देशभर में नरक चतुर्दशी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिवाली से एक दिन पहले का दिन होता है और इसे छोटी दिवाली या रूप चौदस भी कहा जाता है। लोग इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानते हुए घर और मन की सफाई करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया और बंदी महिलाओं को आजाद करवाया था। इस घटना को याद करते हुए श्रद्धालु नरक चतुर्दशी की सुबह स्नान करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और घर में दीपक जलाकर सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत करते हैं।
इस दिन का धार्मिक महत्व के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। कई जगहों पर नरकासुर के पुतले जलाने की परंपरा है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। लोग इस दिन अपने घरों को सजाते हैं, मिठाइयां बांटते हैं और अपने परिवार और दोस्तों के साथ खुशियों का उत्सव मनाते हैं।
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नरक चतुर्दशी 2025 कब है?
साल 2025 में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाएगी। इस तिथि की शुरुआत 19 अक्टूबर 2025 के दिन दोपहर 1 बजकर 52 मिनट से होगी और इस तिथि का समापन 20 अक्टूबर 2025 के दिन दोपहर 3 बजकर 44 मिनट पर होगी। वैदिक पंचांग के अनुसार, नरक चतुर्दशी 20 अक्टूबर 2025 के दिन मनाई जाएगी।
20 अक्टूबर 2025 के दिन अभ्यंग स्नान मुहूर्त - सुबह 05:13 मिनट से सुबह 06:25 मिनट तक।
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नरक चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथा
इस दिन से जुड़ी एक पौराणिक कथा हिंदू समाज में प्रचलित है, कहा जाता है कि नरकासुर नाम का एक राक्षस था, जिसने लोगों पर अत्याचार किया। नरकासुर के बढ़ते अत्याचार को देखते हुए भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा ने मिलकर नरकासुर का वध किया और बंदी महिलाओं को आजाद कराया। इस दिन उनकी विजय याद की जाती है।
एक मान्यता के अनुसार, नरकासुर के मारे जाने के दिन सुबह स्नान करने से नरक (दुख और बुराई) से मुक्ति मिलती है। इसी वजह से लोग नरक चतुर्दशी के दिन सुबह पूरी शरीर में तेल लगाकर स्नान करते हैं।
नरक चतुर्दशी से जुड़ी विशेषताएं और परंपराएं
- सुबह तेल लगाकर स्नान करना शुभ माना जाता है।
- नए कपड़े पहनना और घर में दीपक जलाना जरूरी है।
- घर की सफाई करके नकारात्मक ऊर्जा दूर की जाती है।
- दक्षिण भारत में इस दिन दीपोत्सव मनाया जाता है।
- कुछ स्थानों पर नरकासुर के पुतले जलाए जाते हैं।
- शाम को यमदेव को दीपक जलाने की परंपरा है।
- इस दिन सौंदर्य और त्वचा की देखभाल के लिए हल्दी, गुलाबजल और काजल आदि का इस्तेमाल किया जाता है।