देशभर में महर्षि वाल्मीकि जयंती बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह दिन हर वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि यानी कि 7 अक्टूबर को मनाई जाती है। इस दिन को वाल्मीकि जन्मदिवस के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य का आदिकवि और रामायण का रचयिता माना जाता है। उनके जीवन से जुड़ी शिक्षाएं आज भी समाज के लिए प्रेरणास्रोत के रूप में काम कर रही हैं।
महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर देश के अलग-अलग हिस्सों में धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, जयपुर, अमृतसर और वाराणसी जैसे शहरों में शोभायात्राएं निकाली जाती हैं, जिनमें श्रद्धालु वाल्मीकि जी की प्रतिमाओं के साथ भजन-कीर्तन करते हुए शामिल होते हैं।
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महर्षि वाल्मीकि कौन थे?
धार्मिक ग्रंथों और परंपरागत मान्यताओं के अनुसार, वाल्मीकि जी का मूल नाम रत्नाकर था। उनका जन्म एक शिकारी परिवार में हुआ था। मान्यता के अनुसार, वाल्मीकि जी अपने जीवन के शुरुआती दिनों में लूटपाट का काम करके जीवनयापन करते थे। वह यात्रियों को लूटते और उनसे जीवनयापन करते थे। मान्यता के अनुसार, एक दिन उनकी मुलाकात ऋषि नारद से हुई, मान्यता है कि उसी के बाद वाल्मीकि जी के जीवन की दिशा बदल गई।
रत्नाकर से कैसे बने वाल्मीकि?
कहते है कि ऋषि नारद ने रत्नाकर से पूछा कि क्या उनके परिवार के लोग उनके पापों में सहभागी होंगे। कथा के अनुसार, रत्नाकर के पास इस बात का जवाब नहीं था। उसके बाद नारद मुनि ने उन्हें राम नाम जप करने की सलाह दी। मान्यता के अनुसार, रत्नाकर इतने बड़े अपराधी थे कि वे राम नाम का जप न करके 'मरा-मरा' का जप करने लगे।
नारद जी की बातों से प्रेरित होकर वह गहरी तपस्या में लीन हो गए। कहते हैं कि उनके शरीर के चारों ओर दीमकों ने मिट्टी का टीला (वाल्मीक) बना दिया था। वर्षों बाद जब वह बाहर निकले, तब वह महर्षि वाल्मीकि कहलाए।
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महर्षि वाल्मीकि - आदिकवि और रामायण के रचयिता
महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य का पहला कवि (आदिकवि) माना जाता है। उन्होंने विश्वप्रसिद्ध ग्रंथ रामायण की रचना की, जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन, आदर्श और संघर्षों का वर्णन करती है।
कहते हैं कि जब वाल्मीकि ने पहली बार एक चिड़िया की मृत्यु पर उसके साथ की चिड़िया को शोक में देखा, तो उनके मुंह से छंद के रूप में जो शब्द निकले, वही संस्कृत कविता का प्रथम श्लोक बना। मान्यता के अनुसार, यही क्षण उन्हें कवियों के आदि गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करता है। रामायण के रचयिता के रूप में वाल्मीकि न केवल कवि थे, बल्कि एक दार्शनिक, समाज-सुधारक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी थे।
देवी सीता, लव-कुश और वाल्मीकि आश्रम
रामायण के उत्तरकांड के अनुसार, जब देवी सीता वनवास में आईं, तो उन्होंने वाल्मीकि के आश्रम में शरण ली। यहीं उन्होंने लव और कुश को जन्म दिया। महर्षि वाल्मीकि ने उनके दोनों बालकों लव और कुश को शिक्षा दी और उन्हें धर्म, नीति, युद्धकला तथा रामायण का ज्ञान कराया। लव-कुश के जरिए राम दरबार में रामायण का पाठ किया गया, जिससे स्वयं श्रीराम को भी अपने जीवन की कथा सुनने का अवसर मिला था।
वाल्मीकि जी का जन्म स्थान
वाल्मीकि जी के जन्मस्थान के बारे में मतभेद हैं। कुछ परंपराएं उन्हें प्रयागराज (इलाहाबाद) क्षेत्र का निवासी बताती हैं, तो कुछ मानते हैं कि उनका जन्म आयोध्या के पास तमसा नदी के किनारे हुआ था।
कई मान्यताओं के अनुसार, पंजाब के जालंधर जिले के वाल्मीकि तीर्थ (राम तीर्थ आश्रम) को भी उनका जन्मस्थल माना जाता है। हालांकि, इन दावों के ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं और इन्हें धार्मिक परंपराओं का हिस्सा माना जाता है।
मृत्यु या मोक्ष के संबंध में मान्यता
वाल्मीकि जी की मृत्यु या मोक्ष के बारे में कोई प्रामाणिक ऐतिहासिक जानकारी नहीं है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वह एक लंबी उम्र के बाद तपस्या करते हुए ब्रह्म-लीन (मोक्ष प्राप्त) हो गए थे।