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कुशीनगर में ही क्यों हुआ था बुद्ध का महापरिनिर्वाण? कथा जानिए

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में स्थित भगवान बुद्ध का मंदिर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए प्रमुख स्थान माना जाता है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, यह वही स्थान है जहां बुद्ध ने महापरिनिर्वाण (अंतिम मोक्ष) प्राप्त किया था।

 kushinagar buddha temple

कुशीनगर मंदिर में स्थित बुद्ध की प्रतिमा : Photo Credit: X handle/Shivam

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में स्थित बौद्ध मंदिर दुनियाभर के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आस्था, शांति और ऐतिहासिक महत्व का प्रतीक माना जाता है। यह वही पवित्र स्थान है जहां भगवान गौतम बुद्ध ने अपने जीवन की अंतिम वाणी देते हुए महापरिनिर्वाण (अंतिम मोक्ष)) प्राप्त किया था। कहा जाता है कि बुद्ध ने यहीं शाल के वृक्षों की छाया में अपनी अंतिम सांस ली थी, जिसके बाद उनके दाह संस्कार के स्थल पर रामाभार स्तूप स्थापित किया गया था। रामाभार स्तूप इस स्थान पर आज भी स्थित है।

 

इस परिसर का प्रमुख आकर्षण है महापरिनिर्वाण मंदिर, जिसमें लेटी हुई बुद्ध की विशाल प्रतिमा (मूर्ति) स्थापित है। यह प्रतिमा लगभग 6.1 मीटर लंबी है और भगवान बुद्ध को शांति की मुद्रा में दर्शाती है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1956 में बुद्ध जयंती वर्ष के अवसर पर पुनर्निर्मित किया गया था, हालांकि यहां मौजूद प्राचीन अवशेष 5वीं से 7वीं सदी के माने जाते हैं।

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को अंतिम उपदेश देते हुए कहा था,'सभी चीजें नश्वर हैं, अपने कल्याण के लिए स्वयं प्रयास करो।' इन्हीं शब्दों को बुद्ध के जीवन दर्शन की अंतिम सीख माना जाता है।

 

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  • कुशीनगर बौद्ध धर्म में बेहद पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक माना जाता है। मान्यता के अनुसार, यह वही स्थान है जहां गौतम बुद्ध ने महापरिनिर्वाण (अंतिम मोक्ष) प्राप्त किया था। 
  • इस मंदिर-स्तूप परिसर को महापरिनिर्वाण मंदिर कहा जाता है। 
  • मंदिर में स्थित शयन मुद्रा (लेटे हुए) की बुद्ध प्रतिमा उस अवस्था को दर्शाती है जब बुद्ध ने अपने अंतिम समय में शरीर त्यागा था। 
  • इस प्रतिमा के पीछे जो निर्वाण स्तूप स्थित है, वह उस सटीक बिंदु के ऊपर है जहां माना जाता है कि बुद्ध ने उसी स्थान पर शाल के वृक्षों के बीच अन्तिम समय बिताया था। 
  • इसके अतिरिक्त, मंदिर परिसर के पास रामाभार स्तूप (मुकुटबंधन-चैत्य) स्थित है, जिसे वह स्थान माना जाता है जहां बुद्ध के शव का दाह (अंतिम संस्कार) किया गया था। 

बौद्ध मंदिर की स्थापना और निर्माण इतिहास

  • मूल प्राचीन मंदिर या स्तूपों की संरचना गुप्तकाल और उससे पूर्व के समय से शुरू हुई मानी जाती है। 
  • वर्तमान मंदिर (जो कि सबसे प्रमुख संरचना है) 1956 में पुनर्निर्माण किया गया था, जिससे बुद्ध के महापरिनिर्वाण की 2,500वीं वर्षगांठ मनाई जा सके। 
  • यह मंदिर पुरातात्विक खननों के ऊपर बनाया गया है, जहां नीचे पुराने भग्नावशेष, स्तूप और खंडित मूर्तियां मिली थीं। 
  • मंदिर के भीतर शयन मुद्रा की बुद्ध प्रतिमा लगभग 6.1 मीटर लंबी है, लाल बलुआ पत्थर की एक ही शिलाखंड (एक ही पत्थर) से बनाई गई है। 
  • कहा जाता है कि 5वीं शताब्दी में एक शिष्य हरिबल ने इस प्रतिमा पर एक शिलालेख बनवाया था। 

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बुद्ध का आखिरी दिन और निर्वाण संबंधी बातें

अंतिम यात्रा


बुद्ध ने 80 वर्ष की अवस्था में धर्म प्रचार-कार्य समाप्ति के बाद अंत में कुशीनगर की ओर अपना अंतिम प्रवास किया था।

 

भोजन और रोग


कथा है कि एक चुंद नामक व्यक्ति ने बुद्ध को भोजन पर आमंत्रित किया। उस भोजन के सेवन के बाद बुद्ध को बीमारी हुई और वह धीरे-धीरे कमजोर हो गए। 

 

 (अंतिम मोक्ष)

  • बुद्ध ने अंत में कुशीनगर में दो साल के वर्षगांठ के अनुसार, लगभग 483 ईसा पूर्व (कुछ स्रोत 487 ईसा पूर्व मानते हैं) में अपना शरीर त्याग दिया। 
  • उस समय वह दो शाल के पेड़ों के बीच शयन मुद्रा में लेटे हुए थे। 

दाह एवं स्मारक निर्माण

  • मान्यता के अनुसार, उनके शरीर त्यागने के 7 दिन बाद उनका दाह संस्कार किया गया था। 
  • बाद में सम्राट अशोक ने उस स्थान पर स्तूप और चिन्ह (पिलर) बनवाये थे। 
  • गुप्तकाल और बाद में अन्य राज्यकालों में इस तिथि की स्मृति में मंदिर और स्तूपों का विस्तार हुआ था।

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