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कैसे हुआ था नर्मदा नदी का जन्म? जिनके दर्शन से ही दूर हो जाते हैं पाप

गंगा और यमुना के जैसे नर्मदा नदी को भी मोक्षदायिनी कहा जाता है। आइए जानते हैं, क्या है इस नदी के उत्पत्ति की पौराणिक कथा और महत्व।

Image of Narmada River

नर्मदा नदी के पास घाट।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

हिंदू धर्म में कई निडियों को देवी की उपाधि दी गई है और उनकी पूजा की जाती है। इनमें गंगा, यमुना, सरस्वती आदि शामिल हैं। इन्हीं में से एक नर्मदा नदी है, जिसे ‘रेवा’ के नाम से भी जाना जाता है। नर्मदा नदी को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र माना जाता है और शास्त्रों में बताया गया है कि इस नदी में स्नान करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है।

 

वैदिक पंचांग के अनुसार, हर वर्ष माघ शुक्ल सप्तमी को नर्मदा जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष नर्मदा जयंती 04 जनवरी के दिन मनाई जा रही है। इस दिन नर्मदा नदी के किनारे विशेष पूजा-अर्चना और दीपदान का आयोजन किया जाता है। हजारों श्रद्धालु नर्मदा के घाटों पर एकत्रित होकर पवित्र स्नान करते हैं। बता दें कि धर्म-शास्त्रों में इस नदी की उत्पत्ति और उनसे जुड़ी पौराणिक कथा का भी वर्णन मिलता है। आइए जानते हैं-

देवी नर्मदा की पौराणिक उत्पत्ति कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार, नर्मदा नदी भगवान शिव के आशीर्वाद से धरती पर प्रकट हुई थीं। जब भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया, तब उनके पसीने की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरीं। उन्हीं बूंदों से नर्मदा नदी का जन्म हुआ। इसलिए नर्मदा को शिव-पुत्री भी कहा जाता है।

 

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एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने एक बार महादेव के लिए एक विशेष स्थान की रचना करने का विचार किया, जहां वह अपनी साधना कर सकें। उन्होंने अपने कमंडलु से जल गिराया और उस जल से नर्मदा नदी प्रकट हुई। इस वजह से देवी नर्मदा को ब्रह्मकुंड की बेटी भी कहा जाता है।

 

इसके अलावा, एक और प्रसिद्ध कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने जब तीनों लोकों में विजय प्राप्त की, तो वे अत्यधिक थक गए थे। उनकी थकावट से उनके शरीर से पसीने की बूंदें गिरीं, जिससे नर्मदा नदी का जन्म हुआ। इसी वजह से नर्मदा नदी को विष्णु-स्वेदजा यानी विष्णु के पसीने से उत्पन्न ही देवी भी कहा जाता है।

नर्मदा नदी का धार्मिक महत्व

नर्मदा नदी को गंगा, यमुना और सरस्वती के समान बहुत ही पवित्र माना जाता है। धर्म शास्त्रों में यहां तक बताया गया है कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से ही पापों का नाश हो जाता है, जबकि अन्य नदियों में पाप धोने के लिए स्नान करना पड़ता है।

 

इसके साथ नर्मदा परिक्रमा का भी अपना विशेष महत्व है। यह परिक्रमा लगभग 2600 किलोमीटर की होती है, जो नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक से शुरू होकर अरब सागर तक जाती है और फिर लौटकर अमरकंटक पर समाप्त होती है। इस परिक्रमा को जीवन के सबसे कठिन लेकिन पुण्यकारी यात्रा मानते हैं, जिसे पूरा करने में कुछ महीने या कुछ साल भी लग सकते हैं।

 

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नर्मदा स्नान का महत्व

नर्मदा नदी में स्नान करने के पीछे जुड़ी एक मान्यता यह है कि नर्मदा के जल में स्नान करने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि प्राप्त होती है। इसे मोक्षदायिनी नदी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि इसमें स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ नर्मदा स्नान करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति मिलती है। इसके साथ नर्मदा के किनारे ध्यान और साधना करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

 

नर्मदा नदी के तट पर कई प्रमुख तीर्थ स्थल स्थित हैं, जैसे ओंकारेश्वर, महेश्वर, अमरकंटक और होशंगाबाद। इन स्थानों पर नर्मदा स्नान करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भी नर्मदा के तट पर स्थित है, भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यहां का धार्मिक महत्व सबसे अधिक है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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