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बज्रेश्वरी देवी मंदिर: जहां देवी की आराधना करते थे पांडव

हिमाचल प्रदेश में स्थित बज्रेश्वरी देवी मंदिर देवी दुर्गा के दृढ़ शक्ति स्वरूप को समर्पित है। इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा और इतिहास बहुत प्रसिद्ध है।

brijeshwari devi mandir

बज्रेश्वरी देवी मंदिर: Photo Credit: Wikipedia

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित बज्रेश्वरी देवी मंदिर अपनी पौराणिक मान्यता और इतिहास के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। यही वजह है कि इस मंदिर को विशेष धार्मिक और पौराणिक महत्व प्राप्त है। मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने देवी के आदेश पर इस मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर से जुड़े इतिहास के अनुसार, मुस्लिम आक्रमणकारियों ने कई बार इस मंदिर पर हमला किया है और हजारों किलों सोना और अन्य कीमती सामान लूट कर ले गए थे। यह मंदिर एक बार प्राकृतिक आपदा में पूरी तरह नष्ट हो गया था  लेकिन श्रद्धा और आस्था के बल पर दोबारा इसका पुनर्निर्माण किया गया।

 

मंदिर की खासियत है कि यहां देवी को पिंडी स्वरूप में पूजा जाता है और मकर संक्रांति पर विशेष अनुष्ठान के तहत देवी को मक्खन और फूलों से सजाया जाता है। देवी की इस सजावट को उनके युद्ध के बाद उपचार की कथा से जोड़ा जाता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां सच्चे मन से पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और दुख-कष्ट दूर होते हैं।

 

 

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मंदिर की पौराणिक कथा

बजेश्वरी मंदिर से जुड़ी एक कथा बहुत प्रचलित है। प्रचलित कथा के अनुसार, कहा जाता है कि यह मंदिर महाभारतकाल में पांडवों ने बनाया था। एक कथा के अनुसार, बताया जाता है कि पांडवों ने स्वप्न में देवी से सुना कि नागरकोट गांव में देवी विंज्रेश्वरी है और उन्हें यह मंदिर वहीं बनाना चाहिए वर्ना उनकी सुरक्षा पर संकट होगा। कथा के दूसरे अध्याय की मान्यता है कि उन्होंने उसी रात इस सुंदर मंदिर का निर्माण किया था। 

 

मंदिर से जुड़े इतिहास के अनुसार, मंदिर ने बहुत से ऐतिहासिक आक्रमण और प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है। इतिहासकारों के मुताबिक, मोहम्मद गजनी ने इस मंदिर में लूट की थी। फिर 1905 के कांगड़ा में आए भूकंप की वजह से यह मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया था। बाद में उसी स्थान पर दोबार इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया। 

 

 

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मंदिर की विशेषताएं

  • देवी विंज्रेश्वरी या बज्रेश्वरी देवी का स्वरूप वज्रेश्वरी माना जाता है, यानी वो देवी जो वज्र (वज्र = बिजली या कठोर हथियार) की तरह दृढ़, शक्ति स्वरूप हैं। 
  • गर्भगृह में देवी को 'पिंडी' के रूप में स्थापित किया गया है। 
  • मंदिर परिसर में छोटे- छोटे मंदिर हैं जैसे भैरव मंदिर और धायनु भगत की मूर्ति। 
  • मकर संक्रांति के दौरान यंहा विशेष अनुष्ठान होता है, देवी की पिंडी पर मक्खन लगा कर फूलों से सजाया जाता है। यह देवी की लड़ाई के बाद घावों को भरने की कथा से जुड़ा है। 

मंदिर से जुड़ी मान्यताएं

  • भक्तों का विश्वास है कि इस शक्तिपीठ पर सच्चे मन से की गई पूजा-प्रार्थना से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, रोग और विपत्तियां दूर होती हैं। 
  • दुर्भाग्य से पुत्रहीन स्त्रियों को भी आशीर्वाद प्राप्त होने की मान्यता है। मान्यता है कि मंदिर के पवित्र दर्शन से संतान की कामना पूरी होती है। 

मंदिर तक पहुंचने का रास्ता

नजदीकी एयरपोर्ट: यहां का नजदीकी एयरपोर्ट गगल एयरपोर्ट है, जो मंदिर से लगभग 13 किलोमीटर दूर है। 

नजदीकी रेलवेस्टेशन: नजदीकी रेलवे स्टेशन कांगड़ा मंदिर स्टेशन है। यह स्टेशन पथानकोट-जोगिंदर नगर मार्ग पर स्थित है। आप पहले किसी बड़े शहर से पथानकोट आकर फिर ट्रेन-बस के जरिए कांगड़ा मंदिर स्टेशन पहुंच सकते हैं। 

सड़क मार्ग: कांगड़ा शहर अच्छी तरह सड़क मार्गों से जुड़ा है। धर्मशाला, पठानकोट, चंडीगढ़ आदि जगहों से बस या टैक्सी के जरिए पहुंचना संभव है। 

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