नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा का विशेष महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब महिषासुर के अत्याचारों से देवता और ऋषि त्रस्त हो उठे, तब ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव की संयुक्त शक्तियों से उत्पन्न दिव्य रूप ने ऋषि कात्यायन के घर जन्म लिया। इसी वजह उन्हें कात्यायनी कहा गया। इस अवतार ने महिषासुर का वध कर धर्म और न्याय की रक्षा की थी। इस वजह से नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना करना न केवल आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि इसे धर्म और न्याय की रक्षा का प्रतीक भी माना जाता है।
मां कात्यायनी को वीरता, पराक्रम और उग्रता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इनकी आराधना से साधक को शत्रुओं पर विजय, जीवन में साहस और विवाह जैसी मनोकामनाओं की सिद्धि प्राप्त होती है। कन्या और विवाह योग्य लड़कियों के लिए मां कात्यायनी की विशेष पूजा का उल्लेख भी शास्त्रों में मिलता है। यह भी विश्वास है कि इनकी कृपा से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
यह भी पढ़ें: लामा और पुजारी में क्या अंतर होता है?
देवी कात्यायनी का अवतार क्यों हुआ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब महिषासुर नामक राक्षस ने देवताओं और पृथ्वी पर उत्पात मचाना शुरू किया, तो सभी देवता परेशान हो गए। महिषासुर को यह वरदान प्राप्त था कि उसका वध केवल एक देवी के हाथों ही हो सकता है।
कथा के अनुसार, ऐसे में त्रिमू्र्ति यानी कि ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर ने मिलकर अपनी-अपनी शक्तियां एकत्रित कीं और एक दिव्य तेज का निर्माण किया। यह तेज महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुआ। महर्षि कात्यायन ने उस तेज से उत्पन्न हुई कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। इसी वजह से देवी के इस स्वरूप को कात्यायनी कहा गया। प्रचलित कथा के अनुसार, यही देवी आगे चलकर महिषासुर का वध करती हैं और देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाती हैं।
यह भी पढ़ें: सरस्वती पूजा: मंत्र से लेकर मुहूर्त तक जानें सबकुछ
देवी कात्यायनी के रूप की विशेषता
शक्ति का रूप:
- देवी कात्यायनी को शक्ति और साहस की प्रतीक माना जाता है।
- यह स्वरूप देवी दुर्गा के सबसे उग्र और वीर रूपों में से एक माना जाता है।
रूप और वाहन:
- मां कात्यायनी सिंह (शेर) पर सवार होती हैं।
- धार्मिक ग्रंथों की कथाओं के अनुसार, देवी के चार हाथ हैं। जिसमें एक हाथ में तलवार, दूसरे में कमल, तीसरे में वरमुद्रा और चौथे में अभयमुद्रा का वर्णन किया गया है।
नवरात्र में स्थान:
- नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है।