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श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्र: कर्ज से मुक्ति के लिए लोग पढ़ते हैं यह मंत्र

हिंदू धर्म में कर्ज मुक्ति के लिए लोग आध्यात्मिक रूप से बहुत से उपाय करते हैं। इन्ही में से एक श्री ऋणमोचक मंगल नामक स्तोत्र प्रचलित है, मान्यता है कि इस स्तोत्र के पाठ मात्र से कर्ज से मुक्ति मिलती है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

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ज्योतिष और सनातन परंपरा में ग्रहों के प्रभाव को संतुलित करने के लिए मंत्र और स्तोत्रों का विशेष महत्व माना गया है। इन्हीं में से एक है श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्र, जिसे कर्ज, आर्थिक तंगी, रोग, शत्रु बाधा और मंगल दोष से मुक्ति का प्रभावी उपाय माना जाता है। वर्तमान समय में बढ़ते कर्ज, मानसिक तनाव और आर्थिक अस्थिरता के बीच यह स्तोत्र एक बार फिर चर्चा में है। मान्यता है कि मंगल ग्रह को प्रसन्न करने वाला यह स्तोत्र न केवल ऋण से छुटकारा दिलाता है, बल्कि साहस, स्थिरता और समृद्धि भी प्रदान करता है।

 

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, मंगलवार के दिन श्रद्धा और नियम से इसका पाठ करने से मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव कम होते हैं और जीवन में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं। यही वजह है कि यह प्राचीन स्तोत्र आज के दौर में भी लोगों के बीच आस्था और समाधान का केंद्र बना हुआ है।

 

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श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्र श्लोक अर्थ सहित

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1।।

 

अर्थ:


मंगल देव धरती के पुत्र हैं।
वह ऋण (कर्ज) नाश करने वाले और धन देने वाले हैं।
वह स्थिर आसन वाले, विशाल शरीर वाले और
सभी बुरे कर्मों को रोकने वाले हैं।
 
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2।।

 

अर्थ:


मंगल देव लाल रंग वाले और लाल आंखों वाले हैं।
वह भक्तों पर दया करने वाले हैं।
उन्हें कुज, भौम, भूमिनंदन भी कहा जाता है।
वह समृद्धि देने वाले हैं।
 
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3।।

 

अर्थ:
मंगल अंगारक और यम स्वरूप भी हैं।
वह सभी रोगों को हरने वाले हैं।
वर्षा देने और रोकने की शक्ति रखते हैं।
सभी इच्छाओं का फल देने वाले हैं।

 

एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् ।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥4।।

 

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अर्थ:
जो व्यक्ति मंगल के इन नामों का
श्रद्धा से प्रतिदिन पाठ करता है,
उस पर कभी ऋण नहीं चढ़ता
और उसे जल्दी धन की प्राप्ति होती है।


धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥5।।

 

अर्थ:
धरती से उत्पन्न,
बिजली जैसी चमक वाले,
युवक रूप में, हाथ में शक्ति धारण करने वाले
मंगल देव को मैं नमन करता हूं।
 
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥6।।

 

अर्थ:
जो मनुष्य इस मंगल स्तोत्र का
नित्य पाठ करता है,
उसे मंगल ग्रह से जुड़ा
कोई भी कष्ट नहीं होता।

 

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥7।।

 

अर्थ:
हे महान अंगारक देव!
आप भक्तों पर कृपा करने वाले हैं।
मैं आपको नमन करता हूं,
कृपया मेरा सारा ऋण शीघ्र नष्ट करें।
 
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः ।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥8।।

 

अर्थ:
मेरे कर्ज, रोग, दरिद्रता,
अकाल मृत्यु, भय, दुख और
मानसिक कष्ट सदा के लिए नष्ट हों।
 
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात् ॥9।।

 

अर्थ:
आपको प्रसन्न करना कठिन है।
आप भोग से दूर और आत्मसंयमी हैं।
प्रसन्न होने पर राज्य तक दे देते हैं
और क्रोधित होने पर तुरंत छीन भी लेते हैं।
 
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥10।।

 

अर्थ:
जब ब्रह्मा, इंद्र और विष्णु भी
आपकी शक्ति से प्रभावित हैं,
तो मनुष्यों की क्या बिसात है।
आप सबसे शक्तिशाली ग्रह हैं।
 
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥11।।

 

अर्थ:
हे मंगल देव!
मुझे संतान और धन दीजिए।
मैं आपकी शरण में हूं।
मुझे कर्ज, गरीबी और
शत्रुओं के भय से मुक्त करें।
 
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् ।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥12।।

 

अर्थ:
जो व्यक्ति इन 12 श्लोकों से
धरती के पुत्र मंगल देव की स्तुति करता है,
उसे अपार धन, समृद्धि और यश मिलता है।
 
।।इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

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