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भगवान शिव का घर या तपस्थली, क्या है ‘आदि कैलाश’?

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित आदि कैलाश का हिंदू धर्म में अपना खास स्थान है। आइए जानते हैं इस स्थान से जुड़ी मान्यताएं।

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आदि कैलाश, पिथौरागढ़(Photo Credit: Wikimedia Commons)

भारत के उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में स्थित आदि कैलाश पर्वत को ‘छोटा कैलाश’ और ‘चोटा मानसरोवर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्वत हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है, क्योंकि यह भगवान शिव का एक प्राचीन तपस्थली रहा है। यह स्थान रहस्यमय, मनोहारी और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है।

 

आदि कैलाश पर्वत समुद्र तल से लगभग 19,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह पर्वत कैलाश मानसरोवर की ही तरह दिखता है और इसी कारण इसे उसका 'प्रतिरूप' या 'छाया' भी कहा जाता है। यह पर्वत नेपाल सीमा के पास, भारत के अंदर स्थित है और श्रद्धालुओं को बिना पासपोर्ट या वीजा के इसकी यात्रा करने की सुविधा होती है।

 

इसके पास ही एक सुंदर झील स्थित है, जिसे पार्वती सरोवर या आदि मानसरोवर कहते हैं। इस झील में शांत जल और पर्वत की छाया देखने पर ऐसा लगता है मानो स्वयं भगवान शिव वहां विराजमान हों।

 

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पौराणिक मान्यता

आदि कैलाश से जुड़ी सबसे प्रमुख मान्यता यह है कि यहां भगवान शिव और माता पार्वती ने कई वर्षों तक तप किया था। यह स्थान उनकी गृहस्थ आश्रम की तरह जाना जाता है, जबकि मूल कैलाश (तिब्बत में) को उनका परमधाम या वैराग्य स्थल माना जाता है।

 

कुछ कथाओं के अनुसार, भगवान शिव यहां ऋषि मुनियों को दर्शन देने, ध्यान करने और सृष्टि की रचना-विनाश के चक्र पर विचार करने के लिए आते थे। यहां एक शिवलिंग भी प्राकृतिक रूप में स्थित है, जिसे स्वयंभू कहा जाता है।

आदि कैलाश से जुड़ी मान्यताएं

  • भक्तों का मानना है कि यहां की यात्रा से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस स्थान को पंच कैलाशों (कैलाश, आदि कैलाश, शोणित कैलाश, किन्नर कैलाश और श्वेत कैलाश) में से एक माना गया है।
  • यह पर्वत अत्यंत शांत, शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर है। योगी, साधु-संत और साधना में रुचि रखने वाले लोग यहां ध्यान और साधना के लिए आते हैं।
  • इसके साथ आदि कैलाश की यात्रा में पहाड़, झीलें, नदियां, ग्लेशियर और जंगलों के बीच चलना होता है, जो प्रकृति प्रेमियों के लिए खास अनुभव होता है।
  • बहुत से श्रद्धालु बताते हैं कि उन्होंने यहां अलौकिक ध्वनियां सुनीं, तेज प्रकाश देखा या ध्यान में दिव्य अनुभव किए। यह इसे एक रहस्यमय स्थान बनाता है।

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यहां की यात्रा और रास्ता

आदि कैलाश यात्रा हर साल गर्मियों में शुरू होती है, जब बर्फ पिघलती है और रास्ते खुलते हैं। यात्रा आमतौर पर धारचूला से शुरू होती है और फिर गुंजी, नाभी, नावीढांग और अंत में आदि कैलाश तक पहुंचा जाता है। हाल के वर्षों में भारत सरकार ने इस क्षेत्र में सड़क, संचार और चिकित्सा सुविधाएं बढ़ाई हैं जिससे यह यात्रा अब पहले की तुलना में आसान हो गई है।

आदि कैलाश की कुछ खास बातें

यहां एक चट्टान है जो गणेश जी के आकार की लगती है और एक प्राकृतिक शिवलिंग भी है, जिसे श्रद्धालु बहुत ही सिद्ध मानते हैं। यहां स्थित पार्वती सरोवर में आदि कैलाश का जो प्रतिबिंब बनता है, वह अत्यंत दिव्य माना जाता है। लोग मानते हैं कि यह प्रतिबिंब देखने मात्र से मन शुद्ध हो जाता है। इसके साथ कई साधक बताते हैं कि उन्होंने वहां भगवान शिव या दिव्य शक्तियों की उपस्थिति महसूस की।

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