logo

ट्रेंडिंग:

पूरब से पश्चिम तक पूजे जाते हैं गणेश, कार्तिकेय सिर्फ दक्षिण में क्यों, समझें?

भगवान गणेश की पूजा पूरे देश में होती है, वहीं भगवान कार्तिकेय की पूजा विशेष रूप से दक्षिण भारत में होती है। आइए जानते हैं क्यों भगवान कार्तिकेय की पूजा उत्तर भारत में नहीं होती है।

Representational Picture

भगवान कार्तिकेय की प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit Social Media

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

भगवान शिव के पुत्र और देवताओं के सेनापति कहे जाने वाले भगवान कार्तिकेय की पूजा भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग रूपों में होती है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि उनकी भक्ति का केंद्र मुख्य रूप से दक्षिण भारत में दिखाई देता है। जहां उत्तर भारत में उनके मंदिर गिने-चुने हैं। वहीं तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में भगवान कार्तिकेय को मुरुगन या सुब्रमण्यम कहा जाता है। 

 

पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार, भगवान कार्तिकेय का जन्म असुरों के अत्याचार के अंत के लिए हुआ था। तारकासुर जैसे शक्तिशाली दैत्य का वध करने वाले भगवान कार्तिकेय को देवताओं की सेना का प्रधान सेनापति माना गया। इसके बावजूद भी उनकी आस्था उत्तर भारत में ब्रह्मचारी स्वरूप में सीमित पूजा तक रह गई , जबकि दक्षिण भारत में उन्हें पराक्रमी योद्धा और गृहस्थ देवता के रूप में व्यापक मान्यता मिली।

 

यह भी पढ़ें: क्रिसमस के पहले गिफ्ट में था सोना, लोबान और गंधरस

उत्तर भारत में ब्रह्मचारी रूप में भगवान कार्तिकेय

उत्तर भारत में भगवान कार्तिकेय का बहुत कम पूजन होता है। यहां उनका एक प्रसिद्ध मंदिर हरियाणा के पेहवा (कुरुक्षेत्र के पास) में स्थित है। इस मंदिर में भगवान कार्तिकेय को ब्रह्मचारी स्वरूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद राजा युधिष्ठिर ने प्रायश्चित स्वरूप इस मंदिर की स्थापना करवाई थी।

दक्षिण भारत में विवाहित रूप में भगवान कार्तिकेय का पूजन

दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को एक पराक्रमी योद्धा के रूप में पूजा जाता है। यहां यह कथा प्रचलित है कि उन्होंने सुरपद्मन नामक असुर का वध किया था। कुछ मान्यताओं के अनुसार, भगवान कार्तिकेय और भगवान शिव के बीच मतभेद हुआ था, जिसके बाद वह कैलाश पर्वत छोड़कर अगस्त्य मुनि के साथ दक्षिण भारत चले गए।

 

इसी वजह से दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु में भगवान कार्तिकेय की पूजा बहुत व्यापक रूप से होती है। तमिलनाडु के पलणि पर्वत पर स्थित उनका मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां भगवान कार्तिकेय को ब्रह्मचारी नहीं बल्कि गृहस्थ रूप में पूजा जाता है।

 

यह भी पढ़ें'ईसा मसीह की कब्र कश्मीर में है...', क्यों होते हैं ऐसे दावे? पूरी कहानी

मुरुगन के नाम से प्रसिद्ध

दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को मुरुगन कहा जाता है। उनका उल्लेख प्राचीन तमिल संगम साहित्य में भी मिलता है। जहां उत्तर भारत में उन्हें ब्रह्मचारी माना जाता है, वहीं दक्षिण भारत में कार्तिकेय जी विवाहित देवता के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

मौर्य काल से जुड़ा महत्व

इतिहास के अनुसार, मौर्य काल में भी भगवान कार्तिकेय की पूजा को विशेष स्थान प्राप्त था। मोर पर विराजमान कार्तिकेय जी का संबंध मंगल ग्रह से जोड़ा जाता है और ज्योतिष में उन्हें साहस, शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है।


और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap