकरे ने कहा कि दोनों साथ रहने के लिए साथ आए हैं। वहीं, राज ठाकरे ने कहा कि दोनों का गठबंधन है, यही जाहिर करने के लिए आज हम साथ आए हैं। इस एलान से पहले राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे शिवाजी पार्क में स्थित बाल ठाकरे मेमोरियल पहुंचे और बाल ठाकरे को श्रद्धांजलि अर्पित की। दोनों के साथ उनकी पत्नियां और बेटे भी मौजूद रहे।

 

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इस मौके पर BJP पर तंज कसते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा, 'बीजेपी में हो रही चीजों को जो लोग नहीं देख सकते हैं, वे लोग हमारे इस गठबंधन में आ सकते हैं।  राज ठाकरे ने कहा, 'BMC का अगला मेयर एक मराठी होगा और वह मेयर हमारा होगा।'

 

 

 

गठबंधन के औपचारिक एलान के बाद MNS नेता संदीप देशपांडे ने कहा, 'कई दिनों से हम इस वक्त का इंतजार कर रहे थे। यह हमारे लिए और मराठी मानुष के लिए बेहद अहम पल है। 1960 के बाद मराठी मानुष के लिए यह पहला सबसे बड़ा इवेंट है। यह महाराष्ट्र की राजनीति पर असर डालेगा।'

 

सीट शेयरिंग के बारे में जब शिवसेना (UBT) के सांसद संजय राउत से पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'राजनीति में नंबर शेयरिंग व्यापार होता है। यहां भाइयों में व्यापार नहीं है। यह फैमिली है। हम देख लेंगे हमको क्या करना है। कांग्रेस को हमने बहुत बार अनुरोध किया है कि अगर बीजेपी को हराना है तो सबको साथ आना होगा।'

 

 


BMC और शिवसेना

 

BMC पर पिछले 29 साल से शिवसेना का ही कब्जा रहा है। 1996 में कांग्रेस को BMC की सत्ता से बाहर करके शिवसेना ने अपना कब्जा जमाया और आज तक उसे कोई हरा नहीं पाया है। नंदू साटम, मिलिंद वैद्य, विशाखा राउत, श्रद्धा जाधव, सुनील प्रमभु और किशोरी पेडनेकर जैसे नेता शिवसेना की बदौलत ही मुंबई के मेयर बने। हालांकि, अब हालात अलग हैं। शिवसेना दो हिस्सों में बंट चुकी है और ज्यादा शक्तिशाली धड़ा अब एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है और विधानसभा चुनाव में उसकी इन कोशिशों को तगड़ा झटका भी लगा था।

 

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BMC के आखिरी चुनाव 2017 में हुए थे। 2022 में चुनाव होने थे लेकिन अलग-अलग कारणों से चुनाव टलते गए। अब 15 जनवरी को वोटिंग होनी है और 16 जनवरी को चुनाव के नतीजे आ जाएंगे। एशिया का सबसे बड़ा नगर निकाय कहे जाने वाले BMC का बजट कई राज्यों से भी ज्यादा है। फरवरी 2025 में BMC ने कुल 74,366 करोड़ रुपये का बजट पेश किया था।

 

BMC में प्रशासनिक स्तर पर कुल 24 वॉर्ड हैं जिन्हें 227 वॉर्ड में बांटा गया है। यानी जो चुनाव होते हैं वे 227 वॉर्ड के लिए होते हैं। बहुमत के लिए 114 वॉर्ड में जीत जरूरी है। 2017 के चुनाव में शिवसेना ने 84 सीटें जीती थीं लेकिन तब शिवेसना और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था। बीजेपी को 82 सीटें मिली थीं और दोनों ने मिलकर अपना मेयर बनाया था।

राज ठाकरे और MNS का सफर

 

एक समय पर बाल ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाने वाले राज ठाकरे ने साल 2005 में शिवसेना छोड़ दी थी। एक साल बाद ही उन्होंने अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई। 2009 में MNS ने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और 13 विधानसभा सीटें जीत लीं। हालांकि, आगे चलकर उनका जलवा फीका पड़ता गया। 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में MNS सिर्फ एक-एक सीट पर चुनाव जीत पाई। 2024 में उसे और बड़ा झटका लगा और राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे समेत पार्टी के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए।

टूटी शिवसेना, कमजोर हुए उद्धव

 

शिवसेना के लिए 2019 का साल बेहद शानदार रहा। विधानसभा चुनाव में महायुति को जीत मिली लेकिन उद्धव ठाकरे सीएम पद के लिए अड़ गए। बीजेपी इस पर सहमत नहीं हुई तो उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लिया और मुख्यमंत्री बन गए। आखिर में एकनाथ शिंदे ने बगावत कर दी। यहीं से उद्धव का बुरा वक्त शुरू हो गया। पार्टी में टूट के चलते उद्धव ठाकरे ने बहुमत खो दिया और 30 जून 20222 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

 

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आगे चलकर एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के पिता बाल ठाकरे की बनाई शिवेसना पर दावा ठोंक दिया और उसके असली सर्वेसर्वा बन गए। उद्धव ठाकरे को नए नाम और नए निशान वाली शिवसेना (UBT) से संतोष करना पड़ा। 2024 में लोकसभा के चुनाव हुए तो शिवसेना (UBT) को थोड़ी राहत मिली। खुद शिवसेना (UBT) ने 9 सीटें जीतीं और महा विकास अघाड़ी को 30 सीटों पर जीत मिली। हालांकि, यह खुशी महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में जाती रही। 

 

2024 में जब महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव हुए तब बीजेपी 132 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बन गई और 2019 में मुख्यमंत्री बनने वाले उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) सिर्फ 20 सीटों पर सिमट गई। वहीं, एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने 57 सीटें पर जीत हासिल की। पार्टी में टूट का असर ऐसा हुआ कि तमाम दिग्गज नेता उद्धव का साथ छोड़कर अलग-अलग दलों में जाते रहे।

 

ये सारी वजहें बताती हैं कि राज और उद्धव ठाकरे के लिए BMC का चुनाव अब सिर्फ राजनीतिक जरूरत भर नहीं रह गया है। ठाकरे बंधुओं के लिए अब यह अस्तित्व की अंतिम लड़ाई है। अगर दोनों मिलकर BMC पर कब्जा जमाए रख पाते हैं तो कम से कम मुंबई में उनकी राजनीतिक धाक जमी रहेगी और अन्य पार्टियों के लिए वे एक संयुक्त चुनौती भी पेश कर पाएंगे।

 


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