नवरात्रि के अवसर पर देवी कौशिकी की पूजा विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शुंभ और निशुंभ नामक अत्याचारी राक्षसों ने देवताओं और पृथ्वी पर आतंक मचा दिया था। इस संकट को दूर करने के लिए देवी दुर्गा का उग्र स्वरूप देवी कौशिकी के रूप में प्रकट हुआ था। देवी कौशिकी ने अपने दिव्य अस्त्रों और तलवार के साथ शत्रुओं का संहार किया और धर्म की स्थापना की। उनका यह स्वरूप शक्ति, साहस और शत्रु संहार का प्रतीक माना जाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि देवी कौशिकी की पूजा से संकट से मुक्ति, शत्रु पर विजय और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
देवी कौशिकी, जिन्हें देवी चामुण्डा भी कहा जाता है। यह देवी दुर्गा का एक उग्र और शक्तिशाली रूप हैं। यह रूप शत्रुओं और असुरों के विनाश के लिए प्रकट हुआ था। कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप और शुंभ-निशुंभ जैसे दैत्यों ने पृथ्वी पर अत्याचार फैलाए थे। शुंभ और निशुंभ भाई थे, जो बहुत शक्तिशाली और अहंकारी थे। उन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी पर आतंक मचा दिया और देवताओं और ऋषियों को परेशान कर रखा था। उसके बाद देवी दुर्गा ने कौशिकी का अवतार लिया था।
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देवी कौशिकी का प्राकट्य
जब शुंभ और निशुंभ नामक दो राक्षसों ने देवताओं से स्वर्ग छीन लिया और उन्हें पृथ्वी पर भटकने के लिए मजबूर कर दिया, तब देवताओं ने देवी दुर्गा से सहायता की प्रार्थना की। देवी दुर्गा के शरीर से एक चामुण्डा देवी प्रकट हुईं, जिनका नाम कौशिकी पड़ा। देवी कौशिकी का जन्म देवी पार्वती के शरीर से हुआ था, जिन्हें गौरी भी कहा जाता है। इसलिए देवी कौशिकी को देवी गौरी की पुत्री भी माना जाता है।
शुंभ-निशुंभ का वध
देवी के अवतार से जुड़ी कथा के अनुसार, देवी कौशिकी ने शुंभ और निशुंभ से युद्ध के लिए चुनौती दी। उसके बाद शुंभ ने देवी से विवाह का प्रस्ताव भेजा था, देवी शुंभ के इस प्रस्ताव को युद्ध में विजय प्राप्त करने की शर्त पर स्वीकार किया। इसके बाद, देवी ने शुंभ और निशुंभ की सेनाओं के प्रमुखों, जैसे धूम्रलोचन, चंड, मुंड, और रक्तबीज का वध किया और अंत में देवी ने शुंभ और निशुंभ दोनों का वध कर दिया और देवताओं को स्वर्ग लौटा दिया।
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देवी कौशिकी की पूजा और महत्व
देवी कौशिकी की पूजा विशेष रूप से नवरात्रि के नौवें दिन की जाती है। मान्यता है कि देवी की पूजा से भक्तों को शत्रुओं पर विजय, संकटों से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। देवी कौशिकी का वाहन सिंह (शेर) है और वे त्रिशूल, तलवार, और कमल जैसे दिव्य अस्त्रों से सुसज्जित हैं।