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बिहार शरीफ की बड़ी दरगाह है आस्था का केंद्र, पढ़िए इसका इतिहास

बिहार शरीफ में स्थित बड़ी दरगाह इस्लाम धर्म के सूफी संत मखदूम शर्फुद्दीन अहमद याह्या मनेरी की मजार है। मखदूम याह्या 13 वीं शताब्दी के सूफी संत थे, आइए जानते हैं इस दरगाह से जुड़ा इतिहास क्या है?

bihar sharif badi dargah

बिहार शरीफ का बड़ी दरगाह: Photo credit: Social Media

बिहार शरीफ की बड़ी दरगाह बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो सूफी परंपरा और भारतीय सांस्कृतिक एकता का प्रतीक मानी जाती है। यह दरगाह प्रसिद्ध सूफी संत मखदूम शर्फुद्दीन अहमद याह्या मनेरी की मजार है, जो 13वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध सूफी संत थे। मखदूम याह्या को बिहार और पूरे पूर्वी भारत में 'मखदूम-ए-जहान' या 'मखदूम साहब' के नाम से जाना जाता है। 

 

मखदूम शर्फुद्दीन अहमद याह्या मनेरी का जन्म 1263 ईस्वी में हुआ था और उन्होंने 1381 ईस्वी में इस संसार को अलविदा कहा था। उनकी शिक्षाएं और सूफीवाद के प्रति समर्पण ने उन्हें भारतीय सूफी परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। मान्यता के अनुसार, बड़ी दरगाह का निर्माण 15वीं से 16वीं शताब्दी के बीच किया गया था। इसे मखदूम याह्या मनेरी के पोते मखदूम शाह दौलत मनेरी ने बनवाया था। यह स्थल सूफीवाद के प्रचार-प्रसार का केंद्र रहा है और यहां हर साल उर्स का आयोजन होता है, जो सूफी संत की पुण्यतिथि के अवसर पर मनाया जाता है।

 

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बड़ी दरगाह का ऐतिहासिक परिचय

बड़ी दरगाह के परिसर में एक बड़ी सी बावड़ी, मस्जिद, और अन्य धार्मिक संरचनाएं स्थित हैं, जो इस स्थल की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को दर्शाती हैं। यह स्थल न केवल मुस्लिम समुदाय के लिए, बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए एक धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में महत्वपूर्ण है।

 

हाल ही में, बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम (BSTDC) ने बड़ी दरगाह के सौंदर्यीकरण का काम किया है, जिसमें प्रवेश द्वारों का निर्माण, लाइट और अन्य सुविधाओं का समावेश किया गया है। इस पहल का उद्देश्य इस स्थल की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को बनाए रखते हुए पर्यटकों के अनुभव को बेहतर बनाना है।

 

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स्थापत्य और कलात्मक विशेषता

  • बड़ी दरगाह की वास्तुकला में इस्लामी, अफगानी और भारतीय शैली का सुंदर संगम देखने को मिलता है।
  • दरगाह सफेद पत्थरों से बनी हुई है और इस पर खूबसूरत मेहराबें (arches) और गुंबद (domes) बने हुए हैं।
  • दरगाह के चारों ओर खुली जगह है, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं।
  • अंदर के हिस्से में संत की मजार है, जिस पर हरी और सुनहरी चादरें चढ़ाई जाती हैं।
  • दरगाह की दीवारों पर फारसी और अरबी में लिखे शिलालेख भी मौजूद हैं, जिन पर धार्मिक शिक्षाएं लिखी हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

  • बड़ी दरगाह न केवल मुस्लिम समुदाय के लिए बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है।
  • हर साल यहां उर्स का आयोजन होता है, जो मखदूम साहब की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है।
  • इस मौके पर पूरे देश से श्रद्धालु आते हैं और कव्वाली, चादरपोशी और सामूहिक दुआ में हिस्सा लेते हैं।
  • यहां आने वाले लोग मानते हैं कि मखदूम साहब की मजार पर दुआ करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

यहां कैसे पहुंचें

नजदीकी रेलवे स्टेशन: बिहार शरीफ रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी स्टेशन है (लगभग 3-4 किलोमीटर दूर)। यहां से ऑटो या टैक्सी के जरिए आसानी से बड़ी दरगाह पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग से: पटना से बिहार शरीफ की दूरी लगभग 75 किलोमीटर है। NH-20 (पुराना NH-31) से लगभग 2 घंटे में पहुंचा जा सकता है।

नजदीकी एयरपोर्ट: यहां से पटना एयरपोर्ट सबसे नजदीक है, जो यहां से लगभग 85 किलोमीटर दूर है।

 

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