हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु की उपासना सृष्टि के पालनहार के रूप में की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु की उपासना करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ‘शांताकरम मंत्र’ बहुत ही प्रभावशाली माना जाता है। यह मंत्र है-
शांताकारम भुजङ्गशयनम पद्मनाभं सुरेशम। विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म। वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।।
ॐ नमोः नारायणाय नमः। ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः।
यह मंत्र भगवान विष्णु की स्तुति में कहा गया है और उनके दिव्य स्वरूप, गुणों और महिमा का वर्णन करता है। यह मंत्र वेदों, पुराणों और कई धार्मिक ग्रंथों में विष्णु स्तुति के रूप में मिलता है। विशेष रूप से, यह मंत्र विष्णु सहस्रनाम और कई उपनिषदों में विभिन्न रूपों में पाया जाता है। हालांकि, इस मंत्र का सटीक उल्लेख ऋग्वेद और यजुर्वेद में भगवान विष्णु के गुणों के वर्णन में मिलता है।
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मंत्र का विस्तृत अर्थ
शांताकारं भुजङ्गशयनम्
शांत स्वभाव वाले भगवान विष्णु, जो शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान विष्णु संपूर्ण जगत के पालनहार होने के बावजूद पूरी तरह शांत और स्थितप्रज्ञ रहते हैं।
पद्मनाभं सुरेशम्
भगवान विष्णु के नाभि में कमल है, जिससे सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी प्रकट हुए। वे समस्त देवताओं के स्वामी हैं।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम्
भगवान विष्णु संपूर्ण ब्रह्मांड के आधार हैं। उनका स्वरूप आकाश के समान व्यापक और घने बादलों की तरह श्यामल है। उनके सभी अंग अत्यंत सुंदर और शुभता प्रदान करने वाले हैं।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वे माता लक्ष्मी के प्रिय हैं और उनके नेत्र कमल के समान हैं। वे योगियों द्वारा ध्यान में अनुभव किए जाते हैं, क्योंकि वे प्रत्यक्ष दर्शन से अधिक ध्यान में ही प्रकट होते हैं।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्
मैं उन विष्णु भगवान की वंदना करता हूं, जो संसार के समस्त भय को हरने वाले हैं और समस्त लोकों के एकमात्र स्वामी हैं।
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ॐ नमो नारायणाय नमः
इसका अर्थ है: 'मैं भगवान नारायण को नमस्कार करता हूं।' यह मंत्र भगवान विष्णु की आराधना का एक प्रमुख मंत्र है और वेदों में बार-बार उच्चारित हुआ है।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
इसका अर्थ है: 'मैं भगवान वासुदेव को नमन करता हूं।' यह मंत्र विष्णु पुराण, भागवत पुराण और कई वैष्णव ग्रंथों में बार-बार दोहराया गया है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।