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कभी गुलाबी, कभी भूरा! इस मंदिर में दिन में तीन बार बदलता है शिवलिंग का रंग

बिहार के कैमूर जिले में स्थित मां मुंडेश्वरी मंदिर में स्थापित पंचमुखी शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है। ऐसा क्यों होता है जानते हैं-

Maa Mundeshwari Temple

मां मुंडेश्वरी मंदिर, Photo Credit- Bihar Tourism

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भारत में हजारों प्राचीन और अनोखे मंदिर हैं लेकिन बिहार के कैमूर जिले में स्थित मां मुंडेश्वरी मंदिर अपनी अलग पहचान रखता है। यह मंदिर देवी मां मुंडेश्वरी को समर्पित है। हर साल नवरात्रि के दौरान लाखों श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर में माता की प्रतिमा के साथ पंचमुखी शिवलिंग भी स्थापित है, जो भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। मान्यता है कि यह शिवलिंग दिन में लगभग तीन बार अपना रंग बदलता है। आइए जानते हैं इससे जुड़े तथ्य-


कैमूर जिले की पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी मंदिर न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अनमोल हिस्सा है। इस मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक और खास बातों के बारे में जानते हैं।

 

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मंदिर की प्रमुख विशेषताएं

अष्टकोणीय वास्तुकला: यह मंदिर भारत के बहुत कम अष्टकोणीय (8 कोनों वाले) मंदिरों में से एक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, यह मंदिर 108 ईस्वी का है जो इसे भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक बनाता है।

पंचमुखी शिवलिंग का रंग बदलना: यहां स्थापित पंचमुखी शिवलिंग की अपनी एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महिमा है। सूर्य की किरणों के कोण के आधार पर, शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता हुआ दिखता है- 

  • सुबह: हल्का लाल या गुलाबी
  • दोपहर: तांबे जैसा या गहरा पीला
  • शाम: भूरा या काला

क्यों बदलता है रंग?

विशेषज्ञों के अनुसार, शिवलिंग के रंग बदलने का मुख्य कारण सूर्य की किरणों का एंगल और पत्थर की प्रकृति है। मंदिर का निर्माण एक ऊंची पहाड़ी पर किया गया है। मंदिर का गर्भगृह इस तरह से डिजाइन किया गया है कि दिन के अलग-अलग समय पर सूर्य की किरणें अलग-अलग तरफ से शिवलिंग पर पड़ती हैं। 

 


जब प्रकाश की दिशा बदलती है तो पत्थर का रंग भी बदल जाता है, जिससे कभी लाल, केसरिया और शाम को धुंधला या काला दिखाई देता है। लोगों का यह मानना है कि यह कोई भौतिक घटना नहीं, बल्कि भगवान शिव का चमत्कार है। 

 

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बलि की प्रथा

इस मंदिर में एक ओर अनोखी प्रथा है जिसमें बकरे की बलि दी जाती है लेकिन उसे मारा नहीं जाता है। पुजारी बकरे पर मंत्रोच्चार के साथ चावल फेंकता है और बकरा कुछ समय के लिए बेहोश हो जाता है। इसके बाद पूजा पूरी की जाती है और फिर से उस पर चावल छिड़ककर होश में लाकर उसे छोड़ दिया जाता है। इसे सात्विक बलि कहा जाता है।

 

 

इस मंदिर को नागर शैली की वास्तुकला का शानदार नमूना माना जाता है। यहां खुदाई के दौरान गुप्त काल की मूर्तियां और शिलालेख मिले हैं जो इसकी प्राचीनता की पुष्टि करते हैं। इस मंदिर को भगवान शिव और शक्ति के अनूठे मेल का प्रतीक माना जाता है।

 

नोट: इस खबर में लिखी गई बातें धार्मिक और स्थानीय मान्यताओं पर आधारित हैं। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।

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