logo

ट्रेंडिंग:

भारत के ऐसे मंदिर जहां आज भी दी जाती है पशुओं की बलि

भारत के कुछ प्राचीन मंदिरों में आज भी बलि प्रथा चलती है, कुछ मंदिरों में रक्तहीन बलि भी दी जाती है। आइए जानते हैं भारत के उन प्राचीन मंदिरो के बारे में जहां आज भी पशुओं की बलि दी जाती है।

Representational Picture

प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

भारत के कुछ प्राचीन मंदिरों में आज भी बलि की प्रथा चलती है, जो धार्मिक मान्यताओं और स्थानीय परंपराओं से जुड़ी हुई है। इनमें मुख्य रूप से देवी काली, चामुंडा देवी और मुंडेश्वरी जैसी शक्तिशाली देवी-देवताओं के मंदिर शामिल हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि बलि देने से देवी की कृपा प्राप्त होती है और परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और संकटमोचन की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और अन्य राज्यों के कुछ मंदिरों में यह प्रथा प्रचलित है।

 

इनमें से कुछ मंदिरों में रक्तविहीन बलि की जाती है, जहां पशु को अचेत करके पूजा की जाती है और बाद में उसे छोड़ दिया जाता है। वहीं, कुछ मंदिरों में पारंपरिक विधि के अनुसार बलि दी जाती है। हर मंदिर की परंपरा अलग है। उदाहरण के लिए, कैमूर के मुंडेश्वरी मंदिर और राजस्थान के चामुंडा माता मंदिर में रक्तविहीन बलि की जाती है। झारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ काली मंदिरों में बकरों की पारंपरिक बलि दी जाती है।

 

यह भी पढ़ें: वेद, पुराण और उपनिषद में क्या अंतर है?

भारत के ऐसे मंदिर जहां दी जाती है बलि

माता मुंडेश्वरी मंदिर, कैमूर, बिहार

 

बलि की प्रकृति: यहां रक्तविहीन बलि की परंपरा है।

विधि: मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु बकरा लेकर आते हैं। पुजारी बकरे को माता की प्रतिमा के सामने लिटाकर चावल और फूल अर्पित करते हैं। बकरा अचेत हो जाता है। मान्यता के अनुसार, कुछ समय बाद दोबारा अक्षत अर्पित करने पर बकरा जीवित हो जाता है और श्रद्धालु उसे अपने साथ ले जाते हैं।

इतिहास: यह मंदिर लगभग 625 ईसा पूर्व का है और अष्टकोणीय संरचना में निर्मित है।

 

घाघर बुढ़ी मंदिर, आसनसोल, पश्चिम बंगाल

 

बलि की प्रकृति: यहां देवी काली की पूजा में बकरों की बलि दी जाती है।

विधि: श्रद्धालु देवी के चरणों में बकरों की बलि अर्पित करते हैं।

विशेषता: यह मंदिर आसनसोल का सबसे पुराना मंदिर है और हर साल 15 जनवरी को यहां मेला लगता है।

 

यह भी पढ़ें: विजयादशमी के दिन रावण नहीं मरा था, क्या यह कथा आप जानते हैं?

 

रजरप्पा मंदिर, झारखंड

 

बलि की प्रकृति: यहां देवी चिन्ह मस्तिका की पूजा होती है और बकरों की बलि दी जाती है।

विधि: श्रद्धालु देवी के चरणों में बकरों की बलि अर्पित करते हैं।

विशेषता: यह मंदिर झारखंड के प्राचीन मंदिरों में से एक है और यहां प्रसाद के रूप में बकरों का मांस चढ़ाया जाता है।

 

भागलपुर नवगछिया का भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर, बिहार

 

बलि की प्रकृति: यहां नवमी पूजा के दिन बकरों की बलि दी जाती है।

विधि: श्रद्धालु देवी के चरणों में बकरों की बलि अर्पित करते हैं।

इतिहास: यह मंदिर 400 साल पुराना है और यहां हर साल दुर्गा पूजा के अवसर पर विशेष पूजा होती है।

 

काली मंदिर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल

 

बलि की प्रकृति: यहां देवी काली की पूजा में बकरों की बलि दी जाती है।

विधि: श्रद्धालु देवी के चरणों में बकरों की बलि अर्पित करते हैं।

विशेषता: यह मंदिर कोलकाता के प्रमुख मंदिरों में से एक है और यहां विशेष अवसरों पर बलि की परंपरा निभाई जाती है।

 

अचनारा खेड़ी माता चामुंडा माता मंदिर, प्रतापगढ़, राजस्थान

 

बलि की प्रकृति: यहां रक्तविहीन बलि की परंपरा है।

विधि: मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु बकरा लेकर आते हैं। पुजारी बकरे को माता की प्रतिमा के सामने लिटाकर चावल और फूल अर्पित करते हैं, जिससे बकरा अचेत हो जाता है। मान्यता के अनुसार,  कुछ समय बाद दोबारा अक्षत अर्पित करने पर बकरा जीवित हो जाता है और श्रद्धालु उसे अपने साथ ले जाते हैं।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap