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इंदिरा एकादशी कब है, मुहूर्त, मंत्र से पूजन विधि तक, सब जानिए

पितृपक्ष के महीने में इंदिरा एकादशी को विशेष महत्व दिया जाता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए इंदिरा एकादशी का व्रत रखा जाता है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo credit: AI

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाने वाली इंदिरा एकादशी का महत्व हिंदु धर्म में बहुत खास माना जाता है। पितृपक्ष में आने वाली इस एकादशी को पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए श्रेष्ठ व्रत माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखने और भगवान विष्णु की आराधना करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता के अनुसार,जो भी इस दिन व्रत रखता है उस व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है।

 

इस दिन इंदिरा एकादशी पर उपवास, भगवान विष्णु की पूजा, तुलसीदल अर्पण और पितरों के नाम तर्पण करने की परंपरा है। मान्यता है कि इससे पूर्वजों की आत्मा तृप्त होती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है। पितृपक्ष में आने की वजह से यह एकादशी और भी खास मानी जाती है।

 

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इंदिरा एकादशी 2025 कब है?

वैदिक पंचांग के अनुसार, इंदिरा एकादशी व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाएगा। यह तिथि 17 सितम्बर की रात 12 बजकर 21 मिनट से शुरू होकर उसी दिन रात 11 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी।

इंदिरा एकादशी की पौराणिक कथा

पद्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, सतयुग में इंद्रसेन नामक राजा अवंतीपुरी में राज करते थे। वह धर्मनिष्ठ और भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक दिन उन्हें पता चला कि उनके पिता की आत्मा पितृलोक में फंसी हुई है। राजा इंद्रसेन चिंतित हुए और भगवान विष्णु से इसका उपाय पूछा।

 

भगवान विष्णु ने उन्हें इंदिरा एकादशी का व्रत करने का निर्देश दिया। राजा ने विधिपूर्वक व्रत और पूजा की। उसके प्रभाव से उनके पिता को पितृलोक से मुक्ति मिल गई और वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति हुई। तभी से यह एकादशी पितरों की मुक्ति हेतु श्रेष्ठ मानी जाती है।

 

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इंदिरा एकादशी की मान्यता

  • इस दिन उपवास और भगवान विष्णु की पूजा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
  • मान्यता है कि व्रत करने वाले व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • यह व्रत पितृपक्ष में आने की वजह से विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस समय पितरों का आह्वान और तर्पण किया जाता है।

इंदिरा एकादशी की विशेषता

  • यह व्रत पितृपक्ष में किया जाने वाला सबसे प्रभावी व्रत माना जाता है।
  • व्रत करने वाले को पूर्ण श्रद्धा और नियमों के साथ उपवास करना चाहिए।
  • इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा, तुलसी दल अर्पण, भजन-कीर्तन और पितरों के नाम तर्पण किया जाता है।
  • इस व्रत से पितरों की आत्मा स्वर्ग या वैकुण्ठ धाम को प्राप्त होती है और परिवार पर उनके आशीर्वाद की वर्षा होती है।

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