कोणार्क सूर्य मंदिर, जिसे सूर्य के रथ का मंदिर भी कहा जाता है, भारत की मध्यकालीन वास्तुकला और शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण माना जाता है। यह मंदिर ओडिशा के पुरी जिले में स्थित है और अपनी भव्यता, नक्काशी और रथ के आकार के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में राजा नरसिंह देव ने करवाया था और इसे सूर्य देव को समर्पित किया गया था। इस मंदिर को बनाने में 1200 कारीगरों ने 12 साल तक काम किया था।
मंदिर की सबसे बड़ी खासियत इसकी रथ जैसी बनावट है, जिसमें सात घोड़े और 24 विशाल पहिए बनाए गए हैं। यह रथ सूर्य देव की आकाशीय यात्रा का प्रतीक माना जाता हैं। इसके अलावा, मंदिर की दीवारों और स्तंभों (पिलर) पर उकेरी गई नक्काशी में पौराणिक कथाएं, नृत्य, संगीत, युद्ध और सामान्य जीवन के दृश्य देखने को मिलते हैं। हर नक्काशी इतनी जीवंत है कि देखने वाले को ऐसा लगता है मानो पत्थर में जीवन उतर आया हो।
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मंदिर के स्थापत्य की विशेषता
- मंदिर सूर्य देव के रथ के रूप में डिजाइन किया गया है। यह रथ 7 घोड़े और 24 विशाल चक्रों पर आधारित है, जो सूर्य देव के आसमान में यात्रा करने का प्रतीक माना जाता हैं।
- यह मंदिर काले पत्थर से बनाया गया है, जिसकी भव्यता और ठोस संरचना इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है।
- मंदिर का मुख्य गर्भगृह, जहां सूर्य देव की प्रतिमा स्थित होती थी (अब प्रतिमा गायब है), ऊंचाई और चौड़ाई के अनुपात में शानदार रूप से डिजाइन किया गया है।
- चारों ओर के स्तंभ (पिलर) और दीवारें बारीक वास्तुशिल्प शैली में बनी हैं, जिनमें रथ, घोड़े, देवता और मानव आकृतियां उकेरी गई हैं।
- मान्यता के अनुसार, मंदिर के चारों ओर स्थित 24 विशाल चक्र दिन के 24 घंटों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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कोणार्क सूर्य मंदिर की शिल्पकला का विवरण
- मंदिर की दीवारों और पिलरों पर पौराणिक कथाओं और दैनिक जीवन के दृश्य की नक्काशी की गई है।
- नृत्य, संगीत, युद्ध, खेती और राजसी जीवन जैसे विषयों को पत्थर पर जीवंत रूप में उकेरा गया है।
- मंदिर की छत और द्वार (गेट) पर उकेरी गई फूलों और ज्यामितीय आकृतियों की नक्काशी स्थापत्य कला में और निखार लाती है।
- हर शिल्प को इस तरह से उकेरा गया है कि सूरज की रोशनी के हिसाब से छाया और प्रकाश खेलते हैं, जिससे मंदिर के सौंदर्य में प्राकृतिक प्रभाव जुड़ता है।

मंदिर की बनावट से जुड़ी मान्यता
- कहा जाता है कि यह मंदिर सूर्य देव की आराधना और भक्ति का प्रतीक है।
- इसके रथ का डिजाइन इस विश्वास पर आधारित है कि सूर्य का रथ पूरे आकाश में चलता है।
- माना जाता है कि मंदिर की नक्काशी और रथ का आकार सूर्य की गति और समय का प्रतिनिधित्व करता है।
- ऐसा भी कहा जाता है कि सूर्य मंदिर में पूजा करने से सूर्य देव की कृपा और जीवन में ऊर्जा, समृद्धि प्राप्त होती है।

इस मंदिर तक कैसे पहुंचें?
यह मंदिर पुरी से लगभग 35 किलोमीटर दूर कोणार्क में स्थित है।
नजदीकी एयरपोर्ट : निकटतम एयरपोर्ट पुरी या भुवनेश्वर है। भुवनेश्वर से सड़क मार्ग से कोणार्क तक पहुंचा जा सकता है।
नजदीकी रेलवे स्टेशन: निकटतम रेलवे स्टेशन पुरी है। पुरी से टैक्सी या बस के माध्यम से कोणार्क पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग: पुरी और भुवनेश्वर से नियमित बसें और टैक्सियां मिलती रहती हैं।