भारत के बिहार राज्य के पूर्वी चंपारण जिले में स्थित 'केसरिया स्तूप' बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण धरोहर है। यह स्तूप भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में सबसे ऊंचे और विशाल बौद्ध स्तूपों में से एक माना जाता है। इसका इतिहास, धार्मिक महत्व और इससे जुड़ी कहानियां इसे एक रहस्यमयी और आस्था से जुड़ा स्थल बनाती हैं।
केसरिया स्तूप का इतिहास
केसरिया स्तूप का निर्माण मौर्य वंश के सम्राट अशोक के शासनकाल से जुड़ा हुआ माना जाता है। इतिहासकारों का मानना है कि सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए इस स्तूप का निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था। बाद के काल में गुप्त साम्राज्य के दौरान भी इस स्तूप का विस्तार और पुनर्निर्माण किया गया। यह स्तूप समय के साथ मिट्टी में दब गया था लेकिन 20वीं सदी में इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) द्वारा खोजा गया और इसे एक महत्वपूर्ण स्मारक घोषित किया गया।
इस स्तूप की ऊंचाई लगभग 104 फीट है, जो पहले इससे भी अधिक थी लेकिन समय के प्रभाव से इसकी ऊंचाई घट गई है। यह स्तूप ईंटों से बना हुआ है और इसमें कई स्तरों पर गोलाकार आकृति में बने छोटे-छोटे स्तूप भी देखे जा सकते हैं। खुदाई के दौरान यहां भगवान बुद्ध की मूर्तियां, बुद्ध से जुड़ी विभिन्न मुद्राओं के चित्र और अन्य पुरातात्विक चीजें मिली थीं।
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धार्मिक और प्राचीन महत्व
बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, यह वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने अपने निर्वाण (मृत्यु) से पहले अंतिम बार विश्राम किया था और यहां पर उन्होंने अपने अनुयायियों को अंतिम बार उपदेश दिया था। ऐसा भी माना जाता है कि बुद्ध ने यहां अपने भिक्षुओं को यह बताया था कि अब वे शीघ्र ही महापरिनिर्वाण को प्राप्त करने वाले हैं। उनके इन अंतिम उपदेशों को सुनकर उनके अनुयायी अत्यंत भावुक हो गए थे।
यह स्तूप बौद्ध धर्म के ‘महायान’ शाखा से जुड़ा हुआ है और यहां आने वाले श्रद्धालु बुद्ध की शांति, करुणा और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। स्तूप की बनावट में बौद्ध वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने देखने को मिलते हैं, जो उस युग की उच्च कोटि की शिल्पकला का प्रमाण हैं।
इससे जुड़ी मान्यताएं
केसरिया स्तूप को लेकर स्थानीय लोगों में कई धार्मिक और लोक-मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, यह स्तूप किसी चमत्कारी शक्ति से युक्त है और यहां आने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि इस स्थल की मिट्टी में औषधीय गुण हैं और यहां की हवा भी विशेष रूप से सकारात्मक ऊर्जा से भरी होती है।
एक अन्य मान्यता यह भी है कि यहां रात में दिव्य प्रकाश देखा गया है, जिसे बुद्ध की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है। कई श्रद्धालु यहां ध्यान करने और आत्मिक शांति प्राप्त करने के लिए आते हैं।
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आज का स्वरूप और पर्यटन
वर्तमान में केसरिया स्तूप भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरेख में संरक्षित है। यह स्थल देश-विदेश के पर्यटकों और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां हर साल बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष आयोजन किए जाते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।
पर्यटन की दृष्टि से यह स्थल बिहार के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में गिना जाता है और राज्य सरकार भी इसके विकास के लिए विशेष योजनाएं चला रही है।