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धारी देवी मंदिर: उत्तराखंड की रक्षक क्यों कहलाती हैं यहां की भवानी?

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित धारा देवी मंदिर का अपना एक एक विशेष स्थान है। आइए जानते हैं इस स्थान से जुड़ी मान्यताएं।

Image of Dhari Devi Mandir

धारी देवी मंदिर(Photo Credit: Wikimedia Commons)

उत्तराखंड को देव भूमि की उपाधि प्राप्त है। यहां कई प्राचीन और पौराणिक मठ एवं मंदिर स्थापित हैं, जो अपने इतिहास और पौराणिक महत्व के कारण देशभर में प्रचलित हैं। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित धारी देवी मंदिर एक प्राचीन और अत्यंत पूजनीय स्थल है। यह मंदिर देवी काली के एक रूप धारी देवी को समर्पित है, जिन्हें उत्तराखंड की रक्षक देवी और चारधाम यात्रा की संरक्षिका माना जाता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसके साथ जुड़ी पौराणिक कथाएं और घटनाएं इसे और भी विशेष बनाती हैं।

पौराणिक कथा और मान्यताएं

धारी देवी मंदिर से जुड़ी एक प्रमुख कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक भीषण बाढ़ के दौरान देवी की मूर्ति अलकनंदा नदी में बहकर एक चट्टान से टकराई। स्थानीय ग्रामीणों ने देवी की करुण पुकार सुनी और एक दिव्य संकेत के अनुसार उस स्थान पर मूर्ति की स्थापना की। तभी से यह स्थान धारी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 

एक अन्य मान्यता के अनुसार, देवी की मूर्ति का ऊपरी भाग धारी देवी मंदिर में और निचला भाग रुद्रप्रयाग जिले के कालिमठ मंदिर में स्थापित है। यह विभाजन देवी काली के दो रूपों का प्रतीक है—मृदुल और उग्र।

 

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मंदिर की विशेषताएं

मूर्ति का रूपांतरण:

यह माना जाता है कि धारी देवी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है—सुबह में बालिका, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा का रूप धारण करती है। यह परिवर्तन देवी के जीवन चक्र का प्रतीक माना जाता है।

 

खुले आकाश के नीचे मूर्ति:

एक मान्यता के अनुसार, देवी की मूर्ति को कभी भी छत के नीचे नहीं रखा जाना चाहिए। जब भी इसे छाया में रखने का प्रयास किया गया, प्राकृतिक आपदाएं आईं, जिससे यह विश्वास और भी मजबूत हुआ।

 

108 शक्तिपीठों में स्थान:

श्रीमद देवी भागवत के अनुसार, धारी देवी मंदिर भारत के 108 शक्तिपीठों में से एक है, जो इसे और भी अधिक धार्मिक महत्व प्रदान करता है।

 

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एक लोक मान्यता जो इस स्थान से जुड़ी है कि 16 जून 2013 को, एक जलविद्युत परियोजना के लिए धारी देवी की मूर्ति को उसके मूल स्थान से हटाकर एक कंक्रीट प्लेटफॉर्म पर स्थापित किया गया। मूर्ति के स्थानांतरण के कुछ ही घंटों बाद, उत्तराखंड में भीषण बाढ़ और भूस्खलन की आपदा आई, जिसमें हजारों लोग मारे गए और व्यापक तबाही हुई। स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का मानना है कि यह आपदा देवी के क्रोध का परिणाम थी, क्योंकि उन्हें उनके मूल स्थान से हटाया गया था। इसके बाद, मूर्ति को पुनः उसके मूल स्थान पर स्थापित किया गया।

धार्मिक महत्व और उत्सव

धारी देवी मंदिर में नवरात्रि, दशहरा, दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा जैसे त्योहार बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आकर देवी की पूजा-अर्चना करते हैं। यह मंदिर चारधाम यात्रा पर जाने वाले यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जहां वे देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

 

धारी देवी मंदिर कल्यासौर में स्थित है, जो श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के किनारे बसा है। यह श्रीनगर से लगभग 14 किलोमीटर और रुद्रप्रयाग से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। देहरादून और हरिद्वार से यहां तक बस या टैक्सी के माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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