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मुंडेश्वरी मंदिर: जहां मारे गए थे चंड-मुंड, ये है उस मंदिर की मान्यता

देवी दुर्गा के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में देवी मुंडेश्वरी मंदिर का नाम भी आता है। आइए जानते हैं क्या है इस मंदिर का इतिहास और मान्यताएं।

Image of Mundeshwari Mandir

मुंडेश्वरी मंदिर।(Photo Credit: kaimur.nic.in)

देश के विभिन्न क्षेत्रों में भगवान शिव और देवी शक्ति के विभिन्न तीर्थ क्षेत्र हैं, जिनका अपना एक पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। इन तीर्थ स्थलों से जुड़ी कई मान्यताएं और रहस्य भी बहुत प्रचलित है। ऐसा है एक स्थान बिहार के कैमूर जिले में स्थित है। जिन्हें मुंडेश्वरी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर न केवल भारत के प्राचीनत मंदिरों में से एक है, बल्कि इसकी पौराणिक व ऐतिहासिक कहानियां इसे अनूठा बनाती हैं। यह मंदिर मां शक्ति के एक रूप देवी मुंडेश्वरी को समर्पित है और इसका उल्लेख देवी के चंड-मुंड वध की कथा से जुड़ा हुआ है। इसकी स्थापत्य कला, धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक प्रामाणिकता इसे विशेष बनाते हैं।

पौराणिक कथा: चंड-मुंड का वध

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जब असुरों का अत्याचार धरती पर बढ़ गया था, तब देवताओं ने मां दुर्गा से सहायता की प्रार्थना की। इस दौरान चंड और मुंड नामक दो शक्तिशाली असुर देवताओं और मानवता के लिए संकट बन गए थे। मां दुर्गा ने काली रूप धारण कर इन दोनों असुरों का वध किया। चंड और मुंड के वध के बाद देवी को ‘चामुंडा’ कहा जाने लगा। ऐसा माना जाता है कि यह घटना मुंडेश्वरी मंदिर के निकट हुई थी, और इसीलिए इस स्थान पर देवी को मुंडेश्वरी के रूप में पूजा जाता है।

 

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मंदिर का स्थापत्य और संरचना

मुंडेश्वरी मंदिर लगभग 625 ईस्वी पूर्व का है और इसे भारत के सबसे पुराने मंदिरों में गिना जाता है, जहां आज भी पूजा की जाती है। यह एक आठ कोणीय आकार का मंदिर है, जो अपने अनूठे वास्तुकला के लिए जाना जाता है। मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर की गई कला उस समय की बेहतरीन शिल्पकला का प्रमाण है।

 

मंदिर में मां मुंडेश्वरी की प्रतिमा स्थापित है, जो चार भुजाओं वाली है। इनके साथ भगवान शिव की प्रतिमा भी यहां पूजित है। इसके अलावा, यहां पंचमुखी शिवलिंग और गणेश, विष्णु और सूर्य देव की मूर्तियां भी देखने को मिलती हैं। मंदिर के गर्भगृह में पूजा-अर्चना आज भी पूरी श्रद्धा के साथ की जाती है।

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

इतिहासकारों का मानना है कि मुंडेश्वरी मंदिर गुप्त और मौर्य साम्राज्य के दौरान बना था। यहां ब्राह्मी लिपि में लिखे अभिलेख मिले हैं, जो इसकी प्राचीनता की पुष्टि करते हैं। मंदिर का निर्माण हिन्दू और बौद्ध शैलियों का मिश्रण दिखाता है, जिससे पता चलता है कि यह क्षेत्र विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का केंद्र रहा है।

 

मंदिर पर कई आक्रमण हुए, लेकिन यह संरचना अभी भी मजबूती से खड़ी है। यह न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है, बल्कि इसे देखने वाले भक्तों और पर्यटकों को प्राचीन काल के धार्मिक और सामाजिक जीवन की झलक भी देता है।

देवी की पूजा और अनुष्ठान

मुंडेश्वरी मंदिर में देवी की पूजा वैदिक और तांत्रिक दोनों विधियों से की जाती है। यहां विशेष रूप से चैत्र और नवरात्रि के समय भारी संख्या में भक्त आते हैं। ऐसी मान्यता है कि देवी मुंडेश्वरी के दर्शन मात्र से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और कष्टों से मुक्ति मिलती है।

 

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मंदिर का आध्यात्मिक अनुभव

मुंडेश्वरी मंदिर कैमूर पहाड़ियों पर स्थित है, जहां से प्रकृति का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। चारों ओर हरियाली, ठंडी हवाएं और शांत वातावरण इस स्थान को और भी दिव्य बना देते हैं। यहां आकर भक्तों को न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि प्रकृति के साथ एक अनोखा जुड़ाव महसूस होता है।

स्थानीय मान्यताएं

स्थानीय लोग मानते हैं कि यह मंदिर एक सिद्धपीठ है, जहां देवी अपने भक्तों की हर प्रार्थना सुनती हैं। लोग अपनी सुख-शांति, संतान प्राप्ति और स्वास्थ्य लाभ के लिए यहां आते हैं। कई भक्तों का यह भी कहना है कि मंदिर में देवी की शक्ति को अनुभव किया जा सकता है। मुंडेश्वरी मंदिर आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है। इसकी प्राचीनता और धार्मिक महत्व को देखते हुए यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है। मंदिर तक पहुंचने के लिए अब सुविधाजनक मार्ग बनाए गए हैं, जिससे श्रद्धालु आसानी से यहां पहुंच सकें।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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