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उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहेंगी BRS, BJD, क्या कांग्रेस है इसकी वजह?

उपराष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले नवीन पटनायक की बीजेडी और केसीआर की बीआरएस ने ऐलान किया है कि उनके सांसद इस चुनाव में वोटिंग नहीं करेंगे।

kcr rahul gandhi and navin patnaik

केसीआर, राहुल गांधी और नवीन पटनायक, Photo Credit: Khabargaon

देश के उपराष्ट्रपति पद के लिए मंगलवार को चुनाव होने हैं। सत्ताधारी नेशनल डेमोक्रैटिक अलायंस की ओर से सी पी राधाकृष्णन तो विपक्ष की ओर से बी सुदर्शन रेड्डी उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं। संख्या बल के आधार पर सत्ता पक्ष आराम से यह चुनाव जीत सकता है। इस बीच कुछ दलों ने चुनाव से दूरी बनाने का ऐलान कर दिया है। लंबे समय तक ओडिशा की सत्ता पर काबिज रही बीजू जनता दल (BJD) और तेलंगाना की सरकार चला चुकी भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने इस चुनाव से दूर रहने का फैसला किया है। रोचक बात है कि दोनों ही पार्टियों के लोकसभा सांसदों की संख्या शून्य है। जिस तरह से इन दोनों ने किसी भी पक्ष का समर्थन न करने का ऐलान किया है, उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों ही दल किसी भी सूरत में सत्ताधारी बीजेपी के साथ-साथ विपक्षी कांग्रेस के साथ भी नजर नहीं आना चाहते हैं।

 

ध्यान देने वाली बात यह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बीआरएस तेलंगाना में और बीजेडी ओडिशा में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। मौजूदा समय में बीआरएस के पास 4 राज्यसभा सांसद हैं और बीजेडी के पास कुल 7 राज्यसभा सदस्य हैं। यानी इन दोनों को मिलाकर कुल 11 सांसद वोटिंग से दूर रहेंगे। मौजूदा गणित देखें तो राज्यसभा और लोकसभा को मिलाकर सत्ता पक्ष के पास लगभग 423 वोट हैं (लोकसभा में 293 और राज्यसभा में 130)। वहीं, विपक्ष के पास लगभग 324 वोट चाहिए। बहुमत का आंकड़ा लगभग 391 वोट पर है और विपक्ष इससे काफी दूर है।

 

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ऐसे में अगर सत्ता पक्ष के सांसद क्रॉस वोटिंग करते या फिर न्यूट्रल रहने वाले दल विपक्ष का साथ देते तब जाकर सुदर्शन रेड्डी मुकाबले में आ सकते थे। हालांकि, अब बीआरएस और बीजेडी जैसे दलों के किनारा कर लेने से विपक्ष की उम्मीदें ध्वस्त होती दिख रही हैं। इसकी बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि दोनों ही दल अपने-अपने राज्य में बीजेपी के अलावा कांग्रेस के साथ भी खड़े नजर नहीं आना चाहते हैं।

कांग्रेस है बड़ी वजह?

 

दरअसल, तेलंगाना में इस समय कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस ने केसीआर की अगुवाई वाली बीआरएस को हराकर ही सत्ता हासिल की है। बीते एक-डेढ़ साल से बीआरएस लगातार कांग्रेस का विरोध करती रही है। साथ ही साथ, वह नेचुरली भी कांग्रेस की विरोधी ही है और कांग्रेस के साथ वह कतई नहीं दिखना चाहती है। यही वजह है कि उसने कांग्रेस के साथ जाकर विपक्षी उम्मीदवार का भी समर्थन करने का फैसला नहीं किया।

 

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दूसरी तरफ, बीआरएस के मुखिया केसीआर केंद्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी और बीजेपी का विरोध कर चुके हैं। वह तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश भी कर चुके हैं। हालांकि, तब बात नहीं बन पाई थी। तेलंगाना की बात करें तो वह बीआरएस यहां बीजेपी के साथ भी नहीं दिखना चाहती है। इन कारणों के अलावा एक बड़ी वजह बीआरएस का संख्या बल भी है। बीआरएस के पास कुल 4 ही वोट हैं। ऐसे में उसके वोट देने या ना देने से किसी भी पक्ष को फर्क नहीं पड़ने वाला है। 

 

इसको बेहद चतुराई से बीआरएस ने किसानों के मुद्दे से जोड़ दिया है। बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के टी रामा राव ने कहा है, 'कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही (यूरिया की) कमी के मुद्दे को सुलझाने में विफल रही हैं। यूरिया की कमी इतनी अधिक है कि यूरिया के लिए कतारों में इंतजार करते समय किसानों के बीच झड़पें हो रही हैं। हम मतदान से दूर रहेंगे। हम इसमें भाग नहीं लेंगे। अगर उपराष्ट्रपति चुनाव में नोटा का विकल्प उपलब्ध होता तो बीआरएस इसका प्रयोग कर सकती थी।'

बीजेडी की दिक्कत क्या है?

 

नवीन पटनायक की अगुवाई वाली बीजेडी 2014 से ही कई मुद्दों पर एनडीए का समर्थन करती रही है। हालांकि, 2024 में जब लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ हुए तो बीजेपी ने ही बीजेडी का सूपड़ा साफ कर दिया। अब अगर बीजेडी को सत्ता में वापसी करनी है तो उसे सत्ता पक्ष के साथ दिखने से बचना ही होगा। दूसरी तरफ, कांग्रेस पार्टी भी ओडिशा में प्रयास कर रही है कि वह बीजेपी को हटाकर सत्ता में आ सके।

 

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यही वजह है कि बीजेडी किसी भी हाल में कांग्रेस के साथ नहीं खड़ी दिखना चाहती है। कई मुद्दों पर ओडिशा कांग्रेस ने बीजेडी को उकसाने की कोशिश भी की लेकिन बीजेडी ने खुद को अलग ही रखा। दूसरी बात यह है कि बीजेडी के पास भी एक भी लोकसभा सांसद नहीं है। 7 राज्यसभा सांसद जरूर हैं लेकिन संख्या बल के हिसाब से देखें तो वे भी ज्यादा असर नहीं डाल पाएंगे। ऐसे में बीजेडी ने भी उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर ही रहने का फैसला किया है।


इस बारे में बीजेडी के सांसद सस्मित पात्रा ने कहा है, 'बीजेडी अध्यक्ष नवीन पटनायक ने फैसला किया है कि पार्टी के सांसद उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान से दूर रहेंगे। उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) के सदस्यों और सांसदों से परामर्श के बाद यह फैसला लिया। बीजेडी, एनडीए और ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) दोनों से समान दूरी बनाए रखता है। हमारा पूरा ध्यान राज्य और उसके 4.5 करोड़ लोगों के विकास पर है।'

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