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शृंगेरी मठः 8वीं सदी की वो घटना, जिसने आदिगुरु को किया था प्रेरित

शृंगेरी मठ को आस्था का पवित्र केंद्र माना जाता है, जिसकी स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। आइए जानते हैं इस मठ का इतिहास और महत्व।

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आदिगुरु शंकराचार्य।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

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महाकुंभ मेले को सनातन धर्म का सबसे बड़ा आयोजन कहा जाता है। इस मेले में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु और साधु-संत पवित्र स्नान के लिए आते हैं। वर्तमान समय में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। इस मेले में विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत और पीठाधीश्वर भी आते हैं और पवित्र स्नान करते हैं। बता दें कि 150 सालों के बाद शृंगेरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ भी इस महाआयोजन में शामिल होने के लिए आए।

 

शृंगेरी पीठ भारत के दक्षिण में स्थित चार प्रमुख शंकराचार्य मठों में से एक है। यह कर्नाटक राज्य के चिकमंगलूर जिले में तुंगा नदी के किनारे स्थित है। इस मठ की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने लगभग 8वीं सदी में किया था। शृंगेरी मठ को भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रमुख केंद्र माना जाता है। आइए शृंगेरी मठ के विषय में विस्तार से जानते हैं।

 

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शृंगेरी मठ के स्थापना की कहानी

शृंगेरी मठ की स्थापना से जुड़ी एक रोचक कथा है। कहा जाता है कि जब आदि शंकराचार्य भारत भ्रमण कर रहे थे, तो वे तुंगा नदी के किनारे पहुंचे। उन्होंने देखा कि एक सांप बारिश में एक मेढ़क को अपने फन से छाया देकर उसकी रक्षा कर रहा था। यह घटना उनके लिए करुणा और धर्म का प्रतीक बनी। इस घटना से प्रेरित होकर उन्होंने इस पवित्र स्थान को ज्ञान और धर्म का केंद्र बनाने का निश्चय किया और शृंगेरी मठ की स्थापना की।

 

शृंगेरी का नाम ‘ऋष्यश्रृंग’ के नाम पर रखा गया है। ऋष्यश्रृंग, जो कि महर्षि विभंडक के पुत्र थे, इस क्षेत्र के एक महान ऋषि माने जाते हैं। उनकी तपस्या और पौराणिक कथाओं के कारण इस स्थान का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।

 

शृंगेरी मठ का प्रमुख आकर्षण शारदा अम्मा का मंदिर है। शारदा अम्मा को विद्या और ज्ञान की देवी माना जाता है। मंदिर की स्थापत्य कला दक्षिण भारतीय शैली में बनी हुई है। यहां भक्त देवी शारदा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कहा जाता है कि यहां स्थित देवी शारदा मूर्ति स्वयं आदि शंकराचार्य द्वारा प्रतिष्ठित की गई थी।

 

मठ के पास बहने वाली तुंगभद्रा नदी को पवित्र माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है। इस नदी से कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा में बताया गया है कि तुंगभद्रा का निर्माण स्वयं भगवान ब्रह्मा ने किया था। साथ ही कुछ धर्माचार्यों का यह भी कहना है कि भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से जमीन से प्रहार करके इस नदी को उत्पन्न किया था।

 

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विद्या और संस्कृति का केंद्र

शृंगेरी मठ में विद्या और वेदों का अध्ययन किया जाता है। यह मठ चार वेदों और अद्वैत वेदांत के प्रचार-प्रसार के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर आदिगुरु शंकराचार्य की शिक्षाओं के आधार पर अद्वैत दर्शन की व्याख्या की जाती है। मठ में विद्वानों के लिए अध्ययन और शोध की व्यवस्था है। आज भी यह मठ वैदिक और धार्मिक परंपराओं के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यहां पर नियमित रूप से यज्ञ, पूजा, संस्कार और धार्मिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं। मठ के शंकराचार्य अपने प्रवचनों के माध्यम से अद्वैत वेदांत और धार्मिक शिक्षाओं का प्रसार करते हैं।

 

शृंगेरी मठ का सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह कई तरह सामाजिक कार्यों के लिए जाना जाता है। यहां गरीबों के लिए अन्नदान, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाती हैं। मठ द्वारा संचालित विद्यालय और वेद पाठशालाएं बच्चों को वैदिक और आधुनिक शिक्षा दोनों प्रदान करते हैं।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।


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