13 दिनों का सूतक, 2 दिन में खत्म, एक कथा पर घिरे कथावाचक मोरारी बापू
साधु-संतों ने कथावाचक मोरारी बापू के सूतक में धार्मिक आयोजन में हिस्सा लेने पर विरोध किया है। जानिए क्या है पूरा मामला।

कथावाचक मोरारी बापू (Photo Credit: PTI File Photo)
रामकथा के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध मोरारी बाबू इस बार अपनी कथा के लिए ही विवादों में घिर गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि 11 जून को मोरारी बापू की धर्म पत्नी नर्मदाबा का गुजरात के भावनगर के तलगाजरडा गांव में 79 वर्ष आयु में निधन हो गया। अब मामला यह था कि अपनी पत्नी के निधन के दो दिन बाद ही मोरारी बापू, यूपी के वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे और राम कथा भी की। यहीं से असली विवाद शुरू हुआ। हिंदू धर्म के कई संतों और धार्मिक संगठनों नें मोरारी बापू के रामकथा और काशी विश्वनाथ में दर्शन यह कहते हुए आपत्ति जताई कि उन्होंने 'सूतक' की अवधि में धार्मिक आयोजन में हिस्सा लिया।
सनातन धर्म में सूतक काल को बहुत अहम माना जाता है। सूतक वह समय अवधि होती है, जब किसी के घर किसी शिशु का जन्म होता है या मृत्यु हो जाती है। मृत्यु के बाद 10-12 दिनों का सूतक काल लगता है जिसे शुद्धिकरण की अवधि कहा जाता है। मान्यता है कि इस अवधि में परिवार का कोई भी सदस्य न तो पूजा-पाठ कर सकता है और न ही किसी धार्मिक आयोजन में हिस्सा ले सकता है। यही वजह थी जिसके बाद मोरारी बापू संतों के निशाने पर आए।
मृत्यु के बाद क्यों लगता है सूतक?
संस्कृत के विद्वान और आचार्य श्याम चंद्र मिश्र बताते हैं कि भारतीय संस्कृति में मृत्यु को जीवन की एक प्राकृतिक और आवश्यक प्रक्रिया माना गया है। जब किसी घर में मृत्यु होती है, तो केवल शोक ही नहीं बल्कि धार्मिक रूप से कई नियमों का पालन भी किया जाता है। इन्हीं में से एक परंपरा सूतक है।
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हिंदू धर्म के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो वह शरीर पांच तत्व- मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में विलीन हो जाता है। हालांकि, शरीर से आत्मा के जाने के बाद उसके संपर्क में आने वाली वस्तुएं और व्यक्ति एक प्रकार की अशुद्धि से प्रभावित होते हैं। इससे जुड़े कई पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं।

आचार्य मिश्र आगे बताते हैं कि किसी परिजन के मृत्यु के बाद घर को अशुद्ध माना जाता है। यह अशुद्धि केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक भी मानी जाती है। गरुड़ पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा कुछ समय तक पृथ्वी पर भ्रमण करती है। यह समय पितृलोक की यात्रा का आरंभिक चरण होता है, जिसमें परिवार को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। इसके साथ सूतक के दौरान पूजा-पाठ से बचना इसलिए कहा गया है ताकि आत्मा की यात्रा में कोई विघ्न न पड़े और देवता अशुद्ध स्थानों से दूर रहें।
सूतक की अवधि – कहां और कितनी?
सूतक की अवधि विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों में अलग-अलग होती है, लेकिन सामान्य रूप से उत्तर भारत में मृत्यु के बाद सूतक की अवधि 10 दिन मानी जाती है। इसे 'दशगात्र' भी कहते हैं। वहीं दक्षिण भारत में कुछ जगहों पर यह समय 11 दिन या 13 दिन तक होता है। वर्णों के अनुसार भी इसमें थोड़ा अंतर हो सकता है। मृत्यु यदि किसी 10 वर्ष से कम आयु के बालक की हो, तो कुछ जगहों पर सूतक 3 दिन या 5 दिन तक ही माना जाता है। इस अवधि में कुछ नियमों का पालन भी किया जाता है।
क्या नहीं किया जाता है?
सूतक के दौरान घर में पूजा, मंत्रोच्चारण, आरती आदि नहीं की जाती। साथ ही सूतक काल में मंदिर प्रवेश वर्जित होता है। इसके साथ नए कपड़े पहनना, घर में कोई मांगलिक काम करना, शादी या उपनयन संस्कार करना भी वर्जित होता है। इस अवधि में दूसरों के घर जाना भी टाला जाता है, ताकि अशुद्धि दूसरों तक न पहुंचे।
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क्या करना चाहिए?
गरुड़ पुराण आदि धर्म ग्रंथों में बताए गए नियमों के अनुसार खुद की और घर की सफाई करना आवश्यक है। साथ ही सूतक में प्याज, लहसुन, मांस-मछली जैसे तामसिक आहार नहीं किया जाता है। 10वें दिन गंगाजल, तिल, काले कपड़े, पिंडदान आदि से आत्मा की शांति के लिए कर्म किए जाते हैं। 11वें और 12वें दिन घर की सफाई, गंगा जल से छिड़काव, नए वस्त्र धारण कर फिर से पूजा आरंभ होती है। 13वें दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर, दान देकर सूतक समाप्त होता है।
मोरारी बापू की प्रतिक्रिया
सूतक के दौरान दर्शन का जब यह मामला उछला तब लोगों ने मोरारी बापू के खिलाफ विरोध शुरू कर दिया। अस्सी घाट और गोदौलिया इलाके में विरोध प्रदर्शन भी हुए और यहां तक की उनका पुतला भी फूंका गया। बढ़ते विवाद के बाद मोरारी बापू ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हुए कहा कि ‘अगर किसी को इससे बुरा लगा है तो मैं क्षमा चाहता हूं। हालांकि, इसके बाद उन्होंने कहा कि वह वैष्णव परंपरा से जुड़े हुए हैं और वैष्णव साधु हैं, जिसमें कथा और भजन में सूतक बाधक नहीं होता है।
क्या वैष्णव परंपरा में साधु नहीं मानते हैं सूतक?
सनातन धर्म में साधु-संतों के भी कुछ अपने नियम और परंपराएं हैं। मोरारी बापू के मामले में उनका तर्क है कि वह वैष्णव साधु हैं और वैष्णव परंपरा में साधु न तो अंतिम संस्कार करते हैं और न ही उत्तर क्रिया श्राद्ध की जाती है। हालांकि, इसपर संतों ने इस तर्क का खंडन करते हुए कहा कि वह गृहस्थ जीवन जीते रहे, इसलिए सूतक के नियम उन पर लागू होता है। शास्त्रीय दृष्टिकोण से भी यदि देखें तो सूतक उन साधु-संतों पर लागु नहीं होता है, जिन्होंने सन्यास को अपना लिया है और मृत्यु से पहले ही खुदका पिंडदान किया है। जबकि मोरारी बापू के मामले में ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है। यही कारण है कि संतों ने इसे शास्त्र-विरुद्ध बताया है।
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