पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया चल रही है। मतदाता सूची में संशोधन की इस पहल पर राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) आमने-सामने हैं। दोनों पार्टियां, SIR को चुनावी मुद्दा बनाकर, चुनाव से पहले ही सियासी मैदान में उतर चुकी हैं। पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभाओं पर टीएमसी और बीजेपी ने अपने कार्यकर्ताओं को उतार दिया है।
पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य, विधानसभा में नेता विपक्ष सुवेंदु अधिकारी और केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार, आए दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं, लोगों से मुलाकात कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद रैलियां कर रही हैं, केंद्र पर सवाल उठा रही हैं। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का नेतृत्व क्या कर रहा है, इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं।
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BJP क्या कर रही है?
बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के 70000 से ज्यादा पोलिंग बूथ पर अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल के 17 लोकसभा सांसदों के साथ दिसंबर में ही बैठक की थी। बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में 6 अलग-अलग जोन बनाए हैं। हर जोन को 'वॉर रूम' के तौर पर बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व देख रहा है। मंगल पांडेय, सुनील बंसल, भूपेंद्र यादव और त्रिपुरा के पूर्व सीएम बिप्लब देब पश्चिम बंगाल में जुट गए हैं।
बीजेपी आम जनता को यह समझाने में जुटी है कि लेफ्ट की सत्ता रही हो या टीएमसी की, हर किसी ने चुनाव में धांधली की है, इस बार वोटर लिस्ट की सफाई हो रही है, निष्पक्ष चुनाव होंगे और बीजेपी चुनकर सत्ता में आएगी। बीजेपी संगठन स्तर पर पश्चिम बंगाल में मजबूत है। 2011 तक जीरो सीटों पर सिमटी पार्ट, 2016 में 3 सीटों पर काबिज थी। अचानक 2021 में पार्टी ने 77 सीटें जीतकर हर किसी को चौंका दिया था। अब बीजेपी ने अपने संगठन को जमीनी स्तर पर और मजबूत करने का फैसला किया था। बीजेपी के नेताओं ने 160 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है।
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सौमिक भट्टाचार्य, दिलीप घोष और सुकांत मजूमदार के बारे में शुरुआती दिनों में अनबन की खबरें सामने आईं थीं, जिसे बीजेपी ने अब सुलझा लिया है। हर मुद्दे पर बड़े नेताओं के बयान एक जैसे सामने आ रहे हैं। बीजेपी ने संसद में वंदे मातरम के 150 साल होने पर जो चर्चा बुलाई थी, उसे भी चुनावों से ही जोड़कर देखा जा रहा है। बीजेपी केंद्रीय योजनाओं और हिंदुत्व के सहारे पश्चिम बंगाल में अपनी राह देख रही है। राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दौरे की भी चर्चाएं हैं।
तृणमूल कांग्रेस क्या कर रही है?
तृणमूल कांग्रेस राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी है। SIR के मुद्दे पर अल्पसंख्यक बाहुल विधानसभाओं में ममता बनर्जी दौरे कर रही हैं। मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तर दीनाजपुर, उत्तर-दक्षिण परगना जैसे जिलों में ममता बनर्जी अल्पसंख्यक वोटों को लामबंद कर रही हैं। 43 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम उम्मीदवार जीत-हार तय करते हैं। उनका कहना है कि बीजेपी इसी समुदाय का वोट, SIR के तहत काट दे रही है। बीजेपी का कहना है कि इन्हीं सीटों पर बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम वोटर लिस्ट में डाले जा रह हैं, जिसके खिलाफ चुनाव आयोग छंटनी कर रहा है।
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कांग्रेस कहां गुम है?
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। अधीर रंजन चौधरी, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के बड़े चेहरे हैं लेकिन साल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में टीएमसी के युसुफ पठान से चुनाव हार गए। राज्य में लगातार हाशिए पर कांग्रेस जा रही है। 2021 में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई। 2024 के चुनाव में कांग्रेस 2 सीट जीत पाई। एक तरफ जहां संगठन को मजबूत करने में बीजेपी और टीएमसी के नेता अभी से जुट गए हैं, कांग्रेस के पास एक बड़ा चेहरा नहीं है, जिसे आगे कर चुनाव के लिए रणनीति तैयार करे। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने शुभंकर सरकार को अध्यक्ष बनाया है लेकिन उनकी लोकप्रियता को लेकर सवाल उठते रहे हैं।
क्या कांग्रेस चूक रही है?
कांग्रेस 2024 में इस भ्रम में रही कि ममता बनर्जी के खिलाफ बोलना है या नहीं बोलना है। अधीर रंजन चौधरी मुखर रहे लेकिन बड़े नेताओं ने इंडिया गठबंधन की वजह से चुप्पी साधी। 2026 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अभी तक यह तय नहीं कर पाई है कि लड़ना बीजेपी से है या तृणमूल कांग्रेस से।टीएमसी INDIA गठबंधन में भरोसा रखती है लेकिन राज्य में कांग्रेस के साथ सीट शेयर करने के लिए तैयार नहीं है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी का राज्य में अस्तित्व है, जनाधार है लेकिन यह तय ही नहीं है कि नेता कौन है। सितंबर 2024 में शुंभकर सरकार को पश्चिम बंगाल कांग्रेस इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। सचिव स्तर पर पार्टी में बैठकें हो रही हैं लेकिन राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा तक नहीं हो पा रही है। केंद्रीय स्तर पर राहुल गांधी, चुनाव आयोग भी SIR, EVM जांच और वोटर सूची संशोधन जैसे मुद्दे उठा रहे हैं लेकिन जमीनी स्तर पर संगठन के कार्यकर्ता दूर-दूर नजर आ रहे हैं।